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Showing posts from June, 2018

"जनजातीय आरक्षण का आधार उसकी संस्कृति संस्कार और रूढी परंपरायें है ।"

"जनजातीय आरक्षण का आधार उसकी संस्कृति संस्कार और रूढी परंपरायें है ।" आरक्षण के संबंध में सदैव ये बात हवा मैं तैरती रही कि आरक्षण को आर्थिक आधार पर कर देना चाहिये । इस पर आरक्षित वर्ग के कुछ सिरफिरे लोग भी बिना जाने समझे अन्यों के साथ हां में हां मिलाने में अपने आप को प्रगतिशील बताने से नहीं चूकते हैं । धर्मांतरित आदिवासी के आरक्षण पर जिस तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं एक तरह से आदिवासियों में विभेद पैदा करने का प्रयास है । आज से लगभग 4 वर्ष पूर्व मैने इसाई संगठनों के कुछ जिम्मेदार व्यक्तियों से इस विषय में बात की थी तो उन्होने बताया कि समय और परिस्थितियों के कारण हम धर्मांतरित हुए हैं वैवाहिक कार्यकृम को छोड दिया जाय तो हमारे लोग धर्मांतरण के बावजूद आदिवासी संस्कृति के बहुत से हिस्से को लेकर लगातार व्यवहार में हैं । और आगे उनका कहना था कि यदि कोई संवैधानिक अडचन आने लगेगी तो हमें आपने मूल धर्म संस्कृति संस्कारों में आने से कोई परहेज नहीं आखिर हमारा खून भी तो आदिवासी का ही है । झारखण्ड में जिस तरह से आदिवासी के बौद्धिक वर्ग इसाई आदिवासी और सरना धर्मावलंबियों के बीच जल जंगल जमी

हमें गोंडवाना आंदोलन पर गर्व होना चाहिये ।"

हमें गोंडवाना आंदोलन पर गर्व होना चाहिये ।" कुछ लोग कहते हैं कि आप गोंडवाना समग्र क्रॉति आंदोलन की बात करते हैं,इस गोंडवाना आंदोलन से समाज का क्या भला हो गया ? और भी अनेक सवाल गोंडवाना आंदोलन से जुडे लोगों से की जाती हैं । उन्हें जवाब देना आवश्यक हो जाता है । १-गोंडवाना आंदोलन ने दुनि़या को प्रकृतिवादी विचारधारा से परिचय कराया । २-गोंडवाना आंदोलन ने आपकी पहचान को स्थापित कराने वाले आवश्यक तत्वों के महत्व को समझाया । ३-गोंडवाना आंदोलन ने आपको प्रकृति शक्ति पडापेन का प्रतीक चि न्ह सल्लॉ गॉगरा और गोंडवाना का राजचिन्ह दिया । ४-गोंडवाना आंदोलन ने सप्तरंगी ध्वजा दिया । ५- गोंडवाना आंदोलन ने आपको अपने साहित्य ओर इतिहास को खोजकर दिया ।आपके महापुरूष, शहीदऔर वीरॉगनाओं के दुर्लभ चित्रों आकृतियों का संकलन कर दुनिया के सामने लाकर दिया । ६-गोंडवाना आंदोलन ने आपको भाषा,धर्म, संस्कृति की आवश्यकता के महत्व को समझाया । ७-गोंडवाना आंदोलन ने आपके अस्तित्व खोते, लोकगीत गायन वादन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है । ८-गोंडवाना आंदोलन ने विचारधारा को प्रवाहित होने के लिये आवष्यक प्रत्येक तत्त्व क

"आजादी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है ।"

