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Showing posts from April, 2018

"पत्थल गढी" गोन्डवाना के आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।

"पत्थल गढी" गोन्डवाना के आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। पत्थल गढी करने वाले आदिवासियो पर शासन प्रशासन और आर्य संस्कृति के लोग जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं, इसे नासमझी नहीं कहा जा सकता। यह बर्ताव आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध हमला कहा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि इतिहासविदो और समाजशास्त्रियो ने ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक विरासत को जानबूझकर अन्धेरे मे रखा है, तभी तो पत्थल गढी जैसे महत्वपूर्ण ज्ञान से शेष भारतीय जनमानस अनभिज्ञ है । जबकि भारत देश का हर गाव इस पत्थल गढी के  सन्केतक पर ही स्थापित है । जरा सोचे कि भारत देश का कौन सा गांव बिना सीवाना/मेंढा या ग्राम सीमा के लिखित आलिखित मानक से अछूता है , कोई भी नहीं ! इसी मानक के आधार पर ही तो ग्राम तथा ग्राम समुदाय की पहचान होती है । इसी के आधार पर वहाँ की सामाजिक, राजनीतिक सान्स्क्रतिक व्यवस्था सन्चालित होती है । शहरो की आरम्भिक इकाई भी तो गाव ही है । यही कारण है कि हर शहर के किसी कोने मे पत्थल गढी के रूप मे स्थापित प्रतीक चाहे वह खेडापति (भीमाल पेन) खेरमाई ,खीलामुठवा या अन्य स्थल हो । केवल आदिवासी ही नही हर वर्ग और समुदाय

"मूलनिवासीयो को मूलनिवासी हित में अपना "माईन्ड सेट" कर लेना होगा ।"

"मूलनिवासीयो को मूलनिवासी हित में अपना "माईन्ड सेट" कर लेना होगा ।" देश में मनुवादी मानसिकता की सरकारों और सन्गठनो के माध्यम से मूलवासियो के अधिकारों का हनन और लगातार अन्याय अत्याचार तथा भेद भाव की घटनाओं को ध्यान मे रखते हुए, मूलवासियो/मूलनिवासीयो तथा उनके नेतृत्व में चल रहे सन्गठनो को कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता है। सबके सोच विचार और व्यवहार में एकरूपता लाना अनिवार्य आवश्यकता हो गई है। इन परिस्थितियों में कोई व्यक्ति या सन्गठन बहाने बाजी करता दिखाई सुनाई दे तो तत्काल उस  व्यक्ति या सन्गठन से लिखित या मौखिक रूप से अपनी स्थिति स्पष्ट कराये कि आप और आपके सन्गठन का आज के इन विषम परिस्थितियों में क्या रुख है। आप किस विचारधारा और सन्गठन का सहयोग क्यों कर रहे हो, और क्यों नहीं कर रहे हो । ऐसे व्यक्ति या सन्गठन के क्रियाकलापों का मूल्यांकन करके, उनके साथ उसी तरह का व्यवहार करना शुरू कर दें । यह समय की जरूरत है, अन्यथा दुश्मन से अधिक मूलनिवासीयो का नुकसान ये छदमवेशी व्यक्ति या सन्गठन करते आ रहे हैं। वर्तमान कठिन दौर में इनसे स्थायी नुकसान हो सकता है। इसलिये मूलनिवासीयो क

मंडला के आदिवासियों अपने धरोहर का संरच्छण स्वयं करो "

मंडला के आदिवासियों अपने धरोहर का संरच्छण स्वयं करो " मंडला जिला स्थित गोंडवाना कालीन नामनगर किले को मंडला के आदिवासियो को अपने कब्जे में कर लेना चाहिये। जब शासन इसे पुरात्व सूचि से अलग कर रही है यानि दाल में कुछ काला है , सरकार इसे पर्यटन विभाग को हॉटल के लिये देने का रास्ता बना रही है । इससे पहले सरकार कुछ करे मंडला का आदिवासी समुदाय अपने ट्रस्ट या किसी पंजीक्रत समिति के माध्यम से उसके रखरखाव व संरच्छण हेतुअपने अधिकार में लेने हेतु कलेक्टर मंडला को तुरंत आवेदन लगा दें । -gsmarkam

