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Showing posts from December, 2015

1.सामाजिक संगठन और उनकी प्रतिबद्धता"

"social work is a thankless task"  साथियों अन्ग्रेजी का यह वाक्य अपने आप में कितना गम्भीर अर्थ लिये हुए है।सच्ची समाज सेवा में लगे लोग शायद इस वाक्य को महसूस करते होंगे, पर सेवा के नाम पर कुछ मेवा की कामना में लगे लोगों को, यह वाक्य जरूर हताश कर सकता है। यह भी सत्य है कि" कुछ करने से उसका प्रतिफल किसी ना किसी रूप मे अवश्य मिलता ही है, पर कुछ करते हुए साथ में पाने की आशा रूपी लालच को साथ लेकर चलने से लालच हताशा पैदा करेगा, पीछे लौट चलने को कहेगा ! ऐसी परिस्थिति में यदि कर्ता उस लालच के चन्गुल में आ गया तो, कर्ता के इतने दिनों के किये पर पानी फिर सकता है। इसलिये सेवा " मति,मोद तथा मेंदोल के सहकार से समग्रता के साथ हो। ऐसी सेवा कर्ता को कभी हताश नहीं कर सकती ! (गुलजार सिंह मरकाम ) सामाजिक संगठन और उनकी प्रतिबद्धता" देश में जिन सामाजिक संगठनों ने अपनी भाषा,धर्म,सन्सक्रति को आधार बनाये बगैर समाज के विकास की बातें की हैं,ऐसे सन्गठन किसी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध नही होते क्योंकि इन्हें किसी भी विचारधारा के साथ चलकर अपनी रोटी सेकने में सहूलियत होती है।ऐसे सन्ग

2016 "नये संघर्ष का शंखनाद"

                             "अंग्रेजी के नये वर्ष 2016 की शुभकामनाओं के साथ"                                आओ नये वर्ष में "नये संघर्ष का शंखनाद" करें                                          इस देश की धरती मेरी मां है । "इस देश की जल जंगल जमीन तथा इसके गर्भ के अंदर छुपी  खनिज संपदा पर प्रथम अधिकार मेरा है ।''                                                                                                                                 (a gondian people)                    अंग्रेजों से देष को मुक्त कराने में पहला खून हमने बहाया हम पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर रहे हैं । पूर्ण स्वतंत्रता का इन्तजार किये बिना कुटिलता से सत्ता का लिखित दस्तावेजों के साथ अंग्रेजों से हस्तांतरण कर लिया गया हमें पता नहीं । सत्ता हस्तांतरण करने वाली भारत सरकार के राश्टपति को देशजो का संरक्षक बना दिया । तब से वह हमारा संरक्षक है । राटपति हमारी संपत्ति की देखरेख एवं उस संपत्ति और उनके वारिशों के सुख सुविधा व्यवस्था के लिये प्रधानमंत्री के मंत्रीमंडल को जिम्मेदारी सोंपता है ।

"राष्ट्र है पर राष्ट्र भाषा का स्थान खाली !"

"राष्ट्र है पर राष्ट्र भाषा का स्थान खाली !" हमारा देश सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। अर्थात स्वतंत्र माना जाता है। स्वतंत्र देश की एक राष्ट्र भाषा होती है,लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि इस देश की व्यवस्था को चलाने वालों ने अभी तक"राष्ट्र भाषा क्या हो" इस पर चिन्तन तक नही किया । जब राष्ट्र भाषा का चयन नही कर सके ,तो राष्ट्र की मातर् भाषा के सम्बन्ध मे तो सपने मे भी ख्याल नही आता होगा । या जानबूझकर अपनी कमजोरी छुपाने के लिये ऐसी भाषा जो राष्ट्र की मातर् भाष ा का स्थान ले सकती है उसे सन्विधान की आठवी अनुसूचि तक मे शामिल नही किया । आठवी अनुसूचि मे शामिल सभी भाषाये क्षेत्रीय भाषा कहलाती है । जो राज्यो के काम काज और बोलचाल मे प्रयुक्त है ,जो अन्य राज्यो मे उपयोग व बोली नही जाती । अन्ग्रेजी भाषा का प्रयोग सभी राज्यो मे है पर यह जनसाधारण की भाषा नही है साथ ही यह विदेशी भाषा भी है जो कभी भी मात्र भाषा या राष्ट्र भाषा ग्राह्य नही होगी । आठवी अनुसूचि मे शामिल क्षेत्रीय भाषाओं की अपनी सीमाएं हैं , ऐसी परिस्थिति में ये राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित नहीं हो

गोन्डवाना समग्र क्रांति आन्दोलन में महत्वपूर्ण और बुनियादी बिन्दु

साथियों, गोन्डवाना समग्र क्रांति आन्दोलन में महत्वपूर्ण और बुनियादी बिन्दुओं ,भाषा,धर्म,सन्सक्रति और उस पर आधारित साहित्य में एकरूपता आ जाना चाहिए,हम अभी तक पुनेम (धर्म) की गुत्थी को नहीं सुलझा पाये हैं । सुलझा है तो कुछ कुछ आन्दोलन की पहचान "सल्ला गान्गरा" "सतरन्गी पुनेम ध्वजा " राज चिन्ह "हाथी पर सवार सिंह" तथा सन्घर्श के लिये "पीली पगडी/दुपट्टा" जिसे देश के कोने कोने में जाना और माना जाने लगा है। धार्मिक  गतिविधियों में भी इसी तरह की एकरूपता की आवश्यकता है, तत्कालीन गोन्डवाना आन्दोलन के आरम्भिक चरण में दो तरह के गोन्ड यथा ( १) रावन वन्शी जो बलि पूजक हैं (२) राम वन्शी (जो बलि नही देते अपने घरों में सत्य नारायण की पूजा करते हुए अपने को आर्य वन्शज का मानते थे") लगातार शोध ,ज्ञानार्जन और आन्दोलन से स्थिति स्पष्ट होकर यह समुदाय अपने आप को "रावन वन्शी” के रूप में स्थापित किया ! इसी प्रकार पूजा पद्धति की तीन धाराए चली (१) परम्परागत पूजा जो आज भी सन्चालित है। (जो अपनी गोत्र व्यवस्थानुशार पारिवारिक एवं ग्राम देवता के लिये ग्राम व्यवस्थानुशार