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Showing posts from 2017

"आर्य बनाम अनार्य की मानसिकता बनाकर हर बिन्दु पर सन्घर्ष करना होगा।"

"आर्य बनाम अनार्य की मानसिकता बनाकर हर बिन्दु पर सन्घर्ष करना होगा।" मूलनिवासियो को यदि देश मे आरक्षण व्यवस्था की पूरी समझ है , शोषक/शोषित को व्यवहार में देख रहा हो जिसने पन्द्रह /पचासी का इतिहास पूरी तरह खन्गाल लिया है । उसे यह कहने की आवश्यकता नहीं कि उसे किस विचारधारा के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक संगठन के साथ खड़ा रहना है । किन महापुरुषों को सम्मान देना है । उनकी आस्था के देवी देवता और अराध्य स्थल कौन हो सकते है , इसका पूरी तरह ख्याल रखना होगा । अन्यथा खोखला मूलनिवासी आन् दोलन चलाने के नाम पर मूलनिवासीयो को गुमराह न करें । पासवान और डा0 उदितराज जैसे बहुत से नेता कुछ मूलनिवासीयो को यह कहकर अपनी साख बनाने में सफल हैं कि दुश्मन के साथ रहकर उनकी गतिविधियों को समझकर मूलनिवासीयो के सन्रक्षण की बात की जा सकती है। पर मेरा मानना है कि एैसे लोग केवल स्वहित के लिए समुदाय को गिरवी रखकर भोलेभाले समुदाय को सन्तुष्ट कर सकते हैं ,लेकिन मूलनिवासी समुदाय अब इन सब बातों से भिज्ञ है, उसे अपने पराये का भेद समझ में आने लगा है, विचारधारा के विरोधी और समर्थकों की समझ अब आने लगी है। इसलिये मू

"संविधान बदलने की मंशा कांग्रेस में बैठे मनुवादी मानसिकता के लोगों की भी है ।"

(1) "संविधान बदलने की मंशा कांग्रेस में बैठे मनुवादी मानसिकता के लोगों की भी है ।" यही कारण है कि भाजपा के लिये शनैः शनैः देश में पूरी तरह काबिज होने में सहयोग कर रहा है । धीरे धीरे मूलनिवासियों को उलझाये रखकर भाजपा को बाकोबर देता जा रहा है ताकि भाजपा के पूर्णरूप से सत्ता में आने तक मूलवासी कोई बडी राजनीतिक ताकत खडी ना कर सकें ।कांग्रेस में बैठे हमारे आदिवासी नेताओं ,समर्थकों को इस बात से झटका महसूस हो सकता है लेकिन यह कटु सत्य है ।-gsmarkam (2) "तीन तलाक प्रसंग" असली चिंता का कारण "तीन तलाक" नहीं वोट है ,कथित हिन्दू ,मुस्लिम के बीच आपस में दूरी बनाये रखने का प्रयास है , देखें बानगी । असली चिंता का कारण तलाक नहीं वोट है जिसको हासिल करके और अधिक मनमानी किया जा सके । देश में हर मुददा अब वोट कबाडने का साधन बन रहा है । राष्ट्र हित के चिंतन का मतलब सिर्फ वोट की चिंता है सामाजिक सरोकारों की किसी सरकार या जिम्मेदार लोंगों को चिंता नहीं ? मीडिया भी इस तरह के हर मुददे को अपनी चाटुकारिता की हवा देने में लगता रहता है ! महिला स्वतंत्रता के पक्ष में सभी वर्ग है पर
“अजब गजब, लेकिन सच्चाई है “ भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है , और इसी विविधता के अन्दर राष्ट्रीयता की खोज की जाती है , यह खोज का कार्य देश की कथित आजादी के बाद से लगातार जारी है । परन्तु राष्ट्रीयता पनपने की बजाय राष्ट्र की सम्पत्ति की लगातार लूट हो रही है । राष्ट्र को गुलामी की बेडियों में डालने का क्रत्य जारी है । इसका समाधान दूर तक होता दिखाई नहीं देता ? आखिर क्या वजह है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि “ सबको राष्ट्रवाद की भावनाओं में बहाते चलो , और चालाकी से अपनी जाति बिरादरी को ताकतवर और मजबूत करते रहो !” इसलिये मेरा मानना है, कि मेरी बात भले ही कुछ कथित राष्ट्रवादियों के गले नहीं उतरेगी पर मेरी दृष्टि में यही सच है , कि राष्ट्रवाद के लक्छ्य को हासिल करने के लिय , जातिवाद को बढाना होगा ,जब जातियाँ एक सूत्र में होंगी तब वर्गीय मानसिकता पैदा होगी ,  वर्गीय मानसिकता राष्ट्रवादी होने की स्थिति पैदा करेगी । कारण है कि आज देश में जातीय भावना भी पनप नहीं पायी है , आज एक जाति भी एक सूत्र में नहीं है और उससे वर्गीय सहयोग की अपेक्छा की जाती है , उसे अपनी जाति से पूर्ण सहयोग प्राप्त होने का

" गोंडवाना आन्दोलन को धोखे में मत रखो" "अनापेक्षित विवाद संभव है ।"

" गोंडवाना आन्दोलन को धोखे में मत रखो" "अनापेक्षित विवाद संभव है ।" निश्चित ही अनापेक्षित विवाद हो रहा है । जो जितने स्तर पर अपनी सोच रखता है वह सब सामने आ गये । मैं जानता हूं बुद्धिमान आदमी "लडैयों में बारूद नहीं खेना चाहता उसे शेर के लिये सुरक्षित रखता है" । अब एक प्रश्न के साथ आगे बढते हैं । पूर्व की बातें नहीं दुहराई जायेंगी यथा धर्माचार्य वरकडे दादा । ना ही डा0 मरकाम देवहारगढ शक्तिपीठ के संचालक । 1. अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभ छ0ग0 का अब तक विश्वास अर्जित क्यों नहीं कर पाये । 2. आदिवासी सत्ता मासिक पत्रिका के संपादक की विद्धवता का उपयेग क्यें नहीं कर पाये उल्टा उन्हें कमजोर करने के लिये मंचों में उसका विरोध कर गोंडवाना सत्ता नामक पत्रिका को चलाने का प्रयास किया जा रहा है । किसकी सह पर । 3. कंगला माझाी सरकार और उसकी संरक्षक तिरूमाय फुलवा देवी का विश्वास अर्जित करने में क्यों असफल रहे । 4. गुरू बाबा भगत सिदार और गुरू माता निवासी तिवरता का विश्वास क्यों खो दिये ये सभी बातें किसके लिये हैं अपने आप समझ लेना है । नहीं समझ सके तो गोंडवाना आन्दोलन के

"आदिवासी समुदाय हित में चिन्तन करने वाले आदिवासी मित्रों को अपने दलों और सन्गठनो की प्रतिबद्धता को उजागर करना चाहिए"