"आदिवासियों के प्रथक धर्मकोड पर लगातार सेमिनार आयोजित हों "

"आदिवासियों के प्रथक धर्मकोड पर लगातार सेमिनार आयोजित हों " आदिवासियों के प्रथक धर्मकोड पर लगातार सेमिनार और गुजरात झाारखंड दिल्ली और मप्र की ओर से जनगणना रजिस्टार को लिखे पत्र का जवाब यही आ रहा है कि आदिवासियों ने बहुत से धर्म लिखे हैं इसलिये उन्हें एक कोड दिया जाना संभव नहीं है जबकि 1871 सं लेकर 1941 तक जनजातियों की एक धर्म के अंतर्गत गणना की गई थी तब भी आदिवासी एक धर्म होड के बावजूद अनेक पंथों को मानने वाले थे अब कौन सी अडचन आ रही है कि जनगणना आयुक्त उन्हे एक कोड नहीं देना  चाहते । जब हिन्दू धर्म में अनेक संप्रदाय हैं, मुस्लिम ,ईसाई में अलग अलग संप्रदाय हैं फिर भी उन्हें एक कोड दिया गया है, और जनजातियों को हिन्दू नहीं माना गया है तब उन्हें एक धर्मकोड देने में परेशानी नहीं होनी चाहिये । अतः हमें सजग रहना पडेगा 2021 की जनगणना के पूर्व यदि धर्म कोड नहीं दिया जाता तब तक हमारी तैयारी इतनी हो कि हम देश के सभी जनजाति समुदाय एक नाम पर सहमत हो जायें और यदि जनगणना में "अन्य" का कालम रहता है ,तब उसमें वही धर्म लिखें जो विभिन्न राज्यों में सेमिनार के माध्यम से रायसुमारी के

आर्थिक आधार पर आरच्छण की वकालत हो पर कुछ ऐसे हो”

आर्थिक आधार पर आरच्छण की वकालत हो पर कुछ ऐसे हो” १- जातिगत समानता (ऊंची,नीची जाति की भावना समाप्त हो) २- शिच्छा में समानता(समान शिच्छा प्रणाली) ३- भूमि का समान बंटवारा हो (प्रति व्यक्ति पर) ४- रूपया और संपत्ति का समान बंटवारा(प्रति व्यक्ति) ५- शासकीय सेवा के पदों का समान बंटवारा हो (जनसंख्या के अनुपात में) ६- समस्त व्यापार,उद्योग का राष्ट्रीयकरण हो(उसमें प्रति व्यक्ति की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो) ७- चुनाव प्रक्रिया से भरे जाने वाले सभी राजनीतिक पदों पर का बंटवारा हो (जनसंख्या के अनुपात में) (इतना काम करके समान नागरिक संहिता बनालो,आरच्छण समाप्त कर दो, संविधान बदल दो हमें मंजूर है ।)ये मेरे व्यक्तिगत विचारद्रष्टि है जरूरी नही कि हर मूलवासी इस बात से सहमत हो-gsmarkam

देश की व्यवस्था को एक मुटठी में गिरफतार करने का प्रयास जारी है ।

देश की व्यवस्था को एक मुटठी में गिरफतार करने का प्रयास जारी है । आरएसएस के एकात्मवाद,फासीवाद की अंतिम परिणिती सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, है जिसे वह अपने सहयोगी संगठनो के माध्यम से किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहती है । राष्टवादी होने की बात समझ में आती है पर सांस्कृतिक राष्ट्रवादी की परिभाषा क्या है, इसे समझने की आवश्यकता है । क्या भारत में अभी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद नहीं ? यदि नहीं तो आरएसएस कौन से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना की कल्पना में है । क्या भारत के नागरिको के सारे संस्कार नष्ट हो गये । रिस्ते नाते,अदब इज्जत,पडोसी से सदभावना समाप्त हो गई ? इंसान और जानवर के बीच कोई अंतर नहीं रह गया ? क्या आस्था और विश्वास पूरी तरह समाप्त हो चुका है ? क्या इंसान के आंतरिक गुण और स्वभाव में शैतानियत बैठ गई जिसे आरएसएस छदम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर ठीक कर देने का ढिडोरा पीट रही है । मित्रो  आरएसएस छदम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केवल हिंदू हिन्दी हिन्दुस्तान से उूपर उठकर नहीं है । उसका एकात्मवाद भी इसी के इर्दगिर्द घूमता है जो फासीवादी,तानाशाही सत्ता की स्थापना से ही संभव है । संविधान में प्रजात

