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Showing posts from June, 2013

हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की अच्छी प्रस्तुति हो !

                                        ''हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की अच्छी प्रस्तुति हो !                                                                    ''आदिवासी समाज के युवाओं में जिस तरह से एक चेतना का संचार हो रहा है ! इससे लगता है कि ये समाज को एक नई दिशा दे सकेंगे ! सबसे बड़ी बात यह हो रही है की युवा अब अपने धर्म ,संस्कृति ,सभ्यता,इतिहास  को अन्यों की नहीं बल्कि अपनी दृष्टी से देखना शुरू कर दिए है ! महत्वपूर्ण बात यह भी है की युवा अब ज्ञान संग्रह की अभिलाषा रखने लगे ! यही संग्रहित ज्ञान उन्हें अपना इतिहास लिखने में सहायक होगा ! आदिवासी समाज के सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों की अच्छी प्रस्तुति ,से गैर आदिवासी जो जनजाति की सूचि में नहीं है ,परन्तु वह मूलनिवासी है ,प्रभावित हुए बिना नहीं रह पायेगा ! इसका कारण भी है कि वह भले ही वह हिंदूवादी जाल में फंसा है पर कही न कही आदिवासी संस्कृति के अन्दर अपने आप को पाता है ! जिन्हें आज हम सवैधानिक भाषा में पिछड़ा वर्ग ,अनुसूचित जाति की सूचि में पाते हैं ! वे और कोई नहीं अपने ही लोग हैं ! जिन्हें देश की मूल संस्कृति से अलग
प्राचीन इतिहास और आर्य आजकल हमारे बहुत से साथी आर्य कोन थे ,कहाँ से आये थे इस पर काफी चर्चा चल रही है ! जिन स्थानों को इतिहास के विद्यार्थी सिन्धु सभ्यता के रूप में जानते हैं वे हैं -१ . हड़प्पा २ .मोहनजोदड़ो जिन्हें वैदिक काल में ऋग्वेदिक मनुष्यों ने कहा -१. हरियुपिया २. मुर्विदुर्योण ! ये स्थान या राजधानियां या गणराज्य कुछ और नहीं ''कुवया राज्य '' के अंतर्गत उम्मो गुट्टाकोर में इंगित किये गए ''हर्वाकोट ''और ''मुर्वाकोट '' ही हैं !ऐसे कितने कोट हैं जो धरती के गर्भ में छिपे और समाये हैं अनुसंधान होते रहेंगे ? और गोंडों का इतिहास उगागर होगा और इतिहास के अनुत्तरित प्रश्नों के समाधान निकल आयेंगे ! आर्य के आने के पूर्व कुवया राज्य काफी विस्तृत रहा है ! यह निषकर्ष निकाला जा सकता है ! आर्य कहाँ से आये ? (१) सर विलियम जोन्स फिलिपियो ,सालिटी आदि विद्वानों ने आर्यों का मूल निवास स्थान यूरोप कहा है ! (२ ) कुछ विद्वान डेन्यूब के किनारे ,आस्ट्रिया ,हंगरी के मैदान या जर्मनी को मूल स्थान मानते है ! (३) केस्पियन सागर के पास रूस

' भागीदारी व्यवस्था के संस्थापक छत्रपति साहू जी महाराज ''

'' भागीदारी व्यवस्था के संस्थापक छत्रपति साहू जी महाराज '' छत्रपति साहू जी महाराज को आरक्छन व्यवस्था का जनक कहा जाता है ! उनके राज्य काल में , उस समय की ब्राह्मणवादी व्यवस्था के कारन उनके राजदरबार में ब्राह्मण दरबारी अधिक थे , कामकाज उन्ही के हवाले रहता था , साहूजी महाराज के रसोई का संचालक एक ब्राह्मण था ! एक बार साहूजी महाराज रसोई की ओर गये , वहां पर किसी को न देख कर उन्होने रसोई से पानी निकलकर पी लिया , इतने में रसोई का संचालक उन्हें देख लिया ! जब महाराज वहां से चले गए तो , उस रसोइये ने रसोईघर को गंगाजल से धोकर पवित्र किया , इस बात की जानकारी जब राजा को मिली , तब उनके मन में विचार आया की मेरे रसोई में जाने से रसोई कैसे अपवित्र हो गई जो उसे गंगाजल से पवित्र करना पड़ा ! इस बात का अध्ययन करते हुए उन्हें आत्म अनुभूति हुई पिछला इतिहास खोजने पर पाया की , मेरे पूर्वज छत्रपति शिवाजी भी इसी तरह अपमानित हुए थे ! कहा जाता है की छत्रपति शिवाजी जब आसपास के राज्यो में अपना अधिपत्य कर लिया था , छत्रप हो गए थे , तब उनके राज्याभिषेक का अवसर आया तब उनके राज्या

जिस बाप का बेटा लायक लायक होता है ,उस बाप की इज्जत होती है !

