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Showing posts from February, 2017

गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन की प्रकृतिवादी विचार दर्षन को लगातार आगे बढायें ।

जैसा कि सभी को विदित है दुनिया में यदि आज तक जितने संघर्ष हुए हैं एैसे सभी संघर्ष विजय हासिल करने के लिये हुए है । एैसे विजय व्यक्ति से लेकर समूह समाज और राष्ट तक की उंचाई तक जाते हैं । जहां विजेता को धन संपदा गुलाम नागरिक अपार संसाधन प्राप्त होते हैं। विजेता जानता है कि यह उसकी बाहरी जीत है भौतिक जीत है । इसलिये वह अपनी जीत को स्थायी बनाने के लिये अपनी विचारधारा जिसमें उसकी भाषा धर्म संस्कृति को षिक्षा साहित्य और अनेक कर्मकाण्डों आयोजनों के माध्यम से विजितों में स्थापित करने का प्रयास करता है । यदि विजेता अपनी विचारधारा को विजितों पर पूर्णतः स्थापित कर दे तो विजेता का विजय अभियान के लिये किया गया संघर्ष सफल माना जाता है । भारतीय परिवेष में विभिन्न आक्रमणकारियों ने समय समय पर भारत देष में पूर्वणतः विजय हासिल कर विचारधारा ने को स्थापित करने का प्रयास किया है । आर्यों से लेकर अंग्रजों तक से स्थानीय मूलनिवासियों अपने आप को बचाने का समय समय पर डटकर मुकाबला किया है लेकिन अज्ञात कमजोरी के कारण मूूूूूूलनिवासी बाहरी लडाई हारते गये । व्यक्ति से लेकर राष्ट की सत्ता जल जंगल जमीन धन संपदा और भौ

"गोन्डवाना लेन्ड और भारत का आदिवासी"

वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर दुनिया के देश दो भागो में विभाजित है । और हर देश की सभ्यता सन्सक्रति का उद्भव और विकास करने वाला वहाँ का मूलनिवासी या जिसे सयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा में एबोर्जिनल या सयुक्त मापदंड में आदिवासी कहा गया। हालांकि दुनिया के अनेक देशों ने इन्हें अपनी अपनी भाषा में अपना स्थानीय नाम देकर सम्बोधित किया है यथा एबोर्जिनल , रिपब्लिकन पीपुल या अन्य नाम परन्तु हमारे देश में इन्हें आज तक उस मूल भाव से जो अन्य देशों ने दिया  है नहीं दिया गया, बल्कि जातीय सूची में सूचीबद्ध कर आज तक उसमें जातियो को जोड़ने घटाने का काम किया जा रहा है। यही कारण है कि आज हर जाति उस सूची में शामिल होने की होड में है। हर कोई देश का मूलबीज होने का दावा करता दिखाई दे रहा है। और तो और जिन जातियों को दुनिया के इतिहासविद् एवं वैज्ञानिक अनुसंधान ने विदेशी करार दिया है, ऐसी जातियाँ भी आज अपने आप को देश का मूल बीज बताने के लिये इतिहास से छेडछाड करने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । यह सब इसलिये हो रहा है कि एक तो देश के मूल बीज का उसके मापदंड के आधार पर कोई नाम नहीं दिया गया उन्हें केवल गरीबी,अशिक्षा

सावधान ! "देखो इतिहास बदला जा रहा है ।"

प्रत्येक देश का नागरिक खुद को वहां का मूल निवासी मानता है। जैसे अमेरिकावासी खुद को मूल निवासी मानते हैं लेकिन वहां की रेड इंडियन जाती के लोग कहते हैं कि यह गोरे और काले लोग बाहर से आकर यहां बसे हैं। इसी तरह योरपवासियों का एक वर्ग खुद को आर्य मानता है। अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि आर्य मध्य एशिया के मूल निवासी थे। अब आओ हम इतिहास और विज्ञान की नजरों से जानते हैं कि भारत का मूल निवासी कौन? शब्दों का फर्क समझें :- अंग्रेजी का नेटिव (native) शब्द मूल निवासियों के लिये प्रयुक्त होता है। अंग्रेजी के ट्राइबल शब्द का अर्थ 'मूलनिवासी' नहीं होता है। ट्राइबल का अर्थ होता है "जनजातीय'। 9 अगस्त को 'विश्व जनजातीय दिवस' मनाया जाता है। 'विश्व जनजातीय दिवस' अर्थात विश्व की सभी जनजातीयों का दिवस। यहां यह उल्लेख करना जरूर है कि भारत में अधिकतर लोगों के पास अधकचरा ज्ञान है जिसके कारण जातिगत और सामाजिक विभाजन होना स्वाभाविक है और इसमें उनके सांप्रदायिक और राजनीतिक स्वार्थ भी जुड़े हुए हैं। अधिकतर लोग मतांध हैं:- यदि आप इतिहास और विज्ञान की अच्छे से समझ नहीं रखते हैं तो आप