"आदिवासी समुदाय हित में चिन्तन करने वाले आदिवासी मित्रों को अपने दलों और सन्गठनो की प्रतिबद्धता को उजागर करना चाहिए"  विभिन्न राजनीतिक दलों में काम करने वाले उससे संबद्ध हमारे आदिवासी मित्र, जो आदिवासी समुदाय की सेवा करने की बात करते हैं उन्हें अपने अपने सम्बद्ध राजनीतिक दल के प्रति वफादार होना चाहिये । इस वफादारी के लिये उन्हे समुदाय को समाज सेवा के नाम पर अन्धेरे मे नही रखना चाहिये । समुदाय अपने आप आपको सहयोग या विरोध मे फैसला कर देगा । इसमे छदम वेष मे अपने आप को प्रस्तुत  करने की आवश्यकता नही । कुछ कथित आदिवासी हित की बात करने वाले मित्र अपने दलो की पहचान को छुपाकर आदिवासी हित की बात करते है उन्हे छुपाने या शर्म करने की अपेक्षा खुलकर अपने सम्बद्ध दल की अब तक आदिवासी हित मे किये जा रहे कार्यो की प्रस्तुति दे । शोसल मीडिया मे जुडे मित्र अपनी पार्टी सम्बद्धता को क्यो छुपाते है । ना छुपाये ,इससे आपकी छवि आपके जुड़े सन्गठन और समुदाय मे सन्दिग्ध होती है । अपनी पार्टी सम्बद्धता को जरूर स्पष्ट करे । सम्बद्ध सन्गठन और समुदाय आपके क्रियाकलापो का मूल्यान्कन खुद कर लेगा । दोहरी मानसि

“भारत का मूलनिवासी,कहलाना है तो शूद्रत्व से मुक्त होना पडेगा ।”

भारत के मूलनिवासी, मूल बीज को आव्हान- “भारत का मूलनिवासी,कहलाना है तो शूद्रत्व से मुक्त होना पडेगा ।” भारत का मूलनिवासी, आदिवासी हिन्दू नहीं तब मूलनिवासी कहा जाने वाला अनु जाति और अन्य पिछडा वर्ग ,हिन्दू कैसे ? यदि हिन्दू है तो चौथे वर्ण शूद्र का प्रतिनिधि है । जो मूलनिवासी दर्शन का हिस्सा नहीं । इस लिहाज से यह समूह भी विदेशी आर्य समूह का हिस्सा है । मूलनिवासी होने का एकमात्र मापदंड है ,शूद्रत्व से मुक्ति ! शूद्रत्व से मुक्त होना ही मूलनिवासी होने का प्रमाण है । मूलनिवासी होने के लिये मूल पहचान संस्क्रति को मजबूत करना होगा । केवल सरकारी सुविधा प्राप्त करने के लिये सूचि मात्र में शामिल होने से शूद्रत्व से मुक्ति या मूलनिवासी पहचान स्थापित नही किया जा सकता-gsmarkam

"आदिवासियों का नॉन ज्यूडिशयल प्रसंग"

साथियों ५ वीं अनुसूचि के अंतर्गत परंपरागत रूढी व्यवस्था,आदिवासियों को अपने स्वयं के तरीके से जीने ,विचरण करने का अधिकार देती है । जिसे संविधान के दायरे में रहकर एकता बनाकर इस अधिकार को हाशिल किया जा सकता है  । जो ज्यूडिशियल दायरे में रहकर  नान ज्यूडिशियल बना जा सकता है , जिसे संविधान की सहमति भी है , परन्तु भारतीय संविधान से ऊपर उठकर नान ज्यूडिशियल बनना है तो आदिवासियों को पुन: स्वतंत्रता संग्राम करना होगा ! संविधान और संविधान के हर कानून का बहिस्कार करना पडेगा । ध्यान रहे आज की तारीख में संविधान से बडा कोई व्यक्ति , समुदाय या संगठन नहीं है , जो भी अधिकार हाशिल करना है संविधान के दायरे में ही रहकर करें । जनचेतना और माहौल बनाना अलग बात हो सकती है पर अधिकार पाना संविधान सम्मत ही संभव है । अन्यथा स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजाना होगा जो सभी मूलनिवासी ,दलित पिछडे अल्पसंख्यकों को साथ लेकर ही संभव है ।-gsmarkam

अन्य राज्यों की तरह मप्र में “विधान परिषद” क्यों नहीं”

अन्य राज्यों की तरह मप्र में “विधान परिषद” क्यों नहीं” चूंकि विधान परिषद विधान मंडल विधायिका का केंद्र के “राज्य सभा” की तरह उच्च सदन होता हा जिसे त्रिस्तरीय पंचा़यत के जनप्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता है । इसके सदस्य ग्रामीण छेत्रों के वोट से निर्वाचित होते हैं , यदि “विधान परिषद” होगा तो विधान सभा में पारित कोई कानून विधान परिषद की सहमति के बिना पारित नहीं होगा इसका सीधा मतलब है ग्राम समुदाय के प्रतिनिधियों की दखल बनी रहती है ताकि ग्रामीण छेत्रों की मंशा के विपरीत कोई कानून राज्य में न थोपा जा सके । मप्र चुनाव २०१८ में जनता की ओर से इस महत्वपूर्ण सदन की स्थापना के संबंध में विचार फैलाने का प्रयास हो ।-gsmarkam

EVM विरोध से ध्यान हटाने के लिये गुजरात चुनाव परिणाम की तस्वीर गढी गई ।

EVM विरोध से ध्यान हटाने के लिये गुजरात चुनाव परिणाम की तस्वीर गढी गई ।  ईवीएम के प्रति बढती अविश्वसनीयता पर पर्दा डालने और ईवीएम का विरोध करने वाले दलों ,संगठनों को शांत करने के लिये कांग्रेस से मिलीभगत का प्रायोजित परिणाम है ताकि कांग्रेस का ईवीएम के विरूद्ध बोलती बंद हो जाये । चूंकि २०१८ मे चार राज्योंं में चुनाव होना है । ईवीएम को बंद नहीं करना है । कारण भी है कि कांग्रेस, भाजपा एक सिक्के के दो पहलू हैं कांग्रेस को यदि एकदम समाप्त किया गया तो तीसरी ताकत का उदय संभव है जो  मनुवादियों को तानाशाही सत्ता स्थापित करने में बाधक होंगे । इसलिये मनुवाद ,कांग्रेस को मरने नहीं देगा ताकि देश का मूलनिवासी कांग्रेस में तब तक फंसा रहे जब तक भाजपा का देश के सभी राज्यों मे कब्जा ना हो जाये , मनुवाद की स्थापना ना हो जाये । कांग्रेस के मोहजाल में फंसकर रहे तो तीसरी ताकतों का उभरना संभव नहीं , कांग्रेस में बैठे मनुवादियों की यही सोच है । इनका कहीं भी नुकसान नहीं । कांग्रेस, भाजपा दोनों ही इनके दल हैं , इनका आना जाना बरसों से बदस्तूर जारी है । इनके किसी दल में आने जाने को लोग संग्यान में नहीं लेते, अन

जनजातियों को स्वशासन के लिये स्वयं से व्यवहारिक प्रदर्शन करना होगा”