जिस बाप का बेटा लायक लायक होता है ,उस बाप की इज्जत होती है ! जिस बाप का बीटा नालायक होता है ,उस बाप की इज्जत नहीं होती ! गोंडवाना के महापुरुषों के बेटे अब धीरे धीरे लायक होते जा रहे हैं अपने बाप अपने महापुरुषों को सम्मान देने लगे हैं तो ! कमलनाथ जैसे कांग्रेसी नेता महारानी दुर्गावती की प्रतिमा छिंदवाडा शहर में स्थापित करा दिया ,बीजेपी के शिवराज चौहान डिंडौरी जिले में जाकर रानी दुर्गावती की मूर्ति का २४ जून को अनावरण कर रहे हैं ! इसका मतलब है की आप लोग सजग हो रहे हैं ,इसी सजगता के ये मिशल है की हमारे आलावा और भी हमारे महा पुरुषों को अपना मानकर संम्मान देने लगे हैं ! देखिये और आगे आगे होता है क्या ? अभी तो हम और आगे की ओर जा रहे हैं ,जहाँ हमें ''वोट बेंक बनना है ,जिस दिन आदिवासी समाज वोट बेंक के रूप में स्थापित हो जायेगा उस दिन ,समाज जो कहेगा वही नेताओं को करना पड़ेगा ! आज हम अपने समाज के नेताओं को दोष देते हैं ! नेता पार्टियों के गुलाम हैं उनके मालिक जैसा कहेंगे वैसा करेंगे ! और आप उनसे उम्मीद रखते हैं ! वे चमचे हैं ,आज इस चमचे से नहीं तो दूसरा चमचा लेकर कम निकल लेते हैं ! हमे
२ ४  जून २ ० १ ३ को छिंदवाडा में आयोजित गोंडवाना महासभा की सभा का एक द्रश्य
आदिवासियों  की सरलता सजहता का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने १९४७  के पहले बहुत सा  ज्ञान इंग्लेंड ले गए  लोग आज भी आदिवासियों के गूढ़ रहस्यों की जानकारी लेकर अपना उल्लू सीधा करके अपने आप को भारत के ज्ञान का ग़ुरू साबित साबित  करने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें यह नहीं मालूम की आदिवासी के ज्ञान को लेने के लिए उन्हें आदिवासी समाज में जन्म लेना पड़ेगा ! उस वातावरण उस माहोल में रहना बसना पड़ेगा ! अंग्रेजी शासन कल में डाक्टर एल्विन को अंग्रेजी सरकार ने आदिवासियों के रहन सहन रीति रिवाज परम्पराओं के ज्ञान का अध्ययन करने के लिए जिम्मेदारी सोंपी गयी थी ! लेकिन उन्होंने पाटन ग्राम वर्तमान डिंडोरी जिले की आदिवासी महिला कोशी बाई से विवाह भी किया ,आज उसका पुत्र ग्राम रैत्वार में निवास करता है ! लेकिन उस डाक्टर एल्व्विन को क्या पता था की आदिवासी संस्कृति के गूढ़ रहस्य गोंडी भाषा में पाए जाते हैं ? चूंकि पाटन गढ़ में गोंडी भाषा का प्रचलन नहीं है ! इसलिए वे आदिवासियों के गूढ़ रहस्य की जानकारी से वंचित रह गए ! इसकी जानकारी के लिए गोंडी भाषा के जानने  ,उस समाज में पैदा हुए उसकी रीति रिवाज परंपरा को जानने

tribal unity of india

हमारी सोच लगातार आदिवासी हित के लिए बढती जा रही है !अच्छा संकेत है ! इस सोच को लगातार बनाये रखकर विभिन्न छेत्रो में जो वैचारिक अंतर दिखाई देता है ! यथा( धार्मिक सामाजिक एवं राजनितिक )उन वैचारिक अंतर को भी धीरे धीरे कम करना है !हमारी सांस्कृतिक पहचान तो लगभग एक है इसमें दो राय नहीं यही विषय हमारी एकता का सूत्र भी है ! धार्मिक विषय थोडा सवेदनशील है पर बुद्धिजीवी इसे अच्छी प्रस्तुति देकर समाज को एक दिशा में ला सकते है ! अभी हम समस्या के आधार पर एकजुट होते नजर आ रहे है पर ये काफी नहीं होगा ! हमें उन तमाम विषयों पर एक सोच एक विचार रखना रखना होगा तब हम किसी समस्या पर एक व्यवहार [एक्शन ] कर पाएंगे ! यही कॉमन एक्शन हमारी ताकत होगी ! यही हमारे विजय की सीदी होगी !