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Showing posts from January, 2018

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि

“हिन्दुस्तान, संविधान और आदिवासी “

“हिन्दुस्तान, संविधान और आदिवासी “ आर एस एस यदि संविधान का सम्मान करते हुए “वनवासी” को जनजाति का सम्बोधन करना चाहती है तो स्वागत है ,पर देश का नाम भारत भी संविधानिक है । आर एस एस का इसे “हिन्दुस्तान” नाम से सम्बोधित किया जाना दोगलापन है । यदि आर एस एस हिन्दुस्तान जैसे असंवैधानिक शब्द का सम्बोधन नहीं छोडती है तो अनुसूचित जनजाति समुदाय “गोंडवाना का आदिवासी” जैसे महत्वपूर्ण सम्बोधन से अपने आप को गौरवान्वित करती रहेगी ।-gsmarkam “मंगल फौजी , और प्रस्तावित मूवी “वसुन्धरा” ( मावा आयाल)” मंगल फौजी , मूलत: उप्र के निवासी जिन्हे जातिवादी व्यवस्था ने उप्र में विश्वकर्मा, झारखण्ड में लोहरा, मप्र छग में अगरिया , राजस्थान में गाडिया लोहार तथा देश के विभिन्न प्रांतों में ना जाने किन किन नामों से जाना जाता है , इस जानकारी से अनभिग्य हूं । परन्तु “मंगल फौजी के प्रस्तावित मूवी की “ थीम” ने स्रष्टि रचना और मानव / कोयतुरियन सभ्यता की स्थापना में मनुवादियों के कथित स्रष्टि रचयिता भगवान विश्वकर्मा का नाम जोडने का अस ली कारण समझ में आया । हो सकता है यह समझ मेरी अल्प बुद्धि की समझ का कारण भी हो सकता है, प

"आरएसएस की विचारधारा को मजबूत करने में कान्ग्रेस मे बैठे मनुवादियो का पूरा समर्थन है ।"

"आरएसएस की विचारधारा को मजबूत करने में कान्ग्रेस मे बैठे मनुवादियो का पूरा समर्थन है ।" गुजरात चुनाव को जीत सकती थी कान्ग्रेस लेकिन कान्ग्रेस मे बैठे मनुवादियो ने पप्पू के कन्धे में बन्दूक रखकर चुनाव माहौल को खराब कर दिया । इसका एक ही कारण है कि जब जब भी चुनाव होन्गे ये लोग भाजपा को बाकोबर देते रहेंगे । जब तक भाजपा का देश के सभी राज्यों में कब्जा ना हो जाये । सम्पूर्ण सत्ता के लिये जिस "ईवीएम मशीन" का उपयोग किया जा रहा है उसके विरुद्ध कान्ग्रेस मुखरता से सामने कभी नहीं आ सक ती । काग्रेस में सम्बद्ध मूलनिवासी बन्धुओ ,कान्ग्रेस योग्य शिक्षित उम्मीदवारो को टिकिट नही देगी । भाजपा को बाकोबर देने के लिये कान्ग्रेस के चड्डीधारियो का हिन्दू राष्ट्र की कल्पना, सन्विधान बदलने के शडयन्त्र को पूरी तरह समझना होगा । छोटे दलो से भी कान्ग्रेस यदि गठबन्धन की बात करती है तो छोटे दल गठबन्धन करे लेकिन अपनी शर्तो पर करे । कान्ग्रेस की शर्त पर नही अन्यथा लाभ भाजपा को ही मिलने की पूरी व्यवस्था हो चुकी है । गुजरात का चुनाव इसका जीता जागता उदाहरण है । -gsmarkam

"विभागीय भर्ती एजेंसियां और कर्मचारी चयन आयोग"

"विभागीय भर्ती एजेंसियां और कर्मचारी चयन आयोग" भारतीय संविधान में देश को चलाने के लिये दो तरह के शासकीय तंत्र हैं 1-केंद्रीय प्रशासनिक सेवा तंत्र तथा 2- राज्य प्रशासनिक सेवा तंत्र केंद्रीय कर्मचारियों के चयन के लिये ऐजेसी है संघ लोक सेवा आयोग और राज्य सेवा कर्मचारियों के चयन के लिये राज्य लोक सेवा आयोग जो विभिन्न विभागों की मांग पर कर्मचारियों का चयन करके संबंधित विभाग को कर्मचारियों की पूर्ति करे । परन्तु संविधान की मंशा को ताक में रखकर केंद्र और राज्य सरकारों नें उक्त एजेंसी की शक्तियों को सीमित करके अपने अपने विभागों की चयन समितियों का गठन कर लिया है । रेल्वे भर्ती बोड स्टेट बैक चयन बोड व्यवसायिक परीक्षा मंडल आदि अनेक विभागों के अपने अपने भर्ती बोर्ड बने हैं और यहीं से भर्तियों में धांधली परिवारवाद और रिस्वतखोरी को बढावा मिला है है । यह भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है इसी का परिणाम है कि विभिन्न विभागों के आरक्षित पदों की रिक्तियों का पता नहीं चलता विभागीय प्रमुख चुपचाप रिक्तियों की पूर्ति के लिये सरकार से अनुमति लेकर उन पदों को भर लेता है । इस तरह की चयन

