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Showing posts from May, 2014

सत्ता परिवर्तन हुआ है व्यवस्था परिवर्तन नहीं ।

सत्ता परिवर्तन हुआ है व्यवस्था परिवर्तन नहीं ।  हमारे देश की तासीर है कि जिन आदर्शों नीतियों और मान्यताओं के आधार पर इस देश की आधार शिला रखकर व्यवस्था कायम की गई थी जिसके परिणामस्वरूप इस देश में समता स्वतंत्रता बंधुत्व एवं नैषर्गिक न्याय पर आधारित व्यवस्था कायम हुई थी । यही व्यवस्था आगे चलकर विश्व की सर्वोच्च सभ्यता संस्कृति के रूप मे विश्वविख्यात हुई । इस व्यवस्था के निर्माणकर्ताओं नें इस व्यवस्थ ा को हमारे देश की भौगोलिक स्थिती मौसम और जलवायु तथा प्रकृति के पर्यावरण की अनुकूलता के आधार पर स्थापित किया था यही कारण है कि इस व्यवस्था ने देश को विश्व के शिखर पर विराजित किया । यही कारण है कि विषम परिस्थितियों में भी हम अपनी पुरातन व्यवस्था को भौतिक नही ंतो सांस्कृतिक रूप में अपने आंतरिक व्यवहार में सहेजकर रखे रहते है । केवल इस आशा से कि आज नहीं कल देश की व्यवस्था हमारे मन के अनुकूल कायम होगी । दुनिया के सभी देश अपने देश की सामाजिक सांस्कृतिक भौगोलिक परिस्थितियों के अनुशार अपनी व्यवस्था कायम करते है । हमारे देश में विभिन्न आक्रमणकारी आये हम पर भौतिक रूप से विजय हासिल कर लेते हैं लेकिन हमा

सामाजिक साख सामूहिक उत्तरदायित्व

सामाजिक साख सामूहिक उत्तरदायित्व  आज के हालात में मूलनिवासी आदिवासी समुदास का जीवन अभाव तिरस्कार षासन प्रषासन से असहयोग जैसी अनेक समस्याओं से ग्रस्त होकर चल रहा है । समाज की संपूर्ण जनसंख्या का मूल्यांकन किया जाय तो पता चलता है कि समाज का उच्च आय प्राप्त वर्ग भीकिन्हीं बिंदुओं पर गहरे में प्रताडित है । समाज की एैसी जनसंख्या भले ही वह अपने आप को बाहरी दिखावे के लिये संतुश्ट दिखाई दे पर वह भी वर्तमा न व्यवस्था में सीने में पत्थर दाब कर चल रहा है । समाज का एक और हिस्सा जिसे हम मध्यम आयवर्गीय या छोटी मोटी नौकरी तथा छोटे मोटे किसान कह सकते हैं । उसकी हालत सांप छछूंदर की भांति है । उसे समाज के अपने से उपर आय या पद वाले के साथ जब भी उठने बैठने का मौका मिलता है तो उसकी आंतरिक पीडा अपने से निम्नतर आय वाले या गरीबी में जी रहे लोगों को इस सब का दोषी सिद्ध करने के रूप में प्रकट होता है । इसी तरह यह जब अपने समाज के अषिक्षित गरीब हिस्से के साथ संवाद करता है । तब वह समाज की समस्या का जिम्मेदार समाज के उच्च आय या पद वाले वर्ग के हिस्से में डालकर अपने आप को संतुश्ट कर लेता है । दूसरी ओर समाज का अत्यंत