“जनजातियों को स्वशासन के लिये स्वयं से व्यवहारिक प्रदर्शन करना हो” ५ वीं अनुसूचि के विधिवत क्रियान्वय हेतु अनुसूूचित घोषित विकास खण्डों ,जिलों में ग्राम स्तर ( परंपरागत रूढी पंचायत समिति), विकासखण्ड स्वायत्त सलाहकार समिति( ग्राम स्तर के प्रमुखों द्वारा मनोनीत)एवं जिला स्वायत्त सलाहकार समितियों (विकासखंड स्तर के प्रमुखों द्वारा मनोनीत)का विधिवत गठन किया जाय जिसकी सूचना जिला कलेक्टर के माध्यम से राज्य जनजाति सलाहकार समिति और राज्यपाल को दी जाये । ध्यान रहे “पेसा कानून “ ने ७३ वां संविधान संशोधन को अंगीकार करके ५वीं अनुसूचि के महत्वपूर्ण अधिकारों पर डाका डाला है । अर्थात  त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था ने आदिवासियों की राज्यपाल से सीधे सम्पर्क,संवाद और सरोकार को प्रतिबंधित  कर पंचायती राज कानून  व्यवस्था का गुलाम बना दिया है । यहीं नहीं अधिसूचित छेत्रों में नगरीय निकायों की प्रशासनिक  व्यवस्था का तिहरा दबाव सहन करने को मजबूर कर दिया । आदिवासी स्वायत्तता को समाप्तप्राय कर दिया । इसलिये पांचवीं अनुसूचि के प्रावधानों का व्यवहारिक प्रदर्शन स्वयं समुदाय की जिम्मेदारी है । जो  ग्राम+विकास

“आदिवासी हिन्दू या आदिवासी ईसाई यदि आदिवासियों की रूढी परंपरा को नजरंदाज कर ५ वी अनुसूची की बात करता है तो असली आदिवासी को धोखा दे रहा है।“

“आदिवासी हिन्दू या आदिवासी ईसाई यदि आदिवासियों की रूढी परंपरा को नजरंदाज कर ५ वी अनुसूची की बात करता है तो असली आदिवासी को धोखा दे रहा है।“ भारत के सविधान में ५वी अनुसूचि शामिल के जाने का सीधा मतलब है कि "आदिवासीयो के समग्र उत्थान के लिए उनकी मूल भाषा,धर्म,सन्सक्रति और सभ्यता को बिना हानि पहुचाये उनका उन्ही की इच्छानुसार विकास के रास्ते तैयार किये जाये ।" कारण था कि जिस नैसर्गक न्याय पद्दति ,सामाजिक सान्सक्रतिक ,धार्मिक व्यवस्था को इन्होने पुरातन काल से विकसित किया हैए सच्चे  मायने में वही असली लोकतंत्र की झलक मिलती है। जिस लोकतंत्र का भविष्य मे भारत देश अनुशरण कर सकेगा । यह मार्गदर्शन हमारे सविधान निर्माताओं ने "सयुक्त राष्ट्र संघ" की आदिवासीयो के हित में दिये गये निर्देशों के अन्तर्गत लिया है । चूंकि देश में अब तक गैर आदिवासीयो के हाथ में सविधान सन्चालन की बागडोर है इसलिए अभी तक सविधान में उल्लिखित आदिवासी हित या देश में असली लोकतन्त्र स्थापित करने में असफल हुए हैं । जबकि सविधान निर्माताओं ने असली “लोकतंत्र की पाठशाला” जिसका अनुसरण किया जाना है इसलिए ऐसे विशेष क

मप्र में"भावान्तर"नही "भयान्तर" को समझो ।

मप्र में"भावान्तर"नही "भयान्तर" को समझो । मप्र की राजनीतिक धरातल में तीसरी बड़ी राजनीतिक सन्गठन का आधार स्थापित नहीं होना ही मप्र में राजनीतिक भय और भयान्तर की समझ नहीं होने का प्रतीक है। किसी सत्तारूढ स्थापित दल के विरुद्ध प्रदेश में यदि वातावरण बनने लगता है तब स्थापित विपक्षी दल और सत्तारूढ दल मिलकर यह वातावरण बनाने लगते हैं कि सत्तारूढ दल को सबक सिखाना है तो विपक्षी दल को सत्ता में लाओ तब तुम्हारी समस्याओं का निदान हो जायेगा आदि आदि --- पर मतदाता यह क्यों भूल जाता है कि  इसी विपक्षी दल की जनविरोधी नीतियों के कारण आपने उसे सत्ता से बाहर किया था। इसका मतलब है कि ५साल में मतदाता सब कुछ भूल गया ! पुनः गल्तिया दुहरा देता है । यह गल्ती एक बार हो तो भूल कहा जा सकता है पर बार बार की गल्ति को राजनीतिक समझ की कमी ही कहा जा सकता है । अन्य राज्य के मतदाता की समझ और मप्र छग के मतदाता की समझ मे यही अन्तर है । यही कारण है कि यहा अन्याय अत्याचार शोषण का बाजार सदैव गर्म रहता है । लगता है राजनीतिक दूरदशिर्ता की कमी के कारण "एक बात दिमाग मे घर बना चुकी है कि लगातार नुकशान झेल

आदिवासियत(रूढी परम्परा) को बचाने का एक एक ही मार्ग है “प्रथक धर्म कोड कालम”

सगाजनों को अवगत हो कि २०११ की जनगणना प्रारूप में धर्म सारणी में  कलाम (७) पर “अन्य ……….  जोडा गया था जिसके कारण विभिन्न आदिवासी समूहों नें अपनी जागरूकतानुशार ८३ प्रकार के धर्म अंकित कराये । परन्तु प्राप्त जानकारी के अनुशार अब २०२१ की जनगणना में “अन्य” का विकल्प ही नहीं रखा जा रहा है , तब आदिवासी की गणना स्वयमेव ही “हिन्दू” में होने वाली है । तब आपकी रूढी परम्परा कैसे बचेगी आप हिन्दू स्वीय विधि से सन्चाल ित होने लगेंगे । कुछ लोगों का मत है कि हम धर्म पूर्वी निसर्गवादी हैं ! जब आप गणना में “हिन्दू “ रहेंगे तब आपकी गिनती मूर्ति पूजक , ईश्वरवादी के रूप में होगी , कोर्ट कचहरी भी आपको हिन्दू मानकर ही फैसला करेगी । इसलिये मेरा केवल सुझाव है कि सबसे पहले  प्रथक कालम (७) अन्य…….  की रक्छा की जाय और एक नाम पर सहमति बनाने की मानसिकता बनायें, यह केवल समुदाय की समझदारी और सामन्जस्य से सम्भव है । नोट:- अन्य का विकल्प अन्कित नहीं होने पर हम कहां अपने सरना, गोंडी , प्रक्रति, आदिवासी या जो आपकी मान्यता में है लिखेंगे । बुद्धिजीवी इस पर विचार करें ।-gsm

“प्रथक धर्म काेड हेतु जनगणना में कालम स्थापित कराना”

