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Showing posts from September, 2016

"आजादी के संघर्ष की तैयारी"

"आजादी के संघर्ष की तैयारी" शोसल मीडिया की तेज रफतार, संवाद-संचार ने हर क्षेत्र में सामाजिक चेतना और अभिव्यक्ति को नया आयाम दिया है, इसका उपयोग सामाजिक क्रांति में संविधान की मंशानुरूप व्यवस्थित कर लिया गया तो, देश में वर्तमान सडी गली सामाजिक ,संस्कृतिक ,आर्थिक ,राजनैतिक व्यवस्था के खिलाफ एक नई जंग की अच्छी शुरूआत हो सकती है । आसार अच्छे हैं बस आन्दोलनों को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है । वर्ष 1996 में भोपाल प्रवास के दैारान आस्ट्रेलिया से आये एक गोंड मूलनिवासी "केन कोल बंग" नें रायसेन जिले के तिलेंडी ग्राम में गोंडवाना महासभा द्वारा आयोजित एक कार्यकृम में अपने वकतव्य में कहा था "आप लोग व्यवस्था के खिलाफ लगातार जंग जारी रखो जिस तरह आप लोगों ने अंग्रेजो के विरूद्ध सफलता पाई है उसी तरह शोषको से भी मुक्ति पा जाओगे" । यह संदेश आजादी के संघर्ष के लिये तैयारी का संदेश था ।

"देश में अंग्रजो के जमाने की पुलिस ट्रेनिंग टेक्निक बदलने की आवश्यकता है "

"देश में अंग्रजो के जमाने की पुलिस ट्रेनिंग टेक्निक बदलने की आवश्यकता है " आजाद कहे जाने वाले हमारे देश में स्वदेशी पुलिस भी यदि अपनी जनता के प्रति उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर सत्ताधीशों के इशारे पर गोली चालन और लाठीचार्ज करे तो उसे देश भक्ति नहीं राजभक्ति कहेंगे । गहराई से यदि सोच विचार करें तो यह उनकी गल्ति नहीं गल्ति हमारे देश के सत्ताधीशों की है जिन्होने आजादी के बाद पुलिस ट्रेनिंग का नया सिलेबस और तकनीक नहीं तैयार कराया अंग्रेजों के द्वारा तैयार सिलेबस के आधार पर उसी म ानसिकता के जवान तैयार किया जा रहा है उनको केवल सत्ताधीशों का आर्डर मानना है भले ही आम जनता का प्रदर्शन जनहित के लिये किया गया प्रयास हो । और तो और आम नागरिको द्वारा यह भी कहते सुना है कि पुलिस वाला अपने बाप का सगा नहीं होता आखिर क्यों । यह सब अंग्रेजी सिलेबस का प्रभाव है । इस ट्रेनिग को आजादी के बाद बंद करके देश और देशवासियों के प्रति भक्ति की भावना पैदा करने वाले ट्रेनिग सिलेबस की जरूरत है । “अंग्रेजों को केवल दमन और दहसत पैदा करने वाले पुलिस की आवश्यकता थी उनके राज में उनके सिद्धांतो के लिये एैसा कर

"17 सितंबर विश्वकर्मा जयन्ति "