"आजादी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है ।" ये धरती हमारी है, इसके बाद हम सबकी है । इससे केवल जनहित के नाम पर हमें बेदखल करना सत्ताधारियों की नाइंसाफी है । आखिर जनहित क्या है ? बहुसंख्यक हित या चन्द पूंजीपतियों ,कार्पोरेट घरानों का हित । हमें इनके विरूद्ध खडा होना है । जमीन पर रहने बसने,उससे जीविका चलाने का शास्वत और नैसर्गिक अधिकार हम सबका है । भारत का संविधान भी यही कहता है । फिर हमारे ही बीच के सत्ताधारियों के चंद चमचों और गुलामों की बात क्यों मानें, उनको अपना बहुमूल्य मत क् यों दें । बहुसंख्यक वर्ग को कम से कम अब तक इतनी सद्बुद्धि तो आ ही जाना चाहिये । आप सोचते होंगे कि जिनकी सत्ता है उनके साथ सैनिक है, साधन है ! हम उनका मुकाबला कैसे कर पायेंगे ? अरे १९४७ के पहले का इतिहास पलट कर देख लो अंग्रेज सत्ताधारियों के साथ क्या हुआ,वे हमारा देश छोडने को मजबूर कैसे हो गये । याद करो जब सेना में बगावत हो गई,जनता ने असहयोग आंदोलन छेड दिया । स्थानीय राजाओं ने अंग्रेजों के विरूद्ध संग्राम छेड दिया । अल्पसंख्यक अंग्रेजों को देश छोडकर भागना पडा । लगभग सौ साल के संघर्ष के बाद अंग्रेजी सत्ता

"मप्र में गैर भाजपा गैर कांग्रेस की सरकार बनाने की आवश्यकता है ।"

"मप्र में गैर भाजपा गैर कांग्रेस की सरकार बनाने की आवश्यकता है ।"  प्रदेश में मूलनिवासियों में राजनीतिक समझ की कमी के कारण लगातार पक्ष और विपक्ष में सदैव कांगे्रस और भाजपा ही जमे हुए हैं । जो कि प्रदेश में तीसरे विकल्प को तैयार नहीं होने देते । वहीं जो दल मप्र में तीसरा विकल्प बन या बना सकते हैं एैसे दल कहीं ना कहीं सत्ताधारी या विपक्ष के झांसे में आकर छोटे मोटे आश्वासन से संतुष्ट होकर अपने आपको कमतर आंक लेते हैं । इन तीसरे विकल्प बन सकने वाले दलों को आत्म मंथन करना चाहिये कि  क्या मप्र का भविष्य इसी तरह मनुवादी दलों के गिरफत में रहकर मूलविासियों के राजनैतिक आकांक्षाओं का दमन करता रहेगा । 2018 का चुनाव मप्र में तीसरी ताकत को स्थापित कर सकता है । वशर्ते स्थानीय दल आपस में सामंजस्य बनाकर कांग्रेस भाजपा मुक्त मप्र बनाने की ठान लें । गोंगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम जी ने इस संबंध में खुला ऐलान कर दिया है कि मप्र में भाजपा कांग्रेस मुक्त तीसरे विकल्प बनाने के लिये गोंगपा सहित प्रदेश के सभी दल एकजुट हों । गोंडवाना के दरवाजे इसके लिये सदैव खुले हैं । गोंडवाना आंदोलन से ज

"राजनीति में गुलामों की नई पौध की पहचान जरूरी है ।"

"राजनीति में गुलामों की नई पौध की पहचान जरूरी है ।" कुछ आदिवासी युवा चेहरे गुलामों की गुलामी में दिखाई देते हैं । गुलामी में जी रहे बूढे अपनी ही टिकिट की जुगाड में दिखाई देते हैं । सुनो गोंडवाना के आदिवासी युवा । जिसने अपनी उम्र गुजार दी मनुवादियों के तलुवे चांटते । उनसे उम्मीद कर रहे हो अपने भले की । हां ये हो सकता है कि तुम भी गुलाम हो जाओ अपने समाज का हित छोड खुद के भले का हो जाओ । कभी ना कभी नजरे इनायत मालिको की हो जाये । जिसके पीछे खडे हो उसका काम हो जाये । तब तुम्हारे भाग्य का छींका कहीं से टूटेगा । मालिक को गुलामों का बना गुलाम दीखेगा । गुलामी की तपस्या का परिणाम मिल जाये । कहीं विधायकी का टिकिट तुम्हें मिल जाये । फिर भी सम्मान के भूखे बने रहोगे तुम । समाज का सम्मान पा सकोगे ना तुम । जैसे गुलामों नेताओं की आज जितनी कीमत है । उसी क्रमांक में ही जोड दिये जाओगे तुम ।

