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Showing posts from November, 2016

"सियासत और सियासती"

"सियासत और सियासती" हुकूमत क्या नहीं करती जरा एक बानगी देखो कथित नक्सलवादी बने स्कूली बच्चों को देखो । जहां जिन्दों को कागजो में मार देते हैं । मरों के नाम से भी कई कारोबार चलते हैं । सियासत ठीक है सियासत भी जरूरी है । पर सियासी लोग ही सब उल्टे सीधे काम करते हैं । जेल से लोग भागे थे या भगाये गये होंगे प्रहरी भी शायद सूली पर चढाये गये होंगे फर्क पडता नहीं की ये मरा या वो मरा होगा । सियासत के लिये ये खेल से बढकर नहीं होता कोई चाहेगा कि देश में हो बेवजह दंगा सियासी हमाम में झांको तो हर कोई दिखे नंगा ।

एक प्रतिक्रिया - "हमें धर्म सन्सक्रति के पचड़े में नहीं पडना चाहिए " हमे सन्वैधानिक जानकारी से रोजी मिलेगी धर्म हमे रोटी नहीं देने वाला"

"एक फेसबुक मित्र ने कहा कि हमें धर्म सन्सक्रति के पचड़े में नहीं पडना चाहिए " हमे सन्वैधानिक जानकारी से रोजी मिलेगी धर्म हमे रोटी नहीं देने वाला आदि आदि ----- मित्र आपकी बात सही है कि हमें सन्वैधानिक जानकारी हो। इतना पढ लिखकर भी इतने दिनों तक इस जानकारी के प्रति आकर्षण क्यों पैदा नहीं हुआ ? अब क्यों हो रहा है, इस बात को गहराई से समझना होगा अन्यथा सन्विधान में तो सबसे अधिक आदिवासीयो के हित की बात लिखी गयी है पर हासिल करने में हम पीछे क्यों ? इसका एक ही कारण समझ में आता है कि किसी चीज को हासिल करने वाले समुदाय में आत्मविश्वास , हिम्मत का होना आवश्यक है । सन्गठित होना आवश्यक है । और ये केवल पढ लिख लेने से नहीं आता, इसके लिए समुदाय को अपनी जड़ों को सीचना पडता है, समाज को उसकी भाषा धर्म, सन्सक्रति से कट्टर बनाना होता है तभी उसे अपने समुदाय के हित अहित का आभास होता है अन्यथा व्यक्ति पढ लिखकर व्यक्तिगत लाभ लेकर एवं स्वार्थ में समुदाय को भूल जाता है। कारण कि उसे अपनी जड का एहसास नहीं हो पाता उसमे सामुदायिक सोच विकसित नहीं हो पाती , हम उन्हें कोसते हैं। कभी आपने सोचा है कि हमसे अधिक

"समाज को कविता और कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी जन चेतना पैदा करने की अनिवार्य आवश्यकता है । "

"समाज को कविता और कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी जन चेतना पैदा करने की अनिवार्य आवश्यकता है । " गोंडवानं समग्र क्रांति आन्दोलन अनेक विधाओं में किसी तरह शनै: शनै: आगे बढ रहा है । एैसे विचार प्रवाह में एक विधा जो पढे लिखे वर्ग को प्रभावित कर सकती है, समाज का आईना अपनी विधा के माध्यम से ,उन्हें अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करने का अवसर दे सकती है । वह विघा है , काव्य पाठ या कवि सम्मेलन । किसी ने कहा भी है "जहां रवि ना पहुचे वहां कवि पहुचता है ।" उसकी अपनी दृष्टि होती है जिसे वह अ पनी काव्य विधा के माध्यम से जन जन तक रस भरे अंदाज से प्रेम से पहुचा सकता है । होने को तो हमारे बीच अनेक स्थानीय स्तर पर लिखने वाले बहुत से कवि हैं पर आन्दोलन की दृघ्टि से अपनी बात अपने लहजे में पहुचाने वालों की काफी कमी महशूस की जा रही है । इसलिये हमारे समाज के जितने भी कवी हैं उन्हें एक दूसरे से संलग्न हो जाना चाहिए !जो जिम्मदारी उठा सकते हैं एैसे कुछ कवि हृदय हैं, जो गोंडवाना आन्दोलन के लिये कवियों का एक मंच स्थापित कर सकते हैं जिनको समुदाय आमंत्रित कर सके । पहले पहल छोटे स्तर पर ही सही लेकि

"राजनीति या नीति का राज"