मनु और मनुवाद

"मनु और मनुवाद" मनु के जीन में ही साम,दाम, दंड, भेद समाया हुआ है , एैसे में उसकी औलादों के रक्त से यह गुण कैसे निकल सकता है । इसलिये आप इन पर कितना भी विश्वास करेंगे कहीं ना कहीं कभी ना कभी आपको धोखा ही खाना पडेगा । यही कारण था कि पेरियार ने उनके लिये सीधा सीधा कहा था कि सांप और बामन एक साथ मिले तो पहले बामन से निपटो,क्योकि सांप को पहचानकर बिल से निकाल कर मार लोगे पर बामन अपना रंग बदलकर आपके बीच छुप जायेगा उसे ढूंढना मुस्किल होगा । इनके इसी गुण के कारण अंगेजों ने भी स्पष्ट कहा था कि न्यायिक पदों पर इन्हे नहीं बैठाया जाना चाहिये कारण कि इनके स्वभाव में ही पक्षपात भरा होता है । मनु और मनुवाद के परिपेक्ष्य में मनु के रक्त को बदला नहीं जा सकता परन्तु मनुवाद एक विचारधारा है जिसे विचारधारा के माध्यम से पूरी तरह समाप्त किया जाना संभव है । कारण कि मनु का रक्त अन्य मूलनिवासियों के शरीर में नहीं बल्कि उन पर थोपा हुआ मनुवादी विचारों का आवरण है जिसे प्रकृतिवाद के माध्यम से हटाया जा सकता है । ध्यान यह रहे कि प्रकृतिवाद की प्रस्तुति मनुवाद से बेहतर हो । ध्यान रहे दुनिया में कोई भी वाद कि

दिनॉक १५.४.२०१८ को जनजातियों के धर्मकोड विषय पर ८ वां चर्चा सत्र सम्पन्न”

“दिनॉक १५.४.२०१८ को जनजातियों के धर्मकोड विषय पर ८ वां चर्चा सत्र सम्पन्न” जनजातियों के धर्मकोड विषय पर ८ वां चर्चा सत्र सम्पन्न दिनॉक १५.४.२०१८ को गुजरात राज्य के ऊनी में सम्पन्न हुआ । जनजाति धर्मकोड के संबंध में कार्यवाही के लिये चयनित रा० संयोजक मा० देवकुमार धान जी , पूर्व मंत्री (विधी विभाग) बिहार की अध्यच्छता , तथा गुजरात प्रदेश के संयोजक  मा० लालूभाई वसावा के मंच संचालन के माध्यम से सम्पन्न हुआ । सत्र का आरंभ भील मीणा समुदाय की अराध्या देवी “ देवमोगरा माता” जिसे कणीं कंसरी यानि अन्न माता के नाम से भी जाता है, की पारंपरिक पूजा अराधना से आरंभ हुआ । इस चर्चा में भाग लेने के लिये गुजरात राज्य से जनजातीय समुदाय की विभिन्न उपजातियों के स्थानीय अधिकारी-कर्मचारी, समाजसेवीयो के साथ साथ मप्र , महाराष्ट्र,छग,उडीसा तथा झारखंड के धर्म विषयक जानकार उपस्थित होकर धर्मकोड की आवश्यकता पर अपने विचार रखे । सभी प्रतिभागियों ने एक स्वर में धर्मकोड को अनिवार्य आवश्यकता बताया । विभिन्न प्रदेशों के प्रतिभागियों ने अपने राज्य की ओर से धर्मकोड पर सुझाव रखते हुए प्रस्तावित नाम के पक्छ में ऐतिहासिक ,भौगो