"संस्कार"

"संस्कार" गोंडवाना भूमि का आदिवासी, गोंडियन संस्कृति के संस्कारों से पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति , समाज सेवक या जनप्रतिनिधि किसी भी परिस्थिति में अपने मूल संस्कारों से हटकर क्रियाकलाप नहीं कर सकता । यदि कुछ पद या ओहदा पाकर मूल संस्कार को किनारे कर अलग से क्रियाकलाप करता है ,तो समझ लें उसके संस्कारों को गृहण कराने में उसके मार्गदर्शक की कहीं भूल रही होगी । या एैसा व्यक्ति लोभ लालच या विषम परिथितियों का शिकार होकर परिथितियों से समझौता कर लिया होता है ।-gsmarkam

२४ जून २०१८ को पता चलेगा कि आदिवासी गोंगपा के साथ हैं या भाजपा ,कॉग्रेस के साथ ।

part-1 "सांस्कृतिक युद्ध का शंखनाद हो चुका है"  आरएसएस के सांस्कृतिक विजय अभियान को केवल आदिवासी संस्कृति रोक सकती है । भाषा का मानकीकरण, धर्म कोड आंदोलन, आदिवासी संस्कृति का प्रतीक पत्थलगढी आंदोलन, लगातार जारी रहे ।-gsmarkam part-2 २४ जून २०१८ को पता चलेगा कि आदिवासी गोंगपा के साथ हैं या भाजपा ,कॉग्रेस के साथ । वैसे तो महारानी दुर्गावति का बलिदान दिवस देश व प्रदेश के हर हिस्से में सामाजिक राजनीतक संगठनों के माध्यम से मनाया जाता है । विभिन्न विचारधारा वाले सामाजिक राजनीतक संगठन भी आयोजन करते हैं ।किन्तु अब यहॉ उन संगठनों के लिये परीक्छा की घडी है जो कि बात गोंडवाना के आदिवासी विचारधारा की करते हैं पर आदिवासी विरोधी विचारधारा के राजनीतिक दल या उनके संगठनों को प्रत्यक्छ या परोक्छ रूप से सहयोग करते है ं । अर्थात समाज की ताकत को विभाजित करने का प्रयास करते हैं । गोडवाना का राजनीतिक दल गोंडवाना की विचारधारा का सीधा सीधा वाहक है । जो कि सत्ता में भागीदार बनकर या संसद, विधान सभा में पहुंच कर गोंडवाना की विचारधारा के मूल तत्व भाषा,धर्म , संस्कृति की पैरवी के

"पत्थल गढी देश के प्रत्येक गांव की अपनी सीमा का प्रतीक है । ग्राम सरकार की सरहद है ।"

