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Showing posts from December, 2014

"आसाम की हकीकत अखिर नरसंहार क्यों "

"आसाम की हकीकत अखिर नरसंहार क्यों " 25 से 27 दिसंबर तक आयोजित अ.भा.गों.गों.महासभा के बल्लारषाह अधिवेषन में आसाम से लगभग 28 प्रतिनिधि , जिनसे मैंने व्यक्तिगत चर्चा की उन्होंने बहुत कुछ जानकारी देते हुए बताया कि "हमारे पूर्वज अंग्रेजों की ईस्ट इन्डिय कम्पनी के बंधक के रूप में चाय बागानों में काम करने के लिये आसाम ले जाये गये थे । अंग्रेजो की देखरेख में हमें उन बागानों में 24 घंटे काम करना पडता था । खाने पीने की व्यव्स्था के लिये मजदूरी मिलती थी । इन बागानों के आसपास हम लोग झोपड ी बनाकर रहते थे । अंग्रेज सदैव हमारी निगरानी में लगे रहते थे ताकि हम भाग ना जायें । इस तरह हमारी आरंभिक पीढी जो लगभग समाप्ति की ओर है । उस समय हम बच्चे थे धीरे धीरे उन्ही बागानों में काम करते हुए वहां के वातावरण में ढलकर कुछ व्यवसाय और काबिज भूमि में अपनी जीविका चलाने लगे अंततः देष आजाद हुआ हमने सोचा कि आजादी के बाद हमें अपने जाति समुदाय की तरह संविधान के आरक्षण का लाभ मिलेगा परन्तु ,सरकार से संवैधानिक मांग करने पर जब देष में मंडल आयोंग के तहत पिछडे वर्गों का आरक्षण मिला उसी समय से हमें भी पिछडा वर

धर्मांतरण

आजकल धर्मांतरण के नाम पर राष्टीय स्तर पर बहस छिडी हुई है बडे बडे कथित हिन्दूवादी नेता धर्मांतरण पर देष के सनातनी मूलनिवासियों को भडकाने का काम कर रहे हैं लव जिहाद का घी डालकर देश के अमन चैन को खराब करने का काम कर रहे हैं । इस देश के मूलनिवासी पिछडावर्ग अनुसूचित जाति जनजाति सभी को हिन्दु बताकर घर वापसी की बात कर रहे हैं । इस देश के सनातन मूलनिवासीयों को पता नहीं कि हिन्दु शब्द का प्रयोग 12 वी सदी से प्रयोग हुआ है ं देष का सनातन धर्म मूल प्रकृति धर्म जो ब्राहमन धर्म अर्थात मनु वादी व्यवस्था से लगातार संघर्ष कर रहा था । इस बीच इस्स्लाम धर्म के देष में मौजूदगी के कारण मनुवादी धर्म को सनातनियों से संघर्ष के साथ साथ इस्लाम से भी दो दो हाथ करना पडा तब ब्राहमण धर्म के नायकों ने अपने आप को सरेंडर करना आरंभ किया मुगल सल्तनत से समझौता करते हुए पद औहदे प्राप्त करने के लिये अपनी बहन बेटियों को सोंपकर अपने आप को बचाया ओर मुगल सल्तनत में नवरत्न जैसे ओहदे प्राप्त किये । परन्तु खुद तो सरेंडर हुए लेकिन सनातनी मूलनिवासी जनों को सल्तनत के विरूद्ध हिन्दु नाम से भडकाते रहे । यही काम अंग्रेजों के समय भी हुआ

"कितना आवष्यक हैं व्यक्ति के पहले गोत्र की पहचान "

"कितना आवष्यक हैं व्यक्ति के पहले गोत्र की पहचान " तेलंगाना राज्य में अदिलाबाद के कुछ गांवों का दौरा करने पर एक बात मेरे मन के अंदर अकुलाहट पैदा कर रही थी कि जब भी मैं किसी से बातचीत संवाद करता दनके नाम पूछता चाहे वह छोटा बच्चा हो या बूढा वह गोंडी भाषा में बोलता और नाम के पहले अपना सरनेम को बताता था जैसे सीडाम बाजीराव अर्का मानिकराव मडकाम संतोष उईका लीलाधर मसराम नागेन्द्र आदि तब मैंने विचार में लिया कि अखिर इसका चलन कब से है और क्यों है तब मुझे लगा कि गोंडवाना सभ्यता संस ्कृति में कितनी गहराई है हर एक बिन्दु पर समाज समुदाय के प्रति उत्तरदायित्व के लिये अपनी प्रथम पहचान समाज या परिवार की पहचान गोत्र को माना जाता है व्यक्ति का स्थान समाज गोत्र और पिता के बाद आता है । यही कारण है कि पूर्व समय में लोग पहले अपने नाम के पहले गांव गोत्र और पिता का नाम जोडते थे । कालान्तर में गांव का नाम लिखना तो छूट ही गया पिता के नाम को केवल कागजी कार्यवाही में नाम के बाद लिखा जाने लगा सरनेम को भी नाम के पीछे लिखते हुए उसे भी व्यक्ति से कम महत्व का बना दिया । परिणाम क्या हुआ व्यक्ति अपने समाज को भ

'' संगठित वर्गचेतना के लिये काम किया जाय ।''

'' एक ओर हम देष के समस्त अदिवासी भाईयों को एक सूत्र में बांधकर आदिवासियों पर हो रहे अन्याय अत्याचार पर चर्चा कर उससे निपटने के रास्ते निकालने का प्रयास कर रहे है । राश्टीय स्तर की समस्याओं पर एक सोच विचार और व्यवहार लाने की कोशिष में हैं ं वहीं हमारे कुछ नवजवानो में आदिवासी षब्द के पीछे पडकर अंग्रेजी भाशा में परिभाशित कर यू0एन0ओ0 के दिये नाम पर विवाद की स्थिति पैदा कर रहे हैं जो अच्छी बात नहीं हैं हम अभी षब्द के पीछे ना भागें व्यवहार में हम क्या हैं इस पर चिंतन करें । व्यवहार अपने आप षब्द को अपने अनुरूप ढाल लेगा । यदि हम केवल षब्द के पीछे भागे तो लक्ष्य के पहले क्षेत्रवाद जातिवाद में उलझकर आदिवासियों के समग्र मिषन को रोकने का काम करते हैं । गोंडवाना हमारी राश्टीयता है लेकिन हमारा राश्ट अभी गोंडवाना नहीं बना है । गोंडवाना राश्ट में जाति और उपजाति में लम्बे समय से बंटे होने के बावजूद राश्ट के मूलनिवासियों में  जाति से उपर उठकर कम से कम वर्गचेतना पैदा हुई यह भी मूलनिवासी समाज के आगे आने के लिये एक रास्ता है । यही वर्गचेतना आगे चलकर समाज के राश्टीयता का मार्ग प्रष्स्त करेगी । इसलि