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Showing posts from November, 2014

नक्सलवाद पर चर्चा

गोंडवाना के लोगों ने इस संबंध में पहले से बात रखी लेकिन कौन सुनता था इनकी बात को अब आधिकारिक तौर पर कहा जाने लगा तब यह बात सच जैसे लगती है । इसलिये गोंडवाना के सगाजनों आप सही चल रहे हैं ,ना मीडिया की चिंता न किसी और से प्रमाणपत्र की जरूरत ! हमने जो देखा हमने जो महसूस किया और हम पर जो बीत रहीं है व्यवहारिक रूप में वही सही है । हमें किसी से प्रमाण पत्र नहीं लेना है कि हम इस देष के मूलनिवासी हैं और आर्य विदेषाी हैं , हमें किसी से पूछना नहीं कि हम हिन्दु नहीं प्रकृति धर्मी हैं ।  हमारे संस्कार और संस्कृति अलग है । हम नहीं जानते कि वर्णव्यवस्था क्या है हम यह भी नही जानते कि स्वतंत्रता संग्रकम 18 57 के अगुआ कौन थे हमें तो बस पता है 1848 में राजा ढिल्लनषाह ने अंग्रेजों के छक्के छुडा दिये थे ंराजा षंकर षाह रघुनथषाह की वीरगाथा हमें मौखिक याद हो गई । तात्या मामा बिरसा मुण्डा को हमने अपना आदर्ष मान लिया है तुम हमें कितना ही पढाओं इतिहास को कितना ही तोडों मरोडो जैसी जानकारी आ रही है । इस देष का इतिहास बदलने की तैयारी चल रही हैं बच्चों को तुम कितना ही गुमराह करने की कोशिष करो हमने उनको सब कुछ बता

आदिवासी संगठनों का राष्टीय स्तर पर एक महासंघ

"चाणक्य ने कहा था पराजित राष्ट तब तक पराजित नहीं होता जब तक उसकी संस्कृति पराजित नहीं होती !"  "हम और हमारे देष का मूलनिवासी आदिवासी आज भौतिक रूप से पराजित हो चुका है लेकिन संस्कृति आज भी जीवित है इसको बचाना होगा यही हमारी आजादी का कारण होगा ।"  {:गुलजार सिंह मरकाम} एक मेरी तुच्छ बुद्धि की सोच है ए देश के समस्त आदिवासी समुदाय से संबंधित ओर स ्वसंचालित पंजीकृतए अपंजीकृत सामाजिक संगठन के सगाजनों से कि हम सभी संगठन और लोग जो आदिवासी समुदाय के हित के लिये विभिन्न क्षेत्रों में समाज उत्थान के समग्र बिन्दुओं पर लगातार काम कर रहें हैं । बहुत खुसी की बात भी है । अशिक्षित पिछडे और आर्थिक रूप से कमजोर समाज का एक संगठन सारे देश में कार्य नहीं कर सकता । बहुत सारी कठिनाईयां हैं भाषायी अडचन भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों में विषमता आदि । परन्तु समस्या जब सभी आदिवासियों की समस्या एक सी है तो उसका निराकरण भी एक तरीके से सोचने विचारने से हो सकता है । इसलिये कि जब हम एक सोच एक विचार में चलने लगेंगे तब परिणाम भी एक तरह का ही आने वाला है । इसलिये सभी आदिवासी संगठनों का राष्टीय स्तर प

सरकार, शिक्षा और समाज

"सरकार, शिक्षा और समाज"  ‘’यह सोचकर कभी लगता हे कि समाज का अधिकार कर्मचारी या जनप्रतिनिधि समाज के प्रति उत्तरदायी क्यों नहीं है’’ इसका कारण यह दिखाई देता है कि सरकारी ओहदे पर जाने के लिये उसे सरकारी तंत्र चलाने की शिक्षा दी गई है या हमारे देष में शिक्षा प्रणाली केवल सरकारी तंत्र को चलाने के लिये विकसित की गई है “ षासक, समाज सेवक ,वैज्ञानिक ,साहित्यकार बनने के लिये नहीं ।“ सामाज के प्रति उत्तरदायित्व के लिये तो बिल्कुल ही नहीं ।“ इसलिये समाज का व्यक्ति सामाजिक जिम्मेदारियों  को नहीं समझता ।“ सरकार को अपने तंत्र को चलाने के लिये बाबू और नौकर चाहिये वह अपने काम को अंजाम देता है । जिस तरह अंग्रेजो ने लार्डमैकाले को अंग्रेजी तंत्र को चलाने के लिये बाबुओं की जरूरत थ्री , ठीक यही काम वर्तमान सरकारें भी कर रही है इसमें आश्चर्य की बात नहीं । । और हम हैं कि सरकारी शिक्षा पाने के बाद समझते हैं कि हम शिक्षित हो गये । नहीं हम केवल सरकारी तंत्र को चलाने के लिये मशाीन बनकर रह गये हैं आपको जानकारी है ही कि मशाीन में संवेदना नहीं होती आपरेटर जैसा चलायेगा वैसा कार्य करता है । समाज का व्यक्ति
''समाज की उर्जा समाज में लगे''       आदिवासी समाज की मातृशक्ति बहन और बेटियों को समर्पित काफी समय से मेरे मन के अंदर उथल पुथल चल रही थी कि । इस बात को कैसे रखूं किसी को तनिक भी ठेस लगी तो मैं उसका प्रायश्चित कैसे कर पाउंगा । हांलाकि ग्रामीण अंचलों में मैंने इस बात को सामाजिक मंचों के माध्यम से रखने का काफी प्रयास किया है । मेरा मानना था कि जहां से समाज की षिक्षा आरंभ हो रही है उसी स्त्रोत में ही इस बात को रखी जाय तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं यही मेरा उददेश्य रहा । परन्तु आज इस बात को समाज के उस स्तर पर भी पहुंचाना आवश्यक लग रहा है जहां समाज अब दो स्तरों में विभजित दिखाई देने लगा है । वहीं समाज की एक नई पौध जो कि ग्रामीण सामाजिक परिवेश से अनभिज्ञ षहर कस्बों की चकाचैध में शिक्षा लेकर पनप रहा है शिक्षा ग्रहण कर अच्छी नौकरी और व्यवसाय में आगे आ रहा है मन को खुसी देता है । परन्तु इसका दूसरा पहलू भी य