"औद्धौगिक संस्थानो स्वरोजगार के तहत छोटे कलकारखानों के उदयमी और कामगारों को 17 सितंबर विश्वकर्मा जयन्ति की हार्दिक शुभकामना ।  गोंडियन समुदाय का अभिन्न अंग अगरिया ,जिन्हे आज विष्वकर्मा केनाम से जाना जाता है जिन्होनें सबसे पहले लोहे का अविष्कार करके दुनिया को लोहे से परिचित कराया । लोहे के अविष्कारक "अगरिया समूह" ने आधुनिक शिक्षा के पूर्व से ही लोहे के पत्थरों की खोज कर उन्हें अपने हाथों द्वारा विशेष स्वनिर्मित भटटयिों में गलाकर लोहा तैयार कर दे वी देवताओं के प्रतीक चिन्ह लडाई और धरेलू कार्य के औजार बनाने का कार्य करते रहे जो आज भी जारी है । महत्वपूर्ण भुमका समूह में "लोहासुर" के नाम से विख्यात यह पुरातन समुदाय जिसके इस पुरातन ज्ञान को और इस ज्ञान के अविष्कारकों को जो स्थान दिया जाना चाहिये था नहीं मिल सका है ,आज वे देश के विभिन्न हिस्सों में रहकर कहीं अनुसूचित जनजाति के रूप में तो कहीं पिछडावर्ग तो कहीं घुमक्कड जाति के रूप में जाने जाते हैं । गोंडियन व्यवस्था में इनका विषेश् महत्व है विवाह की अंगूठी से लेकर देवताओं के प्रतीक चिन्ह और विषेश अवसरों पर विषेश रीति

एक कविता पर बहस !

"एक कविता" हमारे फेसबुक मित्रों ने एक कविता पर बहस में भाग लेते हुए एकता, बिखराव, गददारी, व्यक्तिवाद, पारदर्शिता, संगठन, कोर कमेटी, प्रजातांत्रिकता, आन्दोलन आदि के विषय में पोजिटिव निगेटिव सभी तरह के विचारों को रखकर अपने मन की भावनाओं को उजागर किया ! इन सब बातों का यदि निष्कर्श निकाला जाय तो मेरी दृष्टि में कुछ मित्रों को अपवाद स्वरूप छोड दिया जाय तो, अधिकांश मित्र एक अज्ञात भय जिसे सीधा व्यक्त ना करके परोक्ष रूप में से ग्रसित नजर आये । इसका मतलब हमारा समाज अभी भी उसी राजतंत् र मानसिकता में जी रहा है, जिस मानसिकता में राजा ने आदेश दे दिया उसका आंख बंद कर पालन करना उसमें बुद्धिविवेक की गुजाईस नहीं छोडना । इस तरह की मानसिकता राजतंत्र व्यवस्था में सहीं था पर आज हम प्रजातंत्र के युग में जी रहे हैं प्रजातंत्रिक व्यवस्था में किसी की अभिव्यक्ति को रोका नहीं जा सकता भावनात्मक माध्यम से तो कभी भी नहीं ! यदि हम उस मानसिकता के साथ प्रजातंत्र में जीने का प्रयास करेंगे तो कठिनाई होगी ! आज केवल भावुकता के कारण अन्यों को सत्तासीन कर देते हैं ! सोचते हैं कि समाज तो तैयार दिख रहा था लेकिन पर

"हम प्रकृतिवादी हैं, हमारी न्याय दृष्टि प्रकृतिवादी होना चाहिये ।"

"हम प्रकृतिवादी हैं, हमारी न्या य  दृष्टि प्रकृतिवादी होना चाहिये ।" प्रायोजित प्रभाव बाहर से देखने में अच्छा लगता है पर उसे अंदर से भी झांको । आज का जमाना पारदर्शिता का है यदि इस तरह से चला नहीं गया तो लोग उंगली उठाने से नहीं रूकेंगे । मैंने पहले भी लिखा है "अंध भक्ति और अंध श्रद्धा" नुकसान दायक होती है । "बौद्धिक आस्था बौद्धिक तत्वों के साथ चलने वाला कोई भी प्रयोजन व्यर्थ नहीं जाता ।" चाटुकारी इतिहास ने गांधी को महानायक बना दिया सबका ध्यान उधर चला गया लम्बे समय तक किसी विचारध ारा ने इसे भुनाया भी और कुछ लोग आज भी उसे भुना रहे हैं पर वक्त बदला गांधी आज देश में विलेन के रूप में स्थापित हो चुके क्यों । इसका कारण है लोगों नें छानबीन शुरू की उनका असली इतिहास जाना । वहीं अम्बेडकर को इतिहास ने अंग्रेजो का पिटठू के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया पर आज वही अम्बेडकर सबका चहेता क्यों । अब लोग खोज और शोध कर रहे हैं ,एक और उदाहरण है आदिवासियों की परंपराओं, रिवाजों को लोगों के साथ साथ हमारे अज्ञान भी पिछडापन का पर्याय मानते रहे आज बुद्धिजीवी इस पर शोधपरक त

