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Showing posts from February, 2015

"आदिवासी पर्सनल ला यानि विधि संहिता"

"आदिवासी समाज का पर्सनल ला यानि विधि संहिता" मित्रो काफी समय से आदिवासी समाज का पर्सनल ला यानि विधि संहिता हो इस बात की चिता की जा रही है कारण भी है कि जब आदिवासी हिन्दु नही ंतब देष का संविधान उसके निजि जीवन पद्धति में किसी अन्य धर्मावलंबी के नियम कायदे कैसे थोप सकता है । यदि एैसा हो रहा है तो वह संविधान के विरूद्ध है । हालाकि आदिवासियों की कुछ जातियों ने कहीं कहीं अपनी सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिये अपनी जातिगत नियम बनाये हैं पर वे समस्त आदिवासी समाज के लिये नाकाफी ह ै । यही कारण है कि संविधान मे व्यवस्था होने के बावजूद हमारे साथ सामान्य हिन्दुओं के मापदण्ड से न्याय निर्णय किये जाते हैं । इसमें हमें नुकसान झेलना पडता है । सम्पूर्ण आदिवासियों का पर्सनल ला यानि एक विधि संहिता हो इस बात की पहल वर्श 1992 में मध्यप्रदेष राज्य के आदिम जाति अनुसंधान संस्थान ने राज्य की समस्त जनजातियो की रीजि परंपराओं का अनुसंधान और सर्वेक्षण कराते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीष के नेतृत्व आदिवासी समाज की विधि संहिता तैयार करायी गई थी जो दुर्भाग्य से उस पर आगे काम नहीं बढा ना अब बढ पाया । च

" श्रद्धा अंधश्रद्धा अंधभक्ति"

" श्रद्धा अंधश्रद्धा अंधभक्ति" हमारा भोला भाला आदिवासी समाज भावनाओं में बहकर किसी भी व्यक्ति पर आसक्त होकर उसका अंधभक्त हो जाता है उसकी अच्छाई बुराई उसे एक पक्षीय दिखाई देने लगती है । इसी का परिणाम यह होता है कि जिस पर अंधश्रद्धा रखी गई है वह अपने आपको महान समझते हुए सामुदायिक विचार और निर्णय की जगह समाज पर अपने व्यक्तिगत विचार और निर्णय थोपने लगता है । इसलिये बुद्धिजीवियो की जिम्मेदारी है कि समाज की अगुवाई करने वाले प्रत्येक अगुवा पर श्रद्धा के भाव तो रखे लेकिन अंधश्रद्धा नह ीं । यदि अंधश्रद्धा रखना ही पडे तो लिंगोवास हुए महापुरूषों शहीदो या अपने पूर्वजो के प्रति रखो कारण कि व्यक्ति तो कभी लोभ लालच मोह या भयवश आपका बडा नुकसान कर सकता है जो अपूर्णीय भी हो सकती है । परन्तु लिंगोवास हुए महापुरूषों शहीदो या अपने पूर्वजो के प्रति अंधश्रद्धा यदि आपको लाभ नहीं दिला सकेगी तो कम से कम लोभ लालच मोह या भयवश आपका बडा नुकसान तो नहीं करेंगे । क्योंकि इन्हें कोई प्रभावित नही कर सकता ये व्यक्ति समूह समाज को जरूर प्रभावित करते हैं ।

शासन करता जमात

गोडवाना का मूलनिवासी शासन करता जमात रहा है इसमें शासन करने की क्षमता अौर ललक पैदा करने की आवश्यकता है। ताकि वह अपनी इच्छा पूरी करने के लिए उपाय अौर उपकरण तैयार करेगा   गुलज़ार सिंह मरकाम

शमभू नरका

शमभू नरका हिन्दी में शिवरात्रि   माघ पूर्णिमा को अार्यो ने अपने छल कपट से मादाउ यानी हमारे पित्रपुरुस शमभूशेक को भोजन में जहर मिला कर दे दिया ताकि किसी तरह उनकी मृत्यु हो जाये। और हम गोडवाना भूभाग में निर्भय होकर अपनी सत्ता स्थापित कर सकें लेकिन शमभूशेक १३ दिन बाद ही बेहोशी से उबर गये थे जिस रात को उनकी बेहोशी टूटी वह माह और दिन शमभू नरका या शिवरात्रि के नाम पर जाना जाता है Narayan Gajoriya   यह घटना मध्यप्रदेश के दतिया जिले के प्रचीन बम्होरगढ़ स्थित व्यास तलैया की है जहाँ अम्रत मंथन ( समुद्र मँथन ) के नाम पर हुये समझोते के बाद भोजन मेँ जहर मिलाकर परोसा गया था ।

बुद्धि विवेक के लिये भी जगह बचाकर चलो ।

आदिवासी आन्दोलन आदिवसी नवजवानों को यह जानकरी अवश्य हो कि आप जो काम कर रहे हैं वह भविष्य में सारी दुनिया को मानना ही पडेगा आप प्रकतिवाद के पुजारी हैं, सबको आज नहीं तो कल उसकी जरूरत होगी ही, कारण कि अति का अंत भी होता है । यही कारण् है कि उस अति के समय जब इंसान सब कुछ भुला देगा तब हमारे पुरातन मानवीय मूल्यों आधारित संस्कति जिसे प्रत्येक राष्ट ने जनजातीय संस्कति को सहेजकर रखने कं प्रावधान रखे हैं ताकि मानवता की विषम परिस्थिति में काम आयेगी इसी तरह इन मूल्यों को '' संयुक्त राष्ट संघ ''ने भी महत्ता के साथ संरक्षित रखा है । आपका काम आपका प्रकतिवादी जनचेतना का संघर्ष व्यर्थ नहीं जायेगा । थोडी सी चकाचैंाध्, क्षणिक सफलता, से प्रभवित होने की आवश्यकता नहीं है । कमजोर लोग भावनाओं में बह जाते हैं भावनाओं में बहकर उसे आत्मसात कर लेना मूर्खता होती है बुद्धि विवेक के लिये भी जगह बचाकर चलो ।