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता समान नागरिक संहिता लागू करने का मतलब समझने के लिये हमें हमारे देश के संविधान की तरफ देखना होगा । संविधान निर्माताओं ने देश की सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक राजनैतिक परिस्थ्तिियों को ध्यान में रखकर संविधान में कुछ समुदाय तथा वर्गों को विशेष सहूलियत जैसे आरक्षण तथा विशेष अधिकार दिये गये । अब तक जितनी भी सरकारें इस देष में बनी उन सरकारों ने देष के मूलनिवासी वर्ग को इन सहूलियतों  का पूरा लाभ नहीं दे सके और तो और अन्य पिछडा वर्ग समुदाय को शिक्षा नौकरी के साथ राजनीति में भी सहूलियत दी जानी थी मगर उसे तो मानो भूल ही गये । उल्टे आरक्षित वर्ग को अयोग्य होने का प्रमाण देकर हतोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है । चूंकि मूलनिवासी वर्ग शासक वर्ग से जनसंख्या की दृष्टि में अधिक दिखाई देने लगते हैं इसलिये वे भय के कारण सहूलियतों को बनाये रखकर उसे पूरा नहीं करने का ताना बाना बुनते रहते है । आज भी लोगों को समान नागरिक संहिता की बात सतही तौर पर राष्टवादी सोच लगती है लेकिन समान नागरिक संहिता का मतलब है संविधान में वर्णित विशेष सहूलियतें पाने वाले वर्ग की सहूलियतों को खत्म करके सभी

एक और आजादी की लडाई

एक और आजादी की लडाई विश्व इतिहास के परिदृश्य में दो बाते खुलकर सामने आ रही हैं कि धरती के निर्माण के बाद गोंडवाना लैण्ड और लारेंसिया में किस तरह के जीवन का अभ्युदय हुआ । उस भाग के जीवन तथा गोंडवाना भूभाग के जीवन में क्या अंतर आया इस बात को समझे बिना हम किसी भी व्यक्ति को कोई बात नहीं समझा पायेंगे । ना ही वह मानने को तैयार होगा । दुनिया की सभ्यता संस्कृति को समझने के लिये उस भाग की प्राकृतिक भौगोलिक सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझना होगा । तत्पष्चात उस पर उत्पन्न मनुष्य की जीवन षैली तथा उस पर आधारित उसके क्रियाकलाप ही उसकी असली पहचान बनाते हैं । आज का वैज्ञानिक षोध उस परिस्थिती में उस नश्ल के अनुवांशिक गुणों के रूप में उसे चिन्हित करता है । सारा अंगारा लैण्ड या लांरेंसिया ठंडा भाग है । जहां मनुष्य ने अपना विकास गोंडवाना भाग से काफी बाद में किया । जहां हमारे देष की तरह मौसम जलवायु नहीं चारों ऋतु ना ऋतुओं का खदयान वहां सिर्फ जानवर को उसका मांस खाकर जीया जा सकता था । जानवर भी कब तक मिलते भूख ने अपनी जगह से पलायन को मजबूर किया । ठंड ने उन्हीं जानवरों की खाल ओढने का आदी बना दिया । हमेषा हत्

आजादी की लडाई कुछ इस तरह लडें.........

              आजादी की लडाई कुछ इस तरह लडें......... हम आदिवासियों को यदि आजादी की लडाई लडना है तो विदेषी आयोैं की भाशा धर्म संस्कृति सहित हर पहचान को धीरे धीरे समाप्त करना होगा । यह काम जरा कठिन है । परन्तु कुछेक बातों से हम संकल्प ले सकते हैं । जैसे हम अपने धरों में में राम कृश्ण बृहमा विष्नु हनुमान लक्ष्मी दुर्गा आदि की फोटो या मूर्ति न रखें यदि रखी है तो उसका विसर्जन कर दें । अपने बच्चों का नाम हिन्दु देवी देवता या अन्य उनके चर्चित नाम से ना रखें । इसके लिये हमारे महापुरूश या देवताओं के नाम का उपयोग करें । हमारी पूजा पद्वति प्रकृतिक और अपने पूर्वजों की मान्यताओं के अनुरूप् हो । हमारे भोजन में पुराने पकवानों को स्थापित करें । हमारे पहनने वाले आभूशणों के महत्व को बढायें उन्हें पहनें या उपयोग हो । संस्कृत का उपयोग करके ब्राहमन या अन्य संप्रदाय का व्यक्ति हमें भाशा के माध्यम से प्रभावित करने का प्रयास करता है । इस षब्द का जरा भी इस्तेमाल ना करें । हो सके तो अपनी मातृभाशा जो भी हो का प्रयोग करें अभी नहीं आ रही है तो कम से कम मातृभाशा के बीच में हिन्दी का प्रयोग कर सकते हैं । या हिन्