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"भारत के मूलनिवासी कुछ तो बदलो"

 "भारत के मूलनिवासी कुछ तो बदलो" देश के वर्तमान हालात कैसे हैं किसी से छिपी नहीं है, बेरोजगारी, भ्रष्टाचारी हर वर्ग पर अन्याय अत्याचार, राजनीति में नैतिकता का पतन ,सत्ता का दुरूपयोग, ईडी सीबीआई जैसी एजेंसियों से भय पैदा करना, सरकारी संस्थाओं को लगातार कुछ निजी हाथों में बेचने, बड़े उद्योगपतियों के अरबों के कर्ज माफ करना, बैंक लूटकर भागने वाले चोरों को पूरा संरक्षण देना जैसी घटनाएं सबके सामने घटित हो रही हैं, किसानों के साथ दुर्व्यवहार जगजाहिर है। फिर भी सरकार अपनी कालर ऊंचा करके फिर से चुनाव जीतने का बिगुल बजा रही है। भारत का मतदाता इनके तामझाम और प्रचार तंत्र के झांसे में आकर सबकुछ भूलकर इन्हें ही 2 किलो फ्री राशन के लोभ में सब दुखदर्द भूल रहा है। क्या इससे भारत का भविष्य स्वर्णिम हो पायेगा कभी नहीं? भारत से इस चोर कंपनी का डेरा समाप्त करना होगा, भारत के भविष्य को अपने हाथों संवारना पड़ेगा।  - गुलजार सिंह मरकाम  राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन
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"लोभ लालच और समाज"

 "लोभ लालच और समाज" आरक्षित वर्ग के गुलाम जनप्रतिनिधि टिकट और मंत्री पद पाने के लिए समुदाय के हित दरकिनार कर देते हैं।             वहीं आरक्षित वर्ग के ब्यूक्रेट अधिकारी कर्मचारी पद और प्रमोशन पाने के लिए अपनी सामुदायिक जिम्मेदारी के प्रति उदासीन हो जाते हैं। - गुलजार सिंह मरकाम  राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन

ज्यूडिशियल और नान ज्यूडिशियल"

 ज्यूडिशियल और नान ज्यूडिशियल" ज्यूडिशियल और नान ज्यूडिशियल पर बात करने वाले आदिवासी मूलनिवासी केवल चर्चा में नान ज्यूडिशियल हैं, व्यवहार में ज्यूडिशियल व्यवस्था को गले गले तक मानते हैं, ऐसी टीमें आत्ममुग्धता में ही जीती हैं, बुद्धि विवेक विज्ञान संविधान के ऊपर अपने आप को मानती हैं। ऐसे मित्रों से मेरी विनम्र अपील है कि, विचार और व्यवहार में समानता लायें। मेरे विचारों से किसी को दुख पहुंचा हो तो क्षमा चाहता हूं। मेरा मानना है.....  "अपनी भाषा धर्म संस्कृति परंपरा को पकड़कर रखो, जकड़ कर रखो लेकिन वर्तमान में जियो"  - गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन 

कांग्रेस ही दोषी है।

 "कांग्रेस ने ही अतिवादी राष्ट्र की नींव रखी थी।" वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्यों का ल्हास हो रहा है, लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ न्याय पालिका, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और मीडिया यदि चारण की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं। इसका जिम्मेदार भी कांग्रेस ही है। धार्मिक उन्माद के माध्यम से आर एस एस के  तानाशाही विचारधारा की नींव रखवाने वाले भी इन्हीं के पुरोधा रहे हैं।                             भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित करते हुए डा.भीमराव अंबेडकर जी ने कहा था कि "किसी देश का संविधान कितना ही अच्छा हो  यदि उसके चलाने वाले अच्छे नहीं होंगे तो वह संविधान अच्छा परिणाम नहीं दे सकता, वहीं किसी देश का संविधान कितना भी खराब हो यदि उसके चलाने वाले अच्छे होंगे तो खराब संविधान भी अच्छा परिणाम दे सकता है।"  कहने का मतलब स्पष्ट है कि संविधान के माध्यम से स्वतंत्र भारत का संचालन जिन हाथों में आया इसके कर्ताधर्ता भी आर एस एस के छद्म कांग्रेसी नेता रहे हैं। जिन्होंने शनै शनै आज की परिस्थितियों की नींव रखी थी। ज्ञान पिपासा ने भारतीय समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता क

हम कहां हैं

 "हम कहां हैं " विकास के नाम पर आधुनिक समाज ने क्या क्या मील के पत्थर गढाये है, क्या आरंभिक मानव के गढ़े गए नींव से कुछ अलग आविष्कार किये हैं या आरंभिक मानव के अविष्कार को पंख लागाकर समय और दूरी को कम कर दिया है। आखिर नये इंसान ने जीवन के बहुआयामी विकास क्रम में, संस्कार संस्कृति शिक्षा, स्वास्थ्य, संसाधन में नया कुछ नहीं कर सका है, बल्कि इंसान के जीवन को और कठिन कर खतरे में डाल दिया है।                        उदाहरण के तौर पर देखा जाये तो आरंभिक कृषि संसाधन हल बैल जो आज भी इतना ही प्रासंगिक है जितना आज है। जिसकी पहुंच जनसामान्य तक रही है जिसे आधुनिक समय में जनसामान्य की पहुंच से दूर करते हुए कुछ लोगों के इर्दगिर्द कर दिया, अर्थात विकास के नाम पर पूंजीवादी व्यवस्था की नींव रख दी , यात्रा आवागमन घोड़ा, घोड़ागाड़ी बैलगाड़ी नाव आदि के आरंभिक मानव का अविष्कार जो जनसाधारण की पहुंच में रहा है,आज भी है, परन्तु पूंजीवादी विकास क्रम ने इसमें मशीन लगाकर वायुयान , चारपहिया वाहन जलपोत आदि लाकर समय और दूरी को तो कम कर दिया लेकिन इंसान और इंसानियत के बीच दूरी बनाकर इसे सीमित लोगों तक केंद्

बेरोज़गार युवा और पेंशन युक्त पेंशनधारी

 "आज की जरूरत" पढ़े लिखे बेरोज़गार युवा रोजगार के अवसर खोजने गांव से शहर की ओर प्रस्थान करें । वहीं शहरों से "रोजगार मुक्त पेंशनधारी" अपने पेतृक गांव की ओर पहुंच कर अपने अनुभव को समाज के बीच रखकर अपनी बुद्धि विवेक विज्ञान के माध्यम से गांव को आर्थिक धार्मिक सांस्कृतिक राजनीतिक विषयों पर समृद्ध करने का प्रयास करें, तो कुछ होना संभव है। - गुलजार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय अध्यक्ष क्रांति जनशक्ति पार्टी)