"सम्मान खोजता आदिवासी"

(1) "सम्मान खोजता आदिवासी"  सैकडों दसकों ,शताब्दियों से अपना सम्मान खोता जा रहा समुदाय जिसे गैरों ने हमेशा अपने से कमतर माना है और लगातार यह मानसिकता बनी हुई है । आदिवासी समुदाय ने जैसे जैसे अपने स्वाभिमान सम्मान पैदा करने वाले सामाजिक धार्मिक राजनैतिक सांस्कृतिक एैतिहासिक तत्वों को समझने का प्रयास किया है तब सम्मान हासिल करने की यह भूख बढती जा रही है जो समुदाय के लिये शुभ संकेत है । लोग मुझे जाने लोग मेरा सम्मान करें लोग मुझे अच्छा कहें यह मानवीय अभिलाषा है । जब गैरों से सम्मान  नहीं मिलता तब एैसी अभिलाषा की पूर्ति की आशा वह अपने समुदाय से करता है, किसी तरह की अभिव्यक्ति से सामाजिक कार्य से ,अपना फोटो दिखाकर, अपने परिवार, बाल बच्चों, शिक्षा दीक्षा और हैसियत बताकर, शोसल मीडिया में उल्टी सीधी हरकते करके अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता है । यह सही है कि गैरों से सम्मान पाने के लिये समुदाय को अपने आप से सम्मान हासिल करना होगा । अपने आप का सम्मान करना होगा तभी आदिवासी समुदाय गैरों की मासिकता को बदल सकता है । आदिवासी आन्दोलन के इस दौर में यह वातावरण देखने को मिल भी रहा

सेरता पन्डुम

सय अरता पन्डुम सेरता पन्डुम सय: सय या सिक शब्द मूलतः गोंडी भाषा का है इसका मतलब बढोत्तरी या अतिरिक्त उपज से है ।  अरता: अरता शब्द गिरने से है जिसका उपज आने से आशय है । हिन्दी भाषिक गोंडी क्षेत्रों में इसे सेरता छत्तीसगढी भाषिक क्षेत्रों की गोंडी में हेरता दक्षिण बस्तर में बहुत से शब्दों में स का उच्चारण ह से किया जाता तथा छत्तीसगढी हिन्दी में अपभ्रश होकर छेरछेरा भी कहा जाता है ।  सेरता पन्डुम मूलतः कृषि तथा कृषक की धान, कोंदों ,कुटकी ,मक्का आदि फसल आने के बाद किसान ने किस फसल की खेती की है और उसे कितना अतिरिक्त लाभ हुआ जिसकी खुसी में बच्चों को स्वेच्छा से कितना देता है । तथा अन्नमदेव जो महान दानवीर था को याद करने के लिये कि वह कितना बडा दानी था । किसान सामूहिक बाल भोज में अपने योगदान को दिखता है । बच्चे जब उसके आंगन में जाते हैं त बवह अपने खेतों में हुई फसल का ब्योरा बताता है कि इस साल तो अच्छा ही हुआ है या इस साल मेरी फसल मार खा गई है इसलिये मैं यह दे सकता हूं यह नहीं दे सकता आदि । प्रमाण रूप में उस टोली में उस घर का बच्चा भी रहता है वह कहता है कि सब कुछ ठीक हुआ है तब बच्चे अपने हाथो

गौंडवाना के लोग और गोंडवाना की राजनीति

(1) गौंडवाना के लोग और गोंडवाना की राजनीति”  मप्र में गोंडवाना की राजनीतिक एकता से भाजपा को लाभ मिलता है । वही गोंडवाना के राजनीतिक विभाजन से कांग्रेस को लाभ होता है । ऐसे में गोंडवाना आन्दोलन के राजनीतिक चिंतकों, समर्पितों,समर्थकों को कौन सा राजनीतिक मार्ग बनाना चाहिये ताकि ये दोनों मनुवादी/पूंजीवादी / आरक्छण विरोथी कांग्रेस तथा भाजपा जैसे राजनीतिक दलों को चुनाव २०१८ मे पराजित किया जा सके । राजनीतिक समझ रखने वाले मित्रों से सुझाव की अावश्यकता है ।-gsmarkm (2) “मप्र का २०१८ का राजनीतिक गणित” गोंड,गोंडी,गोंडवाना के आधार पर ! (१) गोंडवाना (छग)+गोंडवाना (मप्र ) एकता = कुछ सीटों पर जीत । (२) एक गोंडवाना + मायावती बहुजन = ४० प्रतिशत जीत । (३) एक गोंडवाना + मायावती बहुजन + वामन बहुजन= ५० प्रतिशत जीत । (४) एक गोंडवाना + मायावती बहुजन + वामन बहुजन+ कांशीराम बहुजन = ७० प्रतिशत जीत । (५)एक गोंडवाना +एक बहुजन (अजा,अल्पसंख्यक,पिछडा)=१०० प्रतिशत जीत यानि मप्र में मूंलनिवासियों की सरकार ! यदि ऐसा ना हो तो भूल जाओ बहुजन और गोंडवाना की राजनीतिक ताकत के बारे में , सभी लोग कथित बडे दलों की दलाली