जाति, समुदाय और समाज

सन्कुचित जातीय मानसिकता को सबसे पहले सामुदायिक तथा अन्त मे समाजिक स्तर पर लाना होगा अन्यथा नुकसान सम्भव है । भारतीय परिवेश मे जातीय सम्प्रदायिक सामुदायिक दन्गे आम बात है । धर्म सन्स्क्रति से मजबूत कौमे जातीय मानसिकता नही वरन् सामुदायिक मानसिकता से लैस होती है ए जो जातीय समूहों को धर्म सन्स्क्रति की माला मे पिरोकर एक शसक्त समुदाय के रूप मे अपनी उपस्थिती का अपनी ताकत का एहसास कराती है । ऐसे समुदाय आज अल्पसन्ख्यक माने जाते हैए पर अपने आप को सुरक्षित रखे हुए  हैं । किसी ना किसी बहाने एैसे अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जाता है । एैसे ही आतंकवादी का पर्याय बना मुस्लिम, पूर्वोत्तर में विद्रोही या देशद्रोही का कथित आरोपी बना आदिवासी, अपने अस्तित्व बचाने में लगा हुआ है । दक्षिण भाग के आदिवासी को भी नक्सलवादी के नाम पर घीरे धीरे देश में स्थापित किये जाने का प्रयास किया जा रहा है । एैसे मौके पर आदिवासी जातियां समूदाय के रूप में स्थापित हो जाना चाहिये, भले हम किसी रूप में एकत्र हों, वह रूप संस्कृति, भाषा धर्म या समस्या के आधार पर भी संभव है । जाति और समुदाय को अपने अधिकारों के लिये संघर्ष के

पांचवीं छठी अनुसूचि और प्रशिक्षण

मित्रों 5वीं एवं 6वी अनुसूचि आदिवासी समुदाय के हित संरक्षण का महत्वपूर्ण अध्याय है । इसकी जानकारी समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति को होना चाहिये । आप सभी ने इस विषय को सामाजिक पटल पर लाकर इसकी जानकारी महत्ता को बताने का भरसक प्रयास किया है । इस विषय पर लगातार जानकारी रूपी आन्दोलन चलाकर काफी हद तक कुछ लोगों को जानकार बनाने का प्रयास किया जिसमें कुछ लोग हक अधिकारों को पाने में सफल भी हुए हैं कई एैसे निर्णय जिसमें 5 वीं अनुसचि ने समुदाय का संरक्षण  किया है । परन्तु इतनी जनजागृति काफी नहीं है हमें हर तबका जिसमें जो आज सुविधाभोगी हो जाने के कारण इसे जानने का प्रयास नहीं किया है । या वह तबका जो शिक्षा की कमी के कारण इस जानकारी से अनभिज्ञ है उसे समझाने का प्रयास करना होगा । हमारा अशिक्षित समाज अपने अधिकारों की थोडी बहुत जानकारी लेकर आन्दोलित तो हो सकता है पर उसकी वैधानिकता और क्रियान्वयन कराने के लिये प्रशिक्षित वर्ग की आवश्यकता होगी अधिकारियों कर्मचारियों की आवश्यकता होगी राजनेताओं की भी आवश्यकता होगी यदि इन्हे भी पता नहीं होगा तो वे आपका साथ कैसे दे पायेंगे । आज वे संवैधानिक पदों पर हैं उनसे

"भारतीय सविधान और जनप्रतिनिधि"

भारतीय सविधान मे राजनीतिक दलों के लिये कोई व्यवस्था या प्रतिनिधित्व को महत्व नहीं है। केवल जनप्रतिनिधि या प्रतिनिधित्व को स्वीकार करता है । जनप्रतिनिधियो ने समूह बनाकर या एक कम्पनी बनाकर जिसे हम पार्टी का नाम देकर एक कम्पनी की तरह अपनी बनाई कम्पनी नीति को जनता पर थोपते हैं । उदाहरण के लिये सदन में अध्यक्ष द्वारा माननीय सदस्य के रूप में सम्बोधन होता है । पार्टी के माननीय सदस्य नहीं । उदाहरण २- किसी अध्यादेश प्रस्ताव पर सदस्यों को अपने स्वविवेक से  मतदान के लिये कहना । जहां तक पार्टी व्हिप का प्रश्न है वह केवल पार्टी विशेष का जबरिया आदेश है । इसके उल्लन्घन पर सदस्यता समाप्त नहीं होती । पार्टी उसे निष्कासित कर देती है । सन्विधान ने केवल प्तिनिधित्व को सर्वोच्च माना है । जनप्रतिनिधी केवल अगली टिकिट के भय से भयभीत रहते हैं । लालच ना हो तो कभी भी दलो से बगावत कर सकते हैं पार्टियां उस सदस्य का कुछ बिगाड नहीं सकती । इस बात को कोई दल बताने वाला नहीं । जिसने सन्विधान को अच्छी तरह पता है जरूर समझता है । इस जानकारी के बाद एक सामान्य मतदाता अपने प्रतिनिधि से इस तरह का सवाल जरूर कर सकता है -गुलज़ा