आदिवासी समुदाय के आंतरिक और गूढ ज्ञान का संहिता करण

"गोंडवाना के समस्त आदिवासी समुदाय के आंतरिक और गूढ ज्ञान का संहिता करण किया जाये ।"  गोंडवाना के समस्त आदिवासी समुदाय का गुणी और ज्ञानवंत व्यक्ति समाज के विकास से संबंधित ज्ञान को उभारकर आंतरिक और गूढ ज्ञान को सामाजिक सतह पर लाकर उसका सहिंताकरण करे । उस ज्ञान से समाज को अवगत कराये संस्कारित करे । यही ज्ञान हमारी आने वाली पीढीयों का सदैव मार्गदर्शन करती रहेगी । अन्यों के द्धारा हमारे ज्ञान के संहिताकरण में काफी विभेद है पर आज के समय में सोशल मीडिया के माध्यम से समाज के बहुत से गुण अवगुण और हर तरह का ज्ञान उभरकर सतह पा आ रहा है, इसका पत्र, पत्रिका, पुस्तक, फोटो, वीडियो आदि के माध्यम से लगातार संहिता करण किया जाये ।

"गोंडवाना के अंदर आदिवासी या आदिवासी के अंदर गोंडवाना ।"

"गोंडवाना के अंदर आदिवासी या आदिवासी के अंदर गोंडवाना ।" गोंडवाना आन्दोलन में सक्रिय लोग भलीभांति जानते हैं कि गोंडवाना आधी धरती का नाम है । गोंडवाना एक भूभाग है गोंडवाना एक राष्ट्र है गोंडवाना 16 वीं सदी तक भी एक राज्य के रूप में भी देश के नक्से में मौजूद था, फिर आदिवासी तो उसी भूभाग राष्ट्र या राज्य के अंदर ही मौजूद रहा है । इसलिये हमें आदिवासी को अलग देखकर गोंडवाना की कल्पना नहीं कर सकते ना ही गोंडवाना को विस्मृत करके आदिवासी के अतीत के गौरव को बढा सकते । इसलिये समस्त आदिवासी मूलनिवासी गोंडवाना भूभाग, गोंडवाना राष्ट्र, गोंडवाना राज्य, का मूल वासिंदा है । यही मूलनिवासी आदिवासियों का राष्ट्र है । इस पर समस्त मूलनिवासियों को गर्व होना चाहिये । चाहे वह देश के किसी भी इलाके का मूलनिवासी हो । "देश को हिन्दुस्तान कहकर छदम हिन्दुत्व को मजबूत मत करो ।" हमारे पछे लिखे बहुत से लोग जाने अंजाने में देश को हिन्दुस्तान कह कर संबोधित करते हैं । इस गल्ति का सुधार होना चाहिए । इसतरह के संबोधन से हम कहीं ना कहीं देशवासियों की बुद्धि में ठूस ठूस कर भर दी गई हिन्न्दु मानसिकता को ब

"हमारा गोंडवाना आन्दोलन"