"पत्थल गढी देश के प्रत्येक गांव की अपनी सीमा का प्रतीक है । ग्राम सरकार की सरहद है ।"  पांचवीं छठीं अनुसूचि के आंदोलन ने आदिवासियों में संवैधानिक चेतना पैदा की इस चेतना का व्यवहारिक रूप पत्थलगढी के रूप में दिखाई देता है । पत्थल गढी केवल आदिवासी क्षेत्रों में नहीं वरन प्रत्येक ग्राम में होना चाहिये । क्या ग्राम अपनी मिल्कियत की सुरक्षा के लिये स्थानीय नियम नहीं बना सकता । जरूर बना सकता है । उसे अपनी सीमा में होने वाले प्रत्येक हलचल की जानकारी होना चाहिये ताकि वह उसका प्रबंधन  कर सके । ग्राम की सुख शांति सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी ग्राम के मुखिया और उसके सहयोगियो की है । तब वह किसी बाहरी प्रवेश को नियंत्रित क्यों नहीं करेगा आखिर वह ग्राम की सरकार है । प्रदेश की सरकार की बिना अनुमति के प्रधानमंत्री का राज्य में प्रवेश करना वर्जित होता (केंद्र शासित प्रदेशों को छोडकर है।) तब किसी भी ग्राम सरकार की अनुमति के बिना ग्राम की सीमा में प्रवेश अवैधानिक है । फिर तो ये अधिसूचित क्षेत्र जहां संविधान ने आदिवासियों को पूर्ण स्वायत्ता का विशेष अधिकार दिया हुआ है । इसका उल्लंघन भारतीय संविधान

" गोंडवाना के आदिवासी को एकपच्छीय सोच विकसित करने की आवश्यकता है ।"

" गोंडवाना के आदिवासी को एकपच्छीय सोच विकसित करने की आवश्यकता है ।" मुस्लिम,इसाई सिख समुदाय काफी हद तक समुदाय हित में एक पक्छ में खडा दिख जाता है , वहीं हिन्दूओं का अगुवा बामन भी कथित हिन्दुओं की अपेक्छा सेट माईन्ड है । जिसके कारण अपने समुदाय के सार्वजनिक हितों की रक्छा करने सफल रहता है । परन्तु आदिवासी समुदाय अभी तक अपने किसी सार्वजनिक हित के लिये एक साथ खडा नजर नहीं आता । यही कारण है कि इसके महत्वपूर्ण अधिकार भी उसकी ऑखों के सामने से छीन लिये जाते हैं ,पर समुदाय की ओर से क भी सामूहिक प्रतिक्रिया नहीं होती । कहीं कहीं छुट पुट प्रतिक्रिया हो भी जाती है , पर वह व्यापक नहीं बन पाती । इसका प्रमुख कारण यह समझ में आता है कि समुदाय को कम से कम , मूल धार्मिक बिन्दु पर एकपक्छीय सोच विकसित कर लेना चाहिये भले ही समुदाय कितनी ही जाति ,उपजाति और समूहों में बंटा हो । जैसे देश में अन्य धार्मिक समूहों ने विकसित कर लिया है । आदिवासी समुदाय को एकपक्छीय सोच विकसित करने के लिये धर्म को आधार बनाना होगा । इस दिशा में किया गया सरना और कोयापुनेम समूह का छेत्रीय प्रयास परिणाम मूलक दिखाई देता है । प

"सॉझा चूल्हा"

part-1 "सॉझा चूल्हा" दर्द गर एक है तो दर्द को साझा कर लें । साथ परेशानियों से लडने का वादा कर लें ।। मैं भी संविधान के हर शब्द का दीवाना हूं । आओ मिलकर इसे बचाने का संकल्प कर लें । अपनी भाषा का धर्म संस्कृति का हिमायती हूं । आओ मिलकर इसे बचाने की हिमायत कर लें ।। हमारी हिस्सेदारी को ये भीख कहते हैं । साथ मिलकर इसे बचाने की तैयारी कर लें ।। अमन और चैन भी उडता नजर आता है हमें । आओ इस चमन की मिलकर रखवाली कर लें ।। दर्द हमको दिया जिसने उसी से तकलीफ है तुमको । वक्त अच्छा है मौका भी है चलो इंतकाम ले लें । वो तो कहता है, मिटा दूंगा एसटी/एससी की हस्ती । जरा इक बार हम आपस में गलबहियां तो ले लें ।- दर्द गर एक है तो दर्द को साझा कर लें । साथ परेशानियों से लडने का वादा कर लें ।।-gsmarkam part-2 "तानाशाही राज " बढे हैं हौसले दुश्मन के हमने ही बढाया है । उन्हीं को ताज देकर अपने ही सिर पर बिठाया है । जर जोरू जमीन की दुश्मनी तो पुरानी है दोस्तों । पर इंसान को इस तरहा किसी ने नहीं जलाया है ।  ये तो दहसत फैलाकर राज करने का संघी एजेंडा है । बना हथियार अपनों