(2)- “प्रथक धर्म काेड हेतु जनगणना में कालम स्थापित कराना” २०२१ में भारत की जनगणना में धर्म कोड कालम में जनजातियों के लिये कालम नम्बर ७ में “आदि पुनेम” या “प्रक्रतिवादी सरना पुनेम” को स्थापित कराने की मुहिम के लिये ग्रह मंत्रालय को आदिवासी समुदा़य के सभी संगठन पत्र लिखें । उदाहरण स्वरूप :-धर्म कालम(१) हिन्दू (२) इस्लाम (३) सिख (४) ईसाई (५) जैन (६) बौद्ध एवं कालम  (७) प्रक्रतिवादी सरना पुनेम (गोंडी/कोया) प्रक्रतिवादी सरना पुनेम (सरना) प्रक्रतिवादी सरना पुनेम (भीली) प्रक्रतिवादी सरन ा पुनेम (आदि) इस तरह लिखा जाये । सभी समूहों की अपनी प्रथक पहचान भी कायम रहेगी और जनगणना में सभी जनजातियों की धार्मिक संख्या एक साथ गिनी जा सकेगी । तब जनगणना कर्मचारी केवल जनगणना कालम में “सही” का निशान ही अंकित करेगा उसके पास कोई विकल्प नहीं होगा । आप उसे कहेंगे कि पहले कालम (७) में “सही” का निशान लगायें तत्पश्चात (......) कोष्टक में हम सरना, गोंडी,भीली या आदि लिखवाने पर जोर दें । इससे यह तो होगा कि वह कालम “७” पर केवल “सही” का निशान ही अन्कित कर सकता है । तब भी हमारी गणना प्रथक से हो सकेगी ! जनजातियों क

भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित " प्रमुख कर्मचारी ट्रेड यूनियन "

PART-6 भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित " प्रमुख कर्मचारी ट्रेड यूनियन " 1.मनुवादी विचारधारा- हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख राजनीतिक दल- भाजपा, शिवसेना -आदर्श पुरूष. दीनदयाल उपाध्याय- गोलवलकर हेगडेवार-प्रमुख छात्र संगठन "एबीवीपी" - प्रमुख सामाजिक संगठन-"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ"-प्रमुख ट्रेड यूनियन-"बीएमएस" 2.साम्यवादी विचारधारा- धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व- प्रमुख दल -भाकपा- माकपा- आरएसपी -आदर्श पुरूष. कार्लमार्क , लेनिन,माओत्सेतुंग, भगतसिंह- प्रमुख छात्र संगठन "एस एफ आई"-प्रमुख सामाजिक संगठन- "जनवादी संगठन","जनवादी परिषद"-प्रमुख ट्रेड यूनियन- "सीआईटीयू,एटक" 3.समाजवादी विचारधारा- हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख दल -सपा , जद लोकदल-आदर्श पुरूष- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया -प्रमुख छात्र संगठन " एसएसयू "-प्रमुख सामाजिक संगठन- "समाजवादी जनसभा" , "युवजन महासभा"-प्रमुख ट्रेड यूनियन 4.गांधीवादी विचारधारा -हिन्दू धर्म

भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित " सामाजिक संगठन "

PART-4 भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित " सामाजिक संगठन " 1.मनुवादी विचारधारा हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख राजनीतिक दल- भाजपा, शिवसेना -आदर्श पुरूष. दीनदयाल उपाध्याय- गोलवलकर हेगडेवार-प्रमुख छात्र संगठन "एबीवीपी" - प्रमुख सामाजिक संगठन-"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ"  2.साम्यवादी विचारधारा- धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व- प्रमुख दल -भाकपा- माकपा- आरएसपी -आदर्श पुरूष. कार्लमार्क , लेनिन, भगतसिंह- प्रमुख छात्र संगठन "एस एफ आई"-प्रमुख स ामाजिक संगठन- "जनवादी संगठन","जनवादी परिषद" 3.समाजवादी विचारधारा- हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख दल -सपा , जद लोकदल-आदर्श पुरूष- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया -प्रमुख छात्र संगठन " एसएसयू "-प्रमुख सामाजिक संगठन- "समाजवादी जनसभा" , "युवजन महासभा" 4.गांधीवादी विचारधारा -हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख् दल- कांग्रेस राष्ट्रवादी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस-आदर्श पुरूष.महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू- प्रमुख छात्र संगठन

"1 नवम्बर गोंडवाना के लिये काला दिवस है"

"1 नवम्बर गोंडवाना के लिये काला दिवस है" गोंडवाना के स्वर्णिम इतिहास में 1 नवम्बर सदैव काला दिवस के रूप में जाना जाता है और भविष्य में भी जाना जायेगा । कारण है कि देश में भाषावार राज्य बनाये जा रहे थे तब, हर भाषिक बहुल क्षेत्र को ध्यान में रखकर राज्यों की सीमा निर्धारित की गई ! पंजाबी, गुजराती ,मराठी, उडिया, बंगाली, कन्नड, मलयाली भोजपुरी असमी आदि भाषाओं के नाम पर उस राज्य का नाम दिया गया लेकिन, मध्य गोंडवाना राज्य जो पहले से ही अस्तित्व में था यहां गोंडी भाषा बोली जाती थी ग ोंडी भाषा की बहुलता को नकारते हुए 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश के नाम से राज्य बना दिया । काला दिवस इसलिये भी है कि , मध्यप्रदेश तो बनाया गया लेकिन गोंडी भाषा बहुल जनसंख्या को तोड दिया गया कुछ जिलों के गोंडी भाषिकों को महाराष्ट्र में , कुछ जिलों को आन्ध्र, उडीसा, उप्र, गुजरात आदि में मिलाकर गोंडवाना की भाषाई ,सांस्कृतिक और जनसंख्या शक्ति को छत विछत कर दिया गया । यही कारण है कि विशाल एैतिहासिक गोंडवाना राज्य की जनता आज अपनी भाषा धर्म , संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रही है । इसका सीधा जि

भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "छात्र संगठन"

part-3 भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "छात्र संगठन" 1.मनुवादी विचारधारा हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख राजनीतिक दल- भाजपा, शिवसेना -आदर्श पुरूष. दीनदयाल उपाध्याय- गोलवलकर हेगडेवार-प्रमुख छात्र संगठन "एबीवीपी" 2.साम्यवादी विचारधारा- धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व- प्रमुख दल -भाकपा- माकपा- आरएसपी -आदर्श पुरूष. कार्लमार्क , लेनिन, भगतसिंह- प्रमुख छात्र संगठन "एस एफ आई" 3.समाजवादी विचारधारा- हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख दल -सपा , जद लोकदल-आदर्श पुरूष- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया -प्रमुख छात्र संगठन "एसएसयू" 4.गांधीवादी विचारधारा -हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख् दल- कांग्रेस राष्ट्रवादी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस-आदर्श पुरूष.महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू- प्रमुख छात्र संगठन "एनएसयूआई" 5.अम्बेडकरी विचारधारा -बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व- प्रमुख् दल- बसपा आरपीआई, बीमपी -आदर्श पुरूष-.डा0 भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम- प्रमुख छात्र संगठ

भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "आदर्श पुरूष"

PART- 3 भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "आदर्श पुरूष" 1.(मनुवादी विचारधारा ) हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख राजनीतिक भाजपा, शिवसेना -आदर्श पुरूष- दीनदयाल. उपाध्याय ,गोलवलकर, हेगडेवार 2.(साम्यवादी विचारधारा ) धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व- प्रमुख दल भाकपा माकपा आरएसपी -आदर्श पुरूष- कार्लमार्क, लेनिन, भगतसिंह 3.(समाजवादी विचारधारा) हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख दल सपा, जद, लोकदल- आदर्श पुरूष- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया ! 4.(गांधीवादी विचारधारा ) हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख् दल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस- आदर्श पुरूष-महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू 5.(अम्बेडकरी विचारधारा) बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व- प्रमुख् दल- बसपा, आरपीआई, बीमपी -आदर्श पुरूष-डा. भीमराव अम्बेडकर ,कांशीराम 6.(गोंडियन आदिवासी विचारधारा)प्रकृतिपुनेम का प्रतिनिधित्व- प्रमुख् दल झाारखण्ड मुक्ति मोर्चा, भागोंपा, गोंगपा आदर्श पुरूष-केप्टन जयपाल मुंडा NOTE :-अगली कडी में इन विचारधाराओं के सामाजिक आर्थिक शैक्षिक संगठनो

"भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित धर्म"

(1) "भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "धर्म" -हमारे भारत देश में भारत अर्थात धर्म संस्कृति एसभ्यता के वर्चस्व स्थापित करने का संघर्ष है, एैसे समय में प्रत्येक विचारधारा की अगुवाई करने वाले प्रमुखतया सामाजिक, धार्मिक,आर्थिक, शैक्षिक, संगठनों के साथ साथ विचारधारा को मजबूत करने वाले राजनीतिक संघटन और उनके आदर्श पुरूष एवं साहित्य भी होते हैं जो सत्ता में आने के बाद अपनी विचारधारा की धर्म ,संस्कृति, सभ्यता का संरक्षण करते हैं । -भारतीय परिवेश में मूलतः निम्नलिखि त विचारधाराऐं अपने अपने काम में लगी हैं । 1-मनुवादी /विचारधारा - हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व 2.साम्यवादी विचारधारा - धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व 3.समाजवादी विचारधारा- हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व 4.गांधीवादी विचारधारा - हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व 5.अम्बेडकरी विचारधारा- बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व 6.गोंडियन/आदिवासी विचारधारा-प्रकृति पुनेम (धर्म) का प्रतिनिधित्व (2)- "भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "राजनीतिक दल " 1.मनुवादी ध्विचा

"गोन्डियन सन्स्क्रति मे पेन्क भीना( देव स्थापना स्थल)"

"गोन्डियन सन्स्क्रति मे पेन्क भीना( देव स्थापना स्थल)" भारत में हिन्दू नाम का शब्द आने तथा गोन्डियन सन्स्क्रती की भाषा में हिन्दी के प्रवेश के कारण गोन्डियन व्यवस्था के धारको मे अनेक परिवर्तन हुए । आचार विचार के साथ व्यवहार पर भी परसन्स्क्रति का प्रभाव पडा । कहानियो, लोकोक्तियो ,गीतो आदि अनेक परम्परागत बिन्दुओ असर पडा । यही तक ही नही , पेन के स्थान भी बदले गये इस सन्दर्भ मे देश के विभिन्न हिस्सो से प्राप्त जानकारी और खोजी प्रयास के दौरान देखने को मिला है कि वर्तमान समय में गोन्डियनजनो के पेन्क के बैठक या अराधना स्थलो की स्थिति निम्नलिखित है । (१) -प्रकृतिशक्ति पड़ापेन स्थल जो नार व्यवस्थापन के समय मुख्य ७ व्यक्ति तथा ६ सहायक, जिनके माध्यम से नार को मेढो, सिवाना से लेकर घाट ,पनघट, खेत खलिहान, खीला मुठवा, ठाकुर पेन सहित खेरमाई मातादाई, याया सहित अन्य पेन्क के स्थान नियत किये गये जिनकी पूजा अपने अपने स्थान में होती है पर्व विशेष के अवसरों पर किन्हीं क्षेत्रों में सबका केन्द्रीय पूजा का स्थान अलग अलग न करके ठाकुरपेन स्थल तथा खेरमाई स्थल मे रखा गया हो ऐसा प्रतीत होता है । तभी

"सान्स्क्रतिक और राजनीतिक युद्ध क्षेत्र"

(1) "सान्स्क्रतिक और राजनीतिक युद्ध क्षेत्र" जहाँ सामाजिक,धार्मिक, सान्स्क्रतिक युद्ध अपने उच्चतम सोपान में हो , वहाँ राजनीतिक क्रियाकलापों की बलि चढ़ा देनी चाहिये। तब जब वह कार्यकर्ता किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी ना हो यदि किसी दल विशेष का काम करता है तो उसे अपने सामुदायिक पद से त्यागपत्र देकर खुला प्रचार करना चाहिए। इसमें समुदाय, समाज को कोई आपत्ति नहीं। वरन् समुदायद्रोही या समाजद्रोह का भागीदारी है । समाज समुदाय इस  प र   टिप्पणी जरूर करे , अन्यथा हम अपना सामाजिक,धार्मिक, सान्स्क्रतिक युद्ध कैसे जीतेंगे। दलाल, समाज समुदाय की दलाली करते रहेंगे। समाज अपने उत्थान के सपने देखता रहेगा।-gsmarkam (2) "चित्रकूट विधानसभा चुनाव और गोन्ड समुदाय" क्या ये सच है कि"गोन्ड महासभा जिला सतना" के जिला अध्यक्ष गन्गा सिंह परस्ते चित्रकूट विधानसभा में"भाजपा"के प्रचार में लगे हैं। यदि हा तो गोन्डियन भाषा, धर्म, सन्सक्रति को गोन्ड महासभा मजबूत करने का काम कर रहा है या गोन्डियन भाषा, धर्म, सन्सक्रति के प्रथम दुश्मन और आरएसएस के पुत्र भाजपा का प्रचार क

"शुरू करो असली आजादी की लड़ाई"

(1)"शुरू करो असली आजादी की लड़ाई" देश में यदि मूलनिवासी समुदाय की मानसिकता अपने आप को देश का मालिक समझता है। सिन्धुघाटी का स्रजनकर्ता मानता है तो उसे कान्शीराम (बहुजन आन्दोलन के नायक) की सलाह के आधार पर आजादी की तीसरी लड़ाई का सन्खनाद कर देना चाहिए, ध्यान रहे यह लड़ाई धनबल अर्थ बल से नहीं लडना है। यह लड़ाई मूलनिवासीयो को सान्स्क्रतिक बल के आधार पर लडना होगा। जिसके पास यह पून्जी है उसके मार्गदर्शन में चलना होगा। इसमें इगो या अहन्कार को तिलान्जली देना होगा। याद रहे अन्ग्रेजो के विरुद्ध सबसे पहले किसने बगावत की थी? बाद में इसे अन्य समुदाय ने हवा दी। आज भी यदि आन्दोलन की शुरुआत होगी तो पुनः इतिहास दुहराना पडेगा। आग आदिवासी लगायेगा हवा सभी मूलनिवासीयो को देना होगा। (देशी,विदेशी का आन्दोलन छेड़ दो ) देश का असली पट्टा आदिवासी के पास है।-gsmarkam (2)"जनक्रांति और संविधान" क्रांति की अगुवाई कुछ लोग करते हैं, पर क्रांति आम जनता की ओर से होता है । अगुवा संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को जानता है, पर जनता इससे अन्जान रहती है । चूंकि क्रांति पर जब जनता की मुहर लग जाती है तब संवैधानिक

"राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और आदिवासी हित"

"राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और आदिवासी हित" राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उच्चस्तरीय टीम का आयोग के अध्यक्ष के नेतृत्व में जनजातियों की स्थिति पर विमर्श के लिये मध्यप्रदेश में दौरा हो रहा है । कार्यकृम विवरण :- (1) दिनांक 25 10-2017 छिंदवाडा रेस्ट हाउस 11 बजे से (2) दिनांक 26 10-2017 होशंगाबाद रेस्ट हाउस 11 बजे से (3) दिनांक 27 10-2017 भोपाल सर्किट हाउस 11 बजे से आदिवासी समाज के बन्धुओं से अनुरोध है कि इस टीम के साथ विमर्श में भाग लें और स्थानीय समस्या के साथ निम्न बिन्दुओं का ज्ञापन जरूर प्रस्तुत करें । 1- मध्यप्रदेश राज्य में पांचवीं अनुसूचि के कानून के उचित क्रियान्वयन के लिये नियम बनाया जाये । 2- म0प्र0 राज्य जनजातीय मंत्रणा परिषद का अध्यक्ष पद जनजाति के लिये सुरक्षित किया जाय । 3- मध्यप्रदेश के समस्त 89 घोषित आदिवासी विकासखण्डों तथा घोषित आदिवासी जिलों में खण्ड विकास अधिकारी और सहायक आयुक्त आदिवासी विकास केवल जनजाति वर्ग से हो । 4-पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत आने वाले समस्त विकासखण्डों और जिलों में नगरनिगम,नगरपालिका तथा नगरपंचायतों की व्यवस्था को समाप्

"पूनल वंजी पाबून"और "दिवारी पंडुंम(पाबून)"

"पूनल वंजी पाबून"और "दिवारी पंडुंम(पाबून)" क्या है पूनल वंजी पाबून ये तो पहले ही "नवाखाई" (वंजी, गाडा (गुल्ली) जन्नांग, कायांग आदि)के रूप में मना लिया गया । जिसको गोंडी भाषा नहीं आती हो एैसे लोग इन नकली नाम की स्थापना से भ्रमित हो जाते हैं । गोंडियन त्यौहारों के नाम संज्ञा के साथ एक शब्दीय होते हैं विश्लेषण के साथ नहीं बताया जाता । यहां तो पूनल वंजी तिंदाना पाबुन यानि हिन्दी वाक्य का हूबहू अनुवाद हो गया । जबकि दिवारी कह देने से इससे संबंधित सभी क्रियाकलाप समाहित हो जाते हैं फिर ये नया नाम किसलिये ? "एक और शब्द जिसका उपयोग कुछ लोग कर लेते हैं पडडुम यह शब्द गोंडी भाषा में कोई अर्थ नहीं निकालता इसका असली रूप पन्डुम है । जो पंडीना या पके हुए से संबंधित है । इस पर चर्चा कर मानक शब्द का उपयोग हो सके । ( बंदर के हाथों उस्तरा नहीं थमा देना चाहिये अन्यथा पूरी कटिंग बिगडने का डर रहता है । )" मेरे सुझाव को मित्रगण अन्यथा में ना लें । -gsmarkam

"तुम किताबों में लिखो अपनी बयां"

"गम तो है कि मेरी लाशें गिन गिनकर जश्न मनाते हैं लोग । अब मैं भी उनके मुर्दों का हिसाब रखने लगा हूं ।"  "तुम किताबों में लिखो अपनी बयां ये किताबी ही कहलायेंगे । हम तो इतिहास की नींव के पत्थर हैं दोस्त जहां खोदो वहीं मिल जायेंगे । नीव के हर पत्थर पर लिखा होगा गोंडवाना इनके सामने तुम्हारी रोशनाई कहां टिक पायेंगी ।"-gsmarkam (रोशनाई यानि कागज पर लिखी इबारत)

"दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है ।"

"दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है ।" दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है । दिवारी यदि दीप महोत्सव होता तो गोंडी में दीपक को टवरी कहा जाता है । टवरी महोत्सव होता दीपावली नहीं । दिवारी में बैल गाय पूजन कृषि उपज जिसमें धान और खासकर उढद की दाल का उपयोग जिसके व्यंजन बनाकर गाय बैलों को खिलाकर बाद में धर के सदस्य खाते हैं सुबह उनके नाम पर खेरमाई खिरखा में आयेजन होता है । । तथा हमारे कोपाल अहीर द्वारा अपने गाम के गाय बैल बछडों के लिये छाहुर बांधना और बैगा भुमका दवार के साथ रात्रि में गांव के प्रत्येक द्वार में जाकर गौशाला में गाय बैलों की विशेष्ता बताते हुए आर्शिवाद देना । इस रात्रि के कार्यकृम में बैगा दवार कोपा अहीर और गुरूवा गांगो चंडी के स्थापनाकर्ता के साथ ढोलिया या गांडा के वादय यंत्र के साथ रात भर गृह जागरण का कार्य होता है । यही दिवारी है ,दीपक से इसका कोई संबंध नहीं यदि इसका मतलब दीपक से होता तो हमारे मूलविासी लोगों की भाषा में दीया को टवरी कहा जाता है टवरी महोत्सव होता । इसी दिन से गुरूवा गांगो अर्थात जंगो लिंगो की स्थापना की जाती है जो एकादशी तक मडई के रूप

"कान्ग्रेस के भय से भाजपा को वोट अब भाजपा के भय से कान्ग्रेस को वोट !

