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Showing posts from October, 2016

"महामहिम राष्ट्रपति महोदय को ईमेल से भेजा गया पत्र ।"

                                                      (अनुनय, विनय, निवेदन, अपील) प्रति  महामहिम राष्ट्रपति महोदय  राष्टपति भवन,भारत सरकार नई दिल्ली विषय :- राष्ट्रीय सकल आय का मेरे हिस्से की राशि मेरी भाषा और धर्म के विकास के लिये लगाई जाय अन्यथा मेरे हिस्से की उस मद की राशि मेरे खाते में जमा कर दिया जाय ।  मैं जानता हूं कि एैसा कहने पर आप मुझे अलगाववादी कह सकते हैं । पागल और दिवालिया घोषित कर सकते हैं । परन्तु ये मेरे अंदर का आदिवासी इंसान बोल रहा है । जब मैं देश के विकास के लिये श्रम करता हूं । उपभोक्ता बनकर वस्तुओं की मूल लागत के साथ टेक्स जोडकर अधिक राशि व्यय करता हूं । तुम्हारे कथित विकास नाम के झांसे में आकर अपना खेत खलिहान जंगल नदी पहाड रिस्तेदार नातेदार छोडकर अनचाही जगह पर रहने के लिये भी राजी हो जाता हूं । तब भी आपको इतना ख्याल नहीं कि इसकी मां रूपी भाशा को सम्मान दिया जाय या इसके पिता रूपी धर्म को राजाश्रय दिया जाय । आपको मालूम है कि आदिवासी को अपनी संस्कृति से अधिक प्यार है तब इसकी संस्कृति को हूबहू बचाये रखकर इनके विकास के लिये कोई योजना क्यों नहीं बनाते । आपकी विकास की

"शोसल मीडिया और आदिवासी"

"शोसल मीडिया और आदिवासी"  जो समुदाय अखबारों से दूर रहा , रेडियो टीवी तक उसकी उसकी पहुच से कोसों दूर बने रहे ! तब वह अपनी पीड़ा कैसे ,कहा व्यक्त करता ? उसे भी तो सुनाना था अपने जन्गल की कहानी, उसे अपने गौरवशाली अतीत, अपने पुरखो की वीरता का बयान भी तो करना था ! नहीं कर पाया, उसकी जुबानी इतिहास अलिखित तथा परम्परागत, अनवरत चल रही जमीनी, व्यवहारिक क्रियाकलापो को कौन लिखता ? औरों तक कौन पहुंचाता ? औरों ने इनके बारे में लिखा भी , अन्य माध्यमों से इसे पहुंचाने का प्रयास भी क िया परन्तु उसके प्रस्तुत करने के ढन्ग ने , परोसने के तरीके ने ! आदिवासी के गौरवपूर्ण इतिहास, परम्परा, आलिखित साहित्य को पिछडापन का पर्याय बना दिया । नैसर्गिक आदिवासी जीवन पद्धति जो देश की मुख्यधारा बनकर राष्ट्र निर्माण के लिये देशभक्तो और श्रमवीरो का उत्पादन करती , इसकी सही प्रस्तुति / सम्प्रेषण के अभाव से देश वन्चित हो गया। आज जिसे राष्ट्र की मुख्यधारा का नाम दिया जाता है यह जबरदस्ती के प्रस्तुति / सम्प्रेषण का परिणाम ही तो है। इसी जबरदस्ती ने दुनिया में हमारे राष्ट्र की साख को हर क्षेत्र में गिराने का काम किया

"सांस्कृतिक युद्ध की पहली विजय"