"2018.19 के चुनाव में सवर्ण जातियों के वोट का वर्णीय स्तर पर धुर्वीकरण होगा ।"

"2018.19 के चुनाव में सवर्ण जातियों के वोट का वर्णीय स्तर पर धुर्वीकरण होगा ।" -पूर्व में सवर्ण वोट में जातिगत धुर्वीकरण होता रहा है यथा ठाकुर बनाम बामन आगामी किसी भी चुनाव में भले ही कांग्रेस या अन्य दलों के सवर्ण उस दल के कटटर कार्यकर्ता जाने वा माने जाते हैं ,पर वे अब आंतरिक रूप से भाजपा को मदद करेंगे । कारण कि अब होने वाला राजनैतिक संघर्ष सांस्कृतिक रूप ले चुका है अवर्ण बनाम सवर्ण की झलक साफ साफ दिखाई देने लगी है । बंटेगा केवल अवर्ण जिसमें आदिवासी पहले नम्बर पर होगा । अ नुसूचित जाति समुदाय में खासकर चमार जाति की इस मामले में समझ बढी है । उसकेा वोट का कुछ हद तक ध्रुर्वीकरण हुआ है इसलिये अभी दुश्मन का सीधा निशाना उस पर है भय और आतंक से उसे डराया जा रहा है जबकि निशाना आदिवासी भी है पर उसे अलग थलग करके उससे अगले चरण में निपटने का लक्ष्य बनाया गया है । इसलिये मप्र में कम से कम अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग का ही समस्या के आधार पर धुर्वीकरण की दिशा में कुछ प्रयास हो जाये तो दुश्मन के मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है । जनजाति वर्ग में प्रमुख जाति भील तथा उसकी उपजातियां और गोंड तथ

"आधुनिक देवासुर संग्राम का शंखनाद "

part-1 "आधुनिक देवासुर संग्राम का शंखनाद " (2 अप्रेल 2018 बनाम 10 अप्रेल 2018) आर्य बनाम द्रविण 85 प्रतिशत बनाम 15 प्रतिशत राक्षस बनाम देवता अवर्ण ,अनु0जाति अनु0जनजाति अन्य पिछडा वर्ग बनाम सवर्ण , बामन वैश्य बडे जमींदार अवर्ण अधिकार सुरक्षा की मांग बनाम सवर्ण द्वारा अधिकार कम किये जाने की मांग "बेवजह किसी से भिडना नहीं, अति होने लगे तो पीछे हटना नहीं ।। ये हक और अधिकार की लडाई है । जब मरने की नौबत आ जाये तो, बिना दुश्मन को मारे मरना नहीं ।।"-gsmarkam part-2 "The defeated nation is not defeated until its culture is defeated."- Chanakya "After the defeated nation's cultural debacle, there will never be a ripple of revolution in that nation." - Gulzar Singh Markam पराजित राष्ट्र तब तक पराजित नहीं होता, जब तक उसकी संस्कृति पराजित नहीं होती ।- चाणक्य पराजित राष्ट्र के सांस्कृतिक पराजय के बाद उस राष्ट्र में क्रांति के अंकुर कभी नहीं निकलते । -गुलजार सिंह मरकाम