"अबकी बार गोंडवाना सरकार"

"अबकी बार गोंडवाना सरकार"  गोंडवाना भूमि के समस्त आदिवासी,अनु जाति , अन्य पिछडी जाति तथा अल्प संख्यक सहित मानवताचवादी विचारों के प्रबुद्ध वर्ग से अपील है कि २४ जून २०१८ गोंडवाना की महारानी एवं नारी अस्मिता की प्रतीक तथा गोंडवाना के स्वर्णिम युग की शासक रानी दुर्गावती के शहादत दिवस के अवसर पर गोंडवाना के कुशल राजनीतिक दर्शन को पुन: धरातल में उतारने के लिये कटिबद्ध "गोंडवाना गणतंत्र पार्टी" के द्वारा विशाल "शक्ति संगम" का आयोजन किया गया है । गोंगपा मप्र में स्वत: तीसरी बडी राजन ैतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो चुकी है । यही कारण है कि राष्ट्रीय राजनीति करने वाले दल गोगपा के साथ अपना नाम जोडने के लिये लालायित हैं । परन्तु गोगपा का जनाधार आपके सहयोग से लगातार बढ रहा है ऐसी स्थिति में गोगपा अपने दम पर कर्नाटक चुनाव जैसे हालात पैदा कर सकती है । प्रदेश का अनुसूचित जाति समुदाय भी वर्तमान में संविधान और आरच्छण के अस्तित्व बचाने के संकट को देखते हुए तीसरी शक्ति बनने में सहयोग करने का मन बना चुकी है । गोंडवाना के समस्त आदिवासी समुदाय की जिम्मेदारी है की २४ जून के इस

"आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में टिकिट वितरण समारोह"

"आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में टिकिट वितरण समारोह" (पुनः प्रस्तुति) “बहुत विचार कर रहा था कि एक छोटा सा प्रहसन या नाटक लिख दूं पर किन्हीं कारणों से या समयाभाव के कारण ही सही पर लिख नहीं पाया अब उस तरह की चेतना का एहसास सामाजिक पर्यावरण में देखने को मिलने लगा है, तब यह छोटा सा प्रहसन शायद इस बात को हवा देने में अपनी भूमिका अदा कर सकता है ।“ प्रस्तुत है (गुलजार सिंह मरकाम) “टिकिट वितरण समारोह” प्रदेश में आम चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही राजनीतिक दलों में अफरा तफरी मची हुई है । टिकिट की जुगाड में लोग नेताओं से मिल रहे हैं कई छोटे बडे नेताओं की इस समय चटक गई है । जत्था का जत्था किसी ना किसी नेता के इर्द गिर्द मडराता नजर आ रहा है ना जाने भैया किसके डपर हाथ रख दें । अनेक सिफाारिशें हो रहीं हैं पेनल बन रहे हैं ना जाने क्या क्या हो रहा है अवर्णनीय है । (टिकिट वितरण समारोह के एक पार्ट आरक्षित वर्ग की सीटो पर प्रहसन का दृष्य) विकासखण्ड का एक प्रतिष्ठित व्यापारी अपने नौकर से- क्यों रे बुद्धसिंह चुनाव लडेगा । बुद्धसिंह- क्या मालिक मालिक- अरे मैं कहता हूं विधान सभा का चुनाव