"हमारा गोंडवाना आन्दोलन" हमारा गोंडवाना का गोंड अभी गोंडवाना आन्दोलन के भावात्मक स्टेज में है "भावनाओं में बहकर उसे आत्मसात कर लेना बेवकूफी से कम नहीं होती हमें आन्दोलन को भावनाओं के साथ बौद्धिक चिंतन के साथ आगे बढाने का काम करना होगा" अन्यथा कभी किसी अगुवा के माध्यम से कोई भूल हो जाये तो उसे बौद्धिक ज्ञान देकर आन्दोलन को बनाये रखने हेतु निवेदन या परामर्श दिया जा सके । "गोंडवाना आन्दोलन और गोंडवाना के लोग !" गोंडवाना आन्दोलन के लोगों को गोंडवाना आन्दोलन को सफल करना है तो उप्र, बिहार के तुम्हारे आदिवासी भाई से राजनीतिक ज्ञान लो, महाराष्ट्र से धार्मिक कटटरता सीखो, मध्यप्रदेश से सहनशीलता को अंगीकार करो , गुजरात से आक्रामकता का गहना पहनो, छ0ग0 उडीसा से भोलापन एवं संस्कार सीखो आपका प्रकृतिवादी दर्शन और आन्दोलन जरूर सफल होगा ! यदि इन विशेषताओं का अनुशरण नहीं कर सके, तो गोंडवाना समग्र क्राति आन्दोलन के सपनों को साकार करना आसान नहीं । यदि अहं भाव में रहे तो हम अपने आन्दोलन के साथ कहीं ना कहीं नाइंसाफी कर रहे हैं ।

संविधान में पांचवीं अनुसूचि की ताकत"

"संविधान में पांचवीं अनुसूचि की ताकत" आप सभी को ज्ञात है कि विगत वर्षों में निर्वाचन आयोग द्वारा राजनतिक क्षेत्रों का सीमांकन और पुनर्गठन हुआ था जिसमें आरक्षित क्षेत्रों की भौगोलिक सीमा बढाई गई, कहीं सामाजिक अनुपात को तहस नहस किया गया, कहीं सामाजिक राजनैतिक रूप से जागरूक क्षेत्रों से सीटें कम कर अन्यत्र किया गया, आम नागरिक को समझ में नहीं आया । चालाक राजनीतिज्ञों ने इसका भरपूर फायदा उठाया, अपनी सीटों को अपने मुताबिक घोषित कराने में सफल रहे । इस पुनर्गठन में सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासी समुदाय को हुआ है ! कारण भी है कि इनकी भैगोलिक सीमा बढाने से प्रचार प्रसार में अधिक आर्थिक व्यय, बढी जनसंख्या वाले क्षेत्र होने के बावजूद सांसद मद या विधायक मद की राशि का क्षेत्रों में समान आबंटन आदि आदि .. परन्तु यह पुनर्गठन झारखण्ड राज्य को प्रभावित नहीं कर सका ? जानतें हैं किसलिये ! चूंकि देश में एकमात्र राज्य है जिसमें निर्वाचन आयोग को झुकना पडा और उसका पुनर्गठन नहीं किया । सभी सीटे पूर्ववत रहीं आखिर क्यों ! इसका जवाब है "पांचवी अनुसूचि की वास्तविक शक्ति" जो आदिवासी मंत्रणा परिषद के

"सन्गठन और सन्विधान"

"चमचागिरी दर्शन,कोरी ताकत का भ्रम" एक उंचे और मजबूत पेड के तने के इर्द गिर्द चिपक कर कमजोर लता बेली पेड की उंचाई तक चला जाता है और उसे भ्रम हो जाता है कि पेड की ताकत को सम्मान देने वाले मेरी उचाई का भी सम्मान कर रहे हैं । परन्तु उस लता बेली को इतना याद रखना चाहिये कि जिस दिन मजबूत तने से हटेगा तो उसकी ताकत और उंचाई कुछ भी नहीं होगी । "समाज और राजनीति " "राजनीति, राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर समाज का अन्कुश नहीं होने से राजनेता बेलगाम होकर सन्विधान की नीति और नियमो को ताक मे रखकर व्यक्तिगत नीतियों और नियमों को मनमानी ढन्ग से समाज पर थोपने लगता है । इन सबके चलते स्वस्थ प्रजातन्त्र की कल्पना मात्र की जा सकती है।" "सन्गठन और सन्विधान" -किसी सन्गठन की रीढ उसका सन्विधान होता है। जो सन्गठन अपने सविधान के उद्देश्यो नियमो के अनुसार नहीं चलते एैसे सन्गठन कभी भी सफल नहीं होते ! ऐसे सन्गठन व्यक्तिवाद के शिकार हो जाते हैं।