कमजोर तैयारी से जीत संभव नहीं ।

कमजोर तैयारी से जीत संभव नहीं ।  गोंडवाना का आदिवासी जब तक अपनी एकता और ताकत देने वाले मूल तत्वों भाषा धर्म संस्कृति को मजबूत नहीं नहीं करता तब तक किसी तरह का आन्दोलन सफल होना संभव नहीं दिखाई देता । अस्वस्थ्य व्यक्ति या समुदाय स्वास्थ्य व्यक्ति और समुदाय के सामने असफल ही होता रहेगा । समग्र क्रांति के लिये भाषा धर्म संस्कृति से संबंधित साहित्य रचनाऐं गीत संगीत अध्यात्म से लेकर परंपरागत स्वास्थ्य ज्ञान रीति नीति शिक्षा तथा व्यवसाय के क्षेत्र में विचारधारा के अनुरूप कार्य समुदाय को ताकतवर बनाती है । जिससे समुदाय संगठनिक रूप से सक्षम होकर सामाजिक राजनीतिक रूप से परिणाम देने लायक बनता है यह ताकत किसी तरह की प्रतियोगिता में आपको असफल नहीं होने देगा । -gsmarkam

मूलनिवासियों के विभिन्न सामाजिक संगठन, राजनेता और राजनीतिक दलों पर नकेल(नाथ) कसने की जिम्मेदारी लें ।

मूलनिवासियों के विभिन्न सामाजिक संगठन, राजनेता और राजनीतिक दलों पर नकेल(नाथ) कसने की जिम्मेदारी लें । मूलनिवासियों के अधिकारों पर लगातार कुठाराघात के साथ देश में संप्रदायिकता व अराजकता का वातावरण पैदा करने वाली शक्तियों (आरएसएस और उसकी सहोदर संगठन) का साथ देने वाले व्यक्ति,समुदाय या संगठन को सीधा और स्पष्ट जवाब बहिष्कार के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता । यह काम मूलनिवासियों के विभिन्न सामुदायिक संगठन बखूबी कर सकते हैं । यह समय मूलनिवासियों मे संगठित वर्ग चेतना पैदा करने का है ! त ाकि मूलनिवासियों के दुश्मन , चाहे वह समुदाय का ही क्यों ना हो, उसका खुला बहिष्कार सामाजिक संगठनों के माध्यम से आसान है । “याद रखो “संविधान” गया तो सबकुछ चला जायेगा । इसी एक्ट के बहाने सही, इससे अच्छा एकता का अवसर फिर कभी नहीं आयेगा ।।” -gsmarkam

“ पांचवीं अनुसूचि ,जनजातीय छेत्रों का स्थानीय संविधान है ,ग्राम समुदाय की आत्मा है”

“ पांचवीं अनुसूचि ,जनजातीय छेत्रों का स्थानीय संविधान है ,ग्राम समुदाय की आत्मा है” अनुसूचित घोषित छेत्र का समुदाय अपने गॉव की परंपरागत सीमा (मेढा,सीवाना) का नजरी नक्शा तैयार कर “परंपरागत रूढि पंचायत” समिति के पास सुरच्छित रखें । साथ ही परंपरागत सीमा जिसे वनाधिकार अधिनियम २००६ के कानून में स्पष्टतया उल्लेखित किया गया है । कारण भी है कि अपनी परंपरागत सीमा के स्थावर,जंगम आदि संसाधनों के आप मालिक हैं तब मालिक के पास अपने संसाधनों का असली रिकार्ड होना आवश्यक है । तभी तो आप चुनी ह ुई सरकारों के तंत्र के फर्जी रिकार्ड को चुनौती दे सकते हैं । हर बिन्दु पर असली साक्छ्य चाहे वह गरीबों , अमीरों,शिच्छित अशिच्छित, स्वास्थ्य पेयजल विकलांग बच्चे बूढे जवान ,मृत-जीवित, आश्रित निराश्रितों की असली जानकारी आप ही दे सकते है । चुना हुआ प्रतिनिधी/ पंचायत/सरकार अपने सरोकारों को ध्यान में रखकर रिकार्ड तैयार करती है इसी रिकार्ड को ही आपको मानने के लिये बाद्धय होना पडता है , कारण कि आपके पास रिकार्ड संधारित नहीं है । इसलिये चुनी हुई संस्थाओं पर काबू रखना है तो आपको अपने ग्राम संपदा का रिकार्ड रखना होगा

“एट्रोसिटी एक्ट १९८९ संशोधन का सच”