"सांस्कृतिक युद्ध की पहली विजय" "आज भले ही सत्ता के संरक्षण में, सत्ता के प्रभाव में असली रावेन की विचारधारा के प्रतीक रूप रावण के पुतले जलाये गये पर यह सांस्कृतिक युद्ध की पहली शुरूआत है, जब सारे देश में किसी ने "कागज के राम जलाये" किसी ने "रावेन की पूजा की" तो किसी नें अंतर्मन से "राम के कृत्य" का विरोध किया । पर सारे देश में आदिवासियों और अन्य मूल संस्कृति के धारकों के मन से "राम निकल गये" ये सांस्कृतिक युद्ध के शुरूआत की पहली विजय है । इसी तरह लगातार वैचारिक और व्यवहारिक धरातल पर हमारे जाबांज सैनिक आगे बढते रहे तो "असत्य पर सत्य की विजय" सुनिश्चित है । मनुवाद पर मानवतावाद, बामनवाद पर भुमकावाद (श्रमणवाद) आर्यों पर अनार्यों की विजय सुनश्चित है ।"- gulzar singh markam

"विजित और विजेता भाव का प्रतीक है रामायण ।"

"विजित और विजेता भाव का प्रतीक है रामायण ।" हर विजेता विजित राष्ट्र पर सत्ता स्थापित करने के बाद उस राष्ट्र की प्रमुख पहचान को मिटाकर अपनी पहचान स्थापित करता है । उसका पहला शिकार स्थापत्य या एैतिहासिक धरोहर होता है । नये निर्माण के साथ व्यवस्था बदलने के लिये अपने अनुकूल भूगोल की सीमाऐं बदलता है । शिक्षा और साहित्य को अपनी व्यवस्था का दर्पाण बनाता है । यह सब कर चुकने के बाद सत्ता के प्रभाव जिसमें भय और सहिष्णुता दोनो के बल पर सांस्कृतिक विजय अभियान की ओर अग्रसर होता है । चूं कि संस्कृति में एकदम से परिवर्तन लाना किसी भी विजेता के लिये संभव नहीं । कारण कि यह समाज की आंतरिक आस्था विश्वास और मान्यता रूपी धरोहर हैं । आदि रावेन पेरियोल को उसी नाम और भाव से विस्मृत नहीं किया जा सकता था ।इसलिये उसे प्रतीक रूप काल्पनिक कहानी रामायण की रचना कर मिलते जुलते नाम के पात्र रावण को बुराई का प्रतीक बनाया गया ताकि जनमानस का ध्यान आदिरावेन को भूलकर रावण को बुराई का प्रतीक के रूप में स्थापित हो सके । विजेता सत्ता के प्रभाव का इसी तरह इस्तेमाल करता है । आप भी अवगत हैं कि भरतीय इतिहास की समीक्षा

“टिकिट वितरण समारोह”

“ बहुत विचार कर रहा था कि एक छोटा सा प्रहसन या नाटक लिख दूं पर किन्हीं कारणों से या समयाभाव के कारण ही सही पर लिख नहीं पाया अब उस तरह की चेतना का एहसास सामाजिक पर्यावरण में देखने को मिलने लगा है , तब यह छोटा सा प्रहसन शायद इस बात को हवा देने में अपनी भूमिका अदा कर सकता है । “ प्रस्तुत है ( गुलजार सिंह मरकाम )                                                 “ टिकिट वितरण समारोह ” प्रदेश में आम चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही राजनीतिक दलों में अफरा तफरी मची हुई है । टिकिट की जुगाड में लोग नेताओं से मिल रहे हैं कई छोटे बडे नेताओं की इस समय चटक गई है । जत्था का जत्था किसी ना किसी नेता के इर्द गिर्द मडराता नजर आ रहा है ना जाने भैया किसके डपर हाथ रख दें । अनेक सिफाारिशें हो रहीं हैं पेनल बन रहे हैं ना जाने क्या क्या हो रहा है अवर्णनीय है ।                                                  ( टिकिट वितरण समारोह के एक पार्ट आरक्षित वर्ग की सीटो पर प्रहसन का दृष्य ) विकासखण्ड का एक प्रतिष्ठित व्यापारी अपने नौकर से-   क्यों रे बुद्धसिंह चुनाव लडेगा । बुद्धसिंह-    क्या मालिक मालिक