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Showing posts from July, 2013
where is st,sc,obc संविधान की सूचि में लम्बे समय से देश के मूलनिवासियों को अलग अलग सूचि में डाल दिये जाने के कारण अनुसूचित जनजाति एवम अनुसूचित जाति वर्ग की वर्गीकृत सोच बन चुकी है ! जबकि ये वर्ग आज भी सामान वातावरण ,सामान परिवेश ,सामान राजनैतिक ,सवैधानिक सरक्षन में जी रहे हैं ! परन्तु यह वर्गीकृत विभाजन ,उन्हें सामाजिक ,सांस्कृतिक ,धार्मिक राजनैतिक बिन्दुओं पर मानसिक रूप से भी विभाजित करके रख दिया है ! इसी तरह सविधान में वर्णित पिछड़े वर्ग की विशाल संख्या जो एक वर्गीकृत मानसिकता में ढल रही थी ,को चालाक लोगों ने विभाजित कर क्रीमीलेयर नाम देकर ,कमजोर कर दिया ! वर्गीय विभाजन के कारण एक ही जाति एक राज्य में यदि अनुसूचित जनजाति है ,अन्य राज्य में पिछड़ा वर्ग में ,तथा किसी अन्य राज्य में अनुसूचित जाति में है तो उस जाति में आदिवासी या जनजातीय मानसिकता नहीं पैदा होती ,बल्कि जिस राज्य में वह जिस वर्ग में गिना जाता है वही मानसिकता बनती है ! भले ही वह एक संस्कृति ,संस्कारों ,परिवेश ,वातावरण में जीवन यापन कर रहा हो ! जबकि सविधानिक सूचि केवल विशेष सुविधाओं सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए बनी है ! आपक
सत्ताधारी दलों से तालमेल नहीं ? गोंगपा मध्यप्रदेश में छोटे दलो के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बना रही है । भोपालः मध्यप्रदेश में आसन्न 2013 के चुनाव को देखते हुए सभी राजनीतिक र्पािर्टयां गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का वोट बैंक बन चुके आदिवासी को गुमराह करने में लगी हुई हैं । कांग्रेस और भाजपा जैसे सत्ताधारी दल राजनीतिक दलालों के माध्यम से गोंगपा का कांग्रेस से तालमेल के संबंध में चर्चा की बात करके आदिवासियों का गोंगपा से मोहभंग कराने का शडयंत्र रच रहीं है। ताकि आदिवासी वोटर दिग्भ्रमित हो! गोंगपा इन दलो से समज्ञौता नहींकरेगी । जहां तक पार्टी तालमेल नीति का प्रश्न है तो गोंगपा ने छत्तीसगढ में सत्ताधारी दलो को छोडकर स्थानीय छेत्रीय दलों का मोर्चा से तालमेल कर चुनाव लडने का कार्यक्म घोशित कर चुकी है । इसी तरह मध्यप्रदेश में भी सत्ताधारी दलो को छोडकर स्थानीय छेत्रीय दलों से जो कि प्रदेश में गोंगपा द्वारा घोशित आदिवासी मुख्यमंत्री का समर्थन करता है के साथ तालमेल बनाकर चुनाव लडेगी । जिन सत्ताधारी दलो ने आदिवासी राजनीति को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है एैसे दलों से आदिवासीयों

TRIBLE RELEGION IN INDIA

एक साथी बलभद्र बिरुआ ने सरना धर्म के सम्बन्ध में अच्छी जानकारी दी है स्वागत योग्य है ! वही उन्होंने गोंडी धर्मावलम्बियों की भी संख्या का जिक्र किया है ! मेरी जानकारी के अनुशार देश में आदिवासी समाज के लोग विभिन्न राज्यों में अलग नाम से जैसे आदि धर्म कोया धर्म प्रकृति धर्म आदि का उल्लेख २ ० ० १ की जन्गरना में किये थे ! चलो अलग अलग ही सही कुछ प्रयास तो हुआ ! लेकिन मेरा मानना है तथा इन सभी धर्मावलम्बियों का मुख्य देवता जो अपने पुरखा के जाता है जिसे लोग सरनादेव सरई पेड़ में , बडादेवसजोर पेन साजा के पेड़ में ,मरांड बरु भी पेड़ का ही देव है ! आदि ! सभी प्रक्रति के ही उपासक है ! जिसमे पुजारी उस समुदाय का ही निर्धारित होता है ! जहा तक इन सभी आदिवासियों के गोत्र व्यवस्था को देखे तो सबके गोत्र किसी पेड़ पौधे ,किसी पक्छी तथा जानवर के नाम पर है यथा,गोंड तथा उनकी समस्त उपजातियो में टेकाम यानि टेका सागोन का पेड़ ,मरका आम का पेड़ उराव तथा उनकी समस्त उपजातियो में खेश यानि धान का पौधा मिंज विशेष मछली आदि हल्बा जाती में भेडिया सियार मीना जाती में मीन मछली आदि , देश के विभिन्न छेत्रो में आदिवासी समुदाय अप

गोत्रज व्यवस्था के जनक विश्व गुरू पहांदी पारी कुपार लिंगो

गोत्रज व्यवस्था के जनक विश्व गुरू पहांदी पारी कुपार लिंगो गोत्र व्यवस्था की.स्थापना.करके विवेकशील जानवर को इंशान बनाया । प्रकृति की गोद से पैदा हुआ समस्त जीवों में विवेकशील प्राणी इंसान है । इंसान के इसी विवेकशीलता ने उसे समकालीन जीवों से श्रेश्ठ रखा है । प्रकृति ने इस महान जीव को जो विवेक रूपी विशेश अस्त्र दिया है कहीं अतिवादी ना हो जाये उसे अनुशाशित करने के लिये विश्व गुरू पहांदी पारी कुपार लिंगों को इंसानी रूप में प्रस्तुत किया ! गुरू लिंगो प्रथम ने इंसान को जानवर की श्रेणी से उपर लाने के लिये प्रकृति के सथावर जंगम के नियमों तथा उनके बीच आपसी समन्वय तथा विकास के रहस्यों का गूढ अध्ययन किया ! लिंगो के इस अध्ययन ने विश्व मानव को एक व्यवस्था दी जिसे गोत्र व्यवस्था कहा जाता है । इस व्यवस्था को देने के पीछे लिंगों का महान उदेश्य इंसान को चिरकाल तक जीवित रखना था । चूंकि व्यवस्था के बिना इंसान अन्य जानवरों की तरह आपसी संघर्श में नश्ट हो जातेे या शेश जीवन को नश्ट कर लेते । विश्व के सभी देशों में गोत्र व्यवस्था को अंगीकार किया गया । यथा मंडेला मिलर फिटर ओबामा जयसूर्या