“एट्रोसिटी एक्ट १९८९ संशोधन का सच” आदिवासी समुदाय ने अपनी बिरादरी के विभिन्न दलों में काम करने वाले नेताओं का सत्तर साल से साथ दिया केवल समुदाय हित की अपेच्छा के लिये ? चलो मानकर चलते हैं कि नेताओं ने समुदाय का भला करने की बजाय स्वयं का भला किया । परन्तु उन नेताओं से यह पूछा जाना चाहिये कि अब तक तो मनुवादी यह सोचकर तुम्हारे साथ गाली गलौज ,मारपीट या अन्य कुकर्म करने से डरते थे कि इस एक्ट में गैर जमानती गिरफ्तारी होगी जांच के बाद भले ही अपराधी को जमानत मिल जाती रही है । परन्तु  अब जब जांच के बाद अपराध ,कायम होगा तो समझ लो कि ना जांच पूरा होगा ना अपराध कायम होगा ,अपराधी मामले को प्रभावित करता रहेगा, सबूत गवाह को भयभीत करता रहेगा अंतत: पीडित व्यक्ति हताश होकर घर बैठ जायेगा । यही है इस संशोधन का असली लछ्य । सामान्य अपराध में भी तुरंत प्रकरण कायम होता है । इस एक्ट को तो सामान्य कानूून से भी गया बीता कर दिया गया है । अरे नेताओं , हर मौके पर आपको हमने माफ किया है, इस शंशोधन के मामले में किसी को माफ नहीं किया जायेगा । जिसने इस संशोधन के दुष्परिणाम को समझकर आन्दोलन का साथ दिया और देगा उसको स

"देश का आदिवासी अब सुप्रीमकोर्ट को अपनी औकात बता दे"(कानून की बात)

"देश का आदिवासी अब सुप्रीमकोर्ट को अपनी औकात बता दे"(कानून की बात) सर्वोच्च न्यायालय देश के आदिवासियों से बडा नहीं । जब संसद विधान सभा के कानून आदिवासियों की बिना सहमति के लागू नहीं हो सकते तो कानून का पालन करने वाली संस्था सुप्रीमकोर्ट आदिवासियों पर जबरदस्ती कानून को कैसे लागू कर सकती है । आदिवासी इस कानून की अवहेलना करे तो कोई अपराध नहीं अवहेलना नहीं है । आदिवासी इस आदेश को मानने से सीधा इंकार कर दे ।-gsmarkam

मैं विचार और व्यव्हार के बीच जीता हूं ।

1- मैं विचार और व्यव्हार के बीच जीता हूं । व्यक्ति से नहीं विचारों से प्रभावित होता हूं ।  मेरी सोच है कि विचार और व्यवहार का परिणाम यदि मूलनिवासी समुदाय के हित में है  तो उसके लिये अपना सर्वस्व निछावर कर सकता हूं । 2- "कडुवा सच" पी ए संगमा का बच्चा भटक गया , झारखंड के गुरूजी भटकते नजर आ रहे हैं,किरोडी लाल मीना गुलाम हो गया पासवान ,आठवाले से कोई उम्मीद नही , मायावती , प्रकास अंबेडकर, जिग्नेश सुधर जाये तो उम्मीद है । अब तो केवल मूलनिवासियों को शरद यादव, लालू, छोटू वसावा ,वामन,विजय, मनमोहन वटटी ,हीराओं ,से कुछ उम्मीद है वरना गुलामी से उबर पाना मूलनिवासियों के बस में नहीं है । 3- "जरा सोचें " म0प्र0 प्रदेश में 60 प्रतिशत ब्रामनों के पास लायसेंसी हथियार के बंदूक,रिवाल्वर हैं । बाकी के पास अवैघ हथियार रखे हुए हैं , कुछ के पास दिमागी हथियार है । असली युद्ध क्रांति के समय कैसे मुकाबला होगा । 4- "इशारों को अगर समझों तो, राज को राज रहने दो ।" "मूलनिवासियों की असली आजादी की लडाई" मूलनिवासियों तुम्हें असली आजादी ही चाहीये तो । शहर से नहीं गांव से