"कान्ग्रेस के भय से भाजपा को वोट अब भाजपा के भय से कान्ग्रेस को वोट ! कही लोकतंत्र "भयतन्त्र का शिकार तो नहीं हो रहा है"  --लोकतन्त्र यानि भयमुक्त व्यवस्था जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ साथ बिना भय के अपनी इच्छा का प्रतिनिधि चुनना। परन्तु भारतीय लोकतंत्र ने अनेक दौर देखे है जहा दलो की विचारधारा को जाने बगैर चुनाव चिन्ह को देखकर वोट दिया गया । अगला दौर भी आया जब मतदाता का मत छीनकर बूथ केप्चरिग से व्यक्ति विशेष को जबरदस्ती जनप्रतिनिधि स्वीकार कराया गया । मतदाताओं  की अज्ञानता का लाभ उठाते हु, एक और प्रयोग वोटिंग मशीन ने तो दल विशेष के लिये सोने में सुहागा का काम किया है सत्ता में आने के बाद उसके लगातार उपयोगिता को निर्वाचन आयोग की मुहर लगवाने से भी नहीं चूक रहे हैं यानि आंखों में लगातार धूल झोकना । मतदाता सत्ताधीशों के इन लोकतंत्र विरोधी निर्णयों कृत्यों से अपने आप को लगातार असहाय पा रहा है । एैसे आम चुनाव स्थानीय चुनाव के अनेक दौर में मतदाताओं ने लगातार ऐसे क्रत्यो का सामना किया है । इन कृत्यों के बाद भी एक थैली के चटटे बटटे कांग्रेस भाजपा ने आरंभ से लेकर अब तक ती

प्रकृति पुनेम और पात्र आधरित संम्प्रदाय ।

प्रकृति पुनेम और पात्र आधरित संम्प्रदाय । कोई धर्म ग्रंथ यदि अपने पात्रों के अच्छे कर्मों आचरणों पर चलने चलाने का प्रयास कराता है,तो समझ लो वह धर्म कमजोर है जो पात्रों को सामने लाकर उन्हें महिमा मंडित करता है । वह धर्म नहीं उनके द्वारा अपने तरीके से चलाये गये मार्ग हैं जिन्हें संम्प्रदाय कहना ज्यादा उचित है । धर्म तो नैसर्गिक प्रकृतिगत दर्शन है, जिसे देखकर सुनकर उसका अनुशरण, आचरण करना ही असली धर्म है । जिस धर्म में किसी पात्र को मुखिया या गुरू मान लिया गया वह संम्प्रदाय से ज्यादा कुछ नहीं परन्तु जिस धर्म में निसर्ग या प्रकृति को गुरू माना गया हो वही धर्म है । पुनेम,आदि,प्रकृति धर्मों का आाधार व्यक्ति या पात्र नहीं स्वयं प्रकृति है निसर्ग है । इसलिये कहा जा सकता है कि हमारे देश में व्यक्तिवादी धर्म अर्थात संप्रदायों का ही बोलबाला है । टीप-(धर्म शब्दावली का उपयोग मात्र उस संप्रदाय अथवा मार्ग के बारे में समझने के लिये लिया गया है ।)gsmarkam 

"आदिवासियत (tribalism)ही भारत देश की असली मुख्यधारा है ।"

"आदिवासियत (tribalism)ही भारत देश  की असली मुख्यधारा है ।" जानकारी के अभाव मे या अहन्कार की आत्मतुष्टि के कारण इस तथ्य को भले ही कोई स्वीकार करे या ना करे पर मेरा मानना है कि आदिवासियत (tribalism)ही भारत देश  की असली मुख्यधारा है । इसलिये गोन्डवाना के आदिवासी दलितो, पिछडे वर्ग के बन्धुओ, शूद्रत्व या दोयम दर्जे से मुक्ति पाना है तो इस देश की मुख्य धारा "आदिवासियत (tribalism)" को स्वीकार करना होगा । कारण भी है  कि हजारों साल के विदेशी सान्सक्रतिक राजनीति आक्रमण के बाद भी आदिवासियो ने देश की मुख्यधारा जिसमें भेद रहित मूल सामाजिक व पन्च परमेश्वर की नैसर्गिक न्याय व्यवस्था, देश की मूल भाषा ,सन्सक्रति,धर्म, रीति रिवाज और परम्परागत व्यवस्था को कायम रखा हुआ है। जिसके प्रमाण आपको ग्राम्य जीवन में देखने को मिल जाता है। आज भी ग्राम के देवी देवता जिनमें , खेरमाई, माता माई या याया देश के हर गाँव में विराजमान है, खीला मुठवा, भीमालपेन भीलटबाबा या पटैल बाबा जैसे ग्राम के रक्षक माने गये आराध्य पर आपकी आस्था समाप्त नहीं  हुई है। भले इन आराध्य देवी देवताओं को आप भाषाई भिन्नता के

"फेकचन्द पर व्यन्ग" & "मन की बात"

(1)        "फेकचन्द पर व्यन्ग" फेक मारने का तजुरबा, पैसा देकर सीखा है । सौ सौ झूठ बोलकर हमने, सच को बनते देखा है। बेवकूफ हो तुम , अब भी सच्चाई पर ही टिके रहो । हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो । मीठी चाय बताकर हमने, सबको फीका पिला दिया । वोटों को मशीन में गिनकर , सबको पानी पिला दिया। चार दिन की है जिन्दगी, अच्छाई से तुम जुड़े रहो । चार दिवस तो अपने ही हैं, क्यों ना जमकर मौज करो । बेवकूफ तुम मौज क्या जानो , स्वर्ग नरक को धरे रहो । सच्च झूठ के इस झन्झट में, जब तक चाहे फसे रहो । हम तो भैया फेक चन्द हैं, जब तक चले हम फेकेगे । जब तक तवा गर्म रहता है, तब तक रोटी सेकेंगे । इतने से भी नहीं समझे तो , लानत है खुदगर्जी पर । भूख प्यास से मरो रात दिन, या दडबे में घुसे रहो । हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो ।-gsmarkam (2)  "मन की बात" मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से। तानाशाही झलक रही है, इनके हर लफ्फाजो में।।१।। गर्म तवे पर बैठ भी जाये , ऐसा भी हो जाये कभी । ना करना विश्वास कभी , इन शातिर तानाशाहो से । मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या ब

"कब तक चलेंगे कथित विकास के प्रयोगवादी कार्यकृम"

"कब तक चलेंगे कथित विकास के प्रयोगवादी कार्यकृम" हमारे देश के मेरिटधारी ,देश में गरीबी उन्मूलन, शिक्षा ,स्वस्थ्य,बेरोजगारी और अन्य मूलभूत समस्याओं से निपटने के लिये लगातार प्रयोग ही कर रहे हैं कथित आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी एक विषय पर भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके हैं । प्रत्येक विषय पर प्रयोग पर प्रयोग किया जा रहा है । समस्या समाधान के इस प्रयोग में अब तक अरबों रूपये व्यय किये जा चुके हैं । एैसा नहीं कि एैसे प्रयोग करने के लिये सामान्य नीति अपनाई गई हो ।  इनके लिये प्रत्येक विषय के विशेषज्ञों को मोटी रकम और सुविधाऐं दी जाती हैं फिर भी आज तक ये विशेषज्ञ क्या कर रहे हैं,राष्ट्र का धन और समय व्यर्थ जा रहा है । सत्तायें बदल रहीं हैं पर प्रशासनिक तंत्र तो स्थायी है फिर भी किसी बिन्दु पर ये विशेषज्ञ और इनका तन्त्र खरा क्यो नहीं उतर पा रहा है । क्या इसी तरह प्रयोगवादी कार्यक्रमो मे लगने वाले धन की बन्दर बान्ट होती रहेगी ? प्रयोग सफल तो होना नही है, अगली बार पुन: इसी विषय पर नया प्रयोग नया बजट नये विशेषज्ञ, परिणाम पुन: वही । आखिर कब तक देश का नागरिक इनकी कथित मेरि