"राजनीति या नीति का राज" सत्ताधारी राजनीतिक दलों की नीतियों के आंतरिक राज की जानकारी आम जनता को नहीं होने के कारण आतंकवाद, नक्सलवाद और भृष्टाचार, बलात्कार पनपता है या पनपाया जाता है ।  सभी राजनीतिक दलों की राजनीतिक घोषणा पत्र देशहित और जनहित की होती है । एैसा प्रचारित भी किया जाता है । फिर अव्यवस्था क्यों । कहीं कोई राज तो नहीं छुपाकर रखते हैं राजनीतिक दल ।  इस राजनीति को दूसरे तरीके से समझा जाय तब राजनीतिक दलों की असलियत का पता चलता है ।  1-राजनीति यानि देश पर अपने विचारों  के माध्यम से संविधान और सत्ता चलाना 2-अपनी नीतियों के अंदर छुपे राज को अमल में लाना, जिस राज को केवल दल का "नीति नियंता" ही समझता है । ( दलों की राजनीतिक घोषणा पत्र को नहीं ,दलों की नीतियों के अंदर छुपे राज को समझना जानना राजनीति समझ है । )-gsmarkam

दिवारी के बाद गोन्डवाना की सान्क्रतिक परम्परा में "मडई"

दिवारी के बाद गोन्डवाना की सान्क्रतिक परम्परा में "मडई" दिवारी के बाद गोन्डवाना की सान्क्रतिक परम्परा में "मडई" का आयोजन विशेष महत्व रखता है। दिवारी से लगातार ग्यारह तक चलने वाले विभिन्न एवं विशेष ग्रामो में जहाँ किसी परिवार में "गुरुवा बाबा" पित्र पुरुष शक्ति या लिन्गो की स्थापना की जाती है उस ग्राम मे विशेष पर्व एव अनुष्ठान किया जाता है । मैदान के बीचो बीच दिवारी के दिन से लगातार अपना योगदान देने वाले देवार या भुमका के द्वारा गुरुवा बाबा का अस्थायी ठाना बनाया जाता है जिस में मोरपन्ख से सजा गुरुवा के नाम की बान्स से सजा ढाल या कही गुरुवा चन्डी का प्रतीक गडाकर आसपास घेरे में आड के लिये कपड़े का घेरा बना दिया जाता है। इस मडई में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्ति विशेष के परिवार में दिवारी के दिन से स्थापित गान्गो या जिसे चन्डी दायी भी कहा जाता है , कही जन्गो दायी भी कहा जाता , की स्थापना जो मोर पन्ख से सजे बान्स मे की जाती है । इन्हे मडई स्थल पर कोपा/अहीर नाच मन्डली एव वहा के ग्रामवासियो के साथ जिसे "पहुवा" कहा जाता है , आते है और एक निश्चित

मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के अवसर पर विशेष सन्देश:-

मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के अवसर पर विशेष सन्देश:- 1 "१ नवम्बर गोन्डवाना के लिये काला दिवस" १ नवंबर १९५६ गोन्डवाना की अस्मिता के साथ खिलवाड के लिये काला दिवस के रूप में सदैव जाना जायेगा। इसी दिन गोन्डवाना के अस्तित्व को मिटाने का शडयन्त्र पूर्वक एलान किया गया था। राज्यों के पुनर्गठन के समय देश के भाषावार प्रान्तों के निर्माण करते समय लगभग सभी राज्यों के भाषा को आधार मानकर मापदंड तय किये गये, लेकिन मध्य प्रांत (सीपी & बरार) राजधानी नागपुर , जिसमें पूर्व गोन्डवाना राज्य का सम्पू र्ण गोन्डी भाषिक क्षेत्र आता था उसके टुकड़े टुकड़े कर गोन्डवाना के गोन्डी भाषिको के लिये गोन्डवाना राज्य नहीं बनाकर उन्हें महाराष्ट्र, आन्ध्रा , उडीसा और मध्यप्रदेश के नाम पर मराठी, तेलुगु , उडिया , हिन्दी आदि बोलने को मजबूर करके भाषा एवं सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का घ्रणित कार्य किया गया। इस शडयन्त्र को गोन्डवाना के लोग कभी नहीं भूलेगे । गोन्डवाना समग्र क्रांति आन्दोलन की प्रमुख धारा " भाषा,धर्म,और सन्स्क्रति" है । इसे मजबूत किये बिना हम किसी भी लक्ष्य को हाशिल नही कर पायेगे । गोन्डवाना