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Showing posts from October, 2013

'' राहुल गांधी ने विधेयक के पन्ने फाडने वाली बात करके तानासही मानसिकता का परिचय दिया है ।''

'' राहुल गांधी ने विधेयक के पन्ने फाडने वाली बात करके तानासही मानसिकता का परिचय दिया है ।''-       ( गुलजार सिंह मरकाम)     अभी हाल ही में सुप्रीम कोंट्र्र द्वारा जनप्रतिनिधियों को अपराधी होने पर दो वर्श की सजा होने पर प्रतिनिधित्व से अयोग्य घोशित किये जाने संबंधी विशय पर संसद में लाये जाने वाले विधेयक के प्रस्ताव के पन्ने फाड देने संबंधी समाचार पत्रों के माध्यम से की गई टिप्पडी प्रजातंत्र व्यवस्था में षर्मनाक और तानाषाही मानसिकता का परिचायक है । यह मामला संसद और संविधान का है । इस पर किसी एक व्यक्ति के कहने पर विधेयक के प्रस्ताव को रोक देना या ले आना संसद और संविधान का अपमान है । संविधान तथा संसद सर्वोपरि है । नियमानुषार विधेयक के प्रस्ताव को लाया जाना था । संसद में आम जनता के प्रतिनिधि इस पर बहस करते । जिसे सारी दुनिया देखती इस पर जो भी परिणाम आता संवैधानिक रूप से वह जनता का फैसला माना जाता । लेकिन विधेयक के प्रस्ताव के पन्ने फाड देने की बात करके विधेयक के रोकने की पूर्व नियेजित योजना का मोहरा राहुल गांधी को बनाकर कांग्रस का थोथी लोकप्रियता हासिल करने तथा विधेयक को र

‘‘क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिये गोंडवाना आन्दोलन को कमजोर मत होने दो ।‘‘

            ‘‘क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिये गोंडवाना आन्दोलन को कमजोर मत होने दो ।‘‘ देष की आजादी के पूर्व से ही गोंडवाना आन्दोलन की नींव रखी जा चुकी थी । जिसमें गोंडवाना की मूल भावना को समझने वाले पुरोधाओं ने अपने स्तर पर उसे आगे बढाने का काम करते रहे,इस काम में गोंडवाना राज्य के विभिन्न रियासतों के राजा ओर राज परिवार के कुछ साहसी लोग लगे रहे आम जनता से भी बहुत से बुद्धिजीवी और विचारक निकले जिन्होंने गोंडवाना आन्दोलन के लिये आवष्यक तत्वों को मजबूती प्रदान करते रहे । मनीषियों ने पाया कि गोंडवाना आन्दोलन का आधार गोंडवाना की भाषा , धर्म और संस्कृति हो सकते हैं । इन विषयों पर काम होने लगा । धर्म जागरण को आन्दोलन का मुख्य स्तंभ बनाकर समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का कार्य भी आरंभ हुआ । बडी बडी सामाजिक कुरीतियों कांे समाज से बाहर निकालने की मंषा रखने वाले लोग सामाजिक पंचायतों के आधार से अपसी विवाद भी निपटाने का कार्य होने लगा । समाज में लगातार चेतना का प्रचार प्रसार होता रहा । आगे चलकर कुछ लोगों ने समाज की भाषा का विकास हो इस कार्य में जुटने लगे । गोंडी साहित्य का प्रकाषन हो