आदिवासी स्वशासन और नियंत्रण के लिए परम्परागत रूढी व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए राज्यों में स्थानीय नियम बनाए जाने हेतु राज्यपाल पर दबाव बनाया जाए"

आदिवासी स्वशासन और नियंत्रण के लिए परम्परागत रूढी व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए राज्यों में स्थानीय नियम बनाए जाने हेतु राज्यपाल पर दबाव बनाया जाए" हमारे बहुत से मित्र ५वी अनुसूचि और पेसा कानून पर लगातार अध्ययन कर रहे हैं। पहली बात तो हमें यह ध्यान देना है कि केन्द्रीय कानून में जब ५वी अनुसूची के अन्तर्गत जनजाति बहुल १० राज्यो को अधिसूचित किया गया तब उन राज्यों को छ: महीने के भीतर राज्य में क्रियान्वयन के लिए नियम बना लेना चाहिए था लेकिन किसी राज्य ने स्थानीय नियम जिसके माध्यम से क्रियान्वयन होता नही बनाये । प्राप्त जानकारी के अनुशार अभी अभी दो चार सालो मे चार राज्यो मे कानून नियम बने होने की जानकारी मिल रही है । मध्यप्रदेश तो अभी तक इससे अछूता है । खैर जनजाग्रति से इसके नियम भी बन जाये । परन्तु जिस चालाकी से राज्यो ने ५वी अनुसुचि के नियम बनाने के पूर्व पेसा कानून को लाकर उसमे ५वी अनुसूचि के कुछ प्रावधानो को शामिल कर आदिवासियो को सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हुए स्व शासन और नियन्त्रण को त्रिस्तरीय पन्चायती राज के अधीन कर दिया और शेड्यूल्ड एरिया मे एक और शासन तन्त्र नगर निकाय को

(सामुदायिक वनाधिकार के लिये ग्रामसभा ने भौतिक निरीक्षण के साथ अपना दावा प्रस्तुत किया ।)

"प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा करता है अलीराजपुर जिले के सोण्डवा विकासखण्ड का आदिवासी बहुल ककराना ग्राम ।" (सामुदायिक वनाधिकार के लिये ग्रामसभा ने भौतिक निरीक्षण के साथ अपना दावा प्रस्तुत किया ।) ------------------------------------------------------------------------------------ जल जंगल जमीन पर काम करने वाली हमारी विशेष टीम(मगन भाई एवं शंकर भाई अलीराजपुर समाधान पाटिल गुलजार सिह मरकाम भोपाल जंगलसिह परते बैतूल एवं ध्रुव भाई सतना ) ने लगातार चार दिनों से ककराना ग्राम के जल जंगल जमीन की स्थिति का स्थल निरीक्षण किया । जैसा कि हमें पूर्व में जानकारी दी गई थी कि इस ग्राम के लोगों नें अपनी परंपरागत सीमा में आने वाले वनभूमि और उस पर लगे जंगल की स्वयं रक्षा करते हुए अपने वनक्षेत्र को हरा भरा रखा है ग्रामवासियों नें मिलकर एक चैकीदार रखा है जो दिनरात अपने सीमावर्ती वनों की देखभाल करता है ग्रामवासियों का मानना है कि जंगल रहेंगे तो वर्षा होगी वर्षा होगह तो हमारी फसल होगी जब फसल सही होगा तो हमारी जीविका अच्छी तरह से चलेगी । इसी सोच को लेकर उनहोने काह कि वनविभाग के संरक्ष

"१९३१ और १९४१ तक भारत की जनजनगणना सूचि में गोन्ड जाति का धर्म "ट्राईब" लिखा गया है।"

"१९३१ और १९४१ तक भारत की जनजनगणना सूचि में गोन्ड जाति का धर्म "ट्राईब" लिखा गया है।" गोन्ड आदिवासी के साथ साथ अन्य आदिवासीयो की जनगणना में भी "उस जाति के नाम के साथ "धर्म" के कालम में "ट्राईब" लिखा गया है। १९४२ की जनगणना के समय गोन्ड जाति की जनसन्ख्या विभिन्न प्रदेशो में निम्नलिखित अन्कित की गई थी। जाति- ( गोन्ड)धर्म - (ट्राईब) मद्रास- ४९५,बम्बई -१०३०,सन्युक्त प्रदेश -१२०६९१,बिहार -२६९३१,सीपी&बरार-२०८८१७९,उड़ीसा -१३४८८४,हैदराबाद -१४२०२६,मध्यभारत-९२७५५,छत्तीसगढ़ -४२०२८३,बन्ग ाल प्रान्त -१२८६६,उड़ीसा प्रान्त -१७७५००,यूपी प्रान्त -३०४०४ कुल -३२२१०४४ गोन्ड समुदाय का धर्म ट्राईब के रूप में अन्कित है। इसी तरह अन्य आदिवासी की जाति के साथ धर्म के कालम में"ट्राईब" अन्कित है जो १९५१ की जनगणना में जाति का कालम ज्यों का त्यों रखा गया लेकिन धर्म के कालम से "ट्राईब" हटा दिया गया और हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,जैन, बौद्ध,पारसी की तरह "अन्य" का कालम जोड़ दिया गया । जबकि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध,जैन, पारसी , ट्राईब,

"अन्य समुदाय की तरह आदिवासी का समुदाय और धर्म एक है अलग अलग नहीं !"

"अन्य समुदाय की तरह आदिवासी का समुदाय और धर्म एक है अलग अलग नहीं !" हिन्दू धर्म भी है और समुदाय भी है ।  मुस्लिम एक मजहब भी है समूदाय भी है ।  ईसाई एक रिलीजन है और समुदय भी है  सिख एक पंथ है और समुदाय भी है ! बौद्ध भी एक धम्म है और समुदाय भी है । इसी तरह आदिवासी एक पुनेम भी है समुदाय भी है । सबकी अपनी अपनी रूढी और परंपरायें और समुदायिक संस्कार हैं सबके अपने अपने आस्था स्थल और इष्ट हैं तब आदिवासी अन्य धर्म पंथ,मजहब या रिलीजन में धर्मांतरित होकर आनी परंपरायें ,समुदायिक संस्कार खत्म कर दे तब वह कैसे आदिवासी हो सकता है । यदि वह आदिवासी है तो आदिवासी समुदाय की रूढी परंपरायें रीति रिवाज और समुदायिक संस्कार का पालन करे अन्यथा वह अपने आप को आदिवासी कहने का आदिवासी अधिकारी नहीं । जनजाति की सूचि में रहे कोई आपत्ति नहीं, जिस दिन शासन प्रशासन को लगेगा कि वह आदिवासी समुदाय की रूढी परंपरायें रीति रिवाज और समुदायिक संस्कार से पूरी तरह अलग हो चुका है उस दिन जनजाति की सूचि से हटाने और जोडने की प्रक्रिया आरंभ हो जायेगी । भारत की जनगणना सन 1871से 1941 तक यह आदिवासी एक समुदाय और धर्म के रूप