गोंडवाना की महारानी दुर्गावति मरावी के शहादत दिवस

24 जून 2018 को "जबलपुर चलो" "जबलपुर चलो।" (24 जून गोंगपा द्वारा आयोजित गोंडवाना की महारानी दुर्गावति मरावी के शहादत दिवस को गोंडवाना महाशक्ति संगम के रूप में विख्यात करें।) गोंडवाना की सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक राजनैतिक धार्मिक व्यवस्था सदैव मानवहितैषी रही है । प्रकृति के नियमों के सापेक्ष में अपने क्रियाकलापों के चलते गोंडियन दर्शन संपूर्ण जीव जगत स्थावर जंगम के साथ मित्रवत व्यवहार करता आया है । यही कारण था कि गोंडवाना की राज व्यवस्था को हर जाति वर्ग और संप्रदाय ने सहर्ष स् वीकार करते हुए बावन गढ संतावन परगनों को अक्षुण और अजेय बनाये रखा । आज भी गोंडवाना की व्यवस्था मानव हितैषी बनी हुई है । परन्तु प्रजातंत्र में जनता का संवैधानिक नेतृत्व यानि कथित जनसेवक सुविधाओं और विलासिता पर केंद्रित होकर सेवा भाव से दूर हो चुके हैं । सुविधा और विलासिता को पाने के लिये किसी भी हद तक गिरा जा सकता है एैसी मानसिकता ने जन सेवा समाज सेवा का मायना ही बदल दिया है । जिसे ठीक किये बिना सुन्दर स्वस्थ समृद्व समाज एवं राज्य या राष्ट्र की कल्पना को साकार नहीं किया जा सकता । 24 जून महार

"गोंडी भाषा के मूल शब्दों से छेडछाड ना हो ।"

"गोंडी भाषा के मूल शब्दों से छेडछाड ना हो ।"  गोंडी भाषा मानकीकरण समूह लगातार गोंडी भाषा के मूल शब्दों के संग्रहण में लगी है । फिलहाल कुछ संग्रहण के पश्चात मानक शब्दों का गोंडवाना गोंडी शब्दकोष बनाया गया है । इस शब्दकोष में अभी सैकडों हजारों शब्दों को मानक रूप में समाहित किया जाना है । गोंडी भाषा के महत्व को समझकर भाषा के प्रति लगातार आकर्षण बढ रहा है । सीखने या गोंडी भाषा के शब्दों का उपयोग करने की होड सी बनती दिखाई दे रही है । यह गोंडी भाषा के उत्थान के लिये शुभ संकेत है पर न्तु हमें इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि सीखने उपयोग करने में हमें मूल शब्दों के अस्तित्व का भी ख्याल रखना होगा अन्यथा अन्य भाषा के प्रभाव और उसका अनुशरण करते हुए हम उसके अनुवाद रूप को ही असली गोंडी ना समझ लें । यथा गोंडी का असली रूप टुंडा (जन्म) मंढा (विवाह) कुंडा (मृन्यु) शब्दावली मूल रूप में विद्वमान है तब उसे अनुवाद रूप पुटसी वायना (जन्म) मडमिग (विवाह) सायना (मृत्यु) आदि शब्दों का उपयोग मूल गोंडी भाषा के शब्दों को कही ना कहीं कमजोर करता है । इसलिये समझाने की दृष्टि से इसका उपयोग हो लेकिन इसके मूल र

"एक तीर एक कमान आदिवासी एक समान । अहिन्दू है जिसकी पहचान ।।"

part-1  "एक तीर एक कमान आदिवासी एक समान । अहिन्दू है जिसकी पहचान ।।" आदिवासियों में जयस नाम से आपसी तनाव दिखाई देता है। असली नकली आदिवासी का फर्क समझने के लिये केवल एक ही मापदंड है कि वह हिन्दू है या अहिन्दू । यदि हिन्दू धर्म का चोला ओढकर आदिवासी हित की बात करता है ,वह असली आदिवासियत से दूर है वह असली आदिवासी का हितैशी कभी नहीं हो सकता। कारण कि जब तक हिन्दू नाम की बीमारी से गृसित रहेगा तब तक वह अवसरवादी ही बना रहेगा । असली होने के लिये असली चेहरा चाहिये । अहिन्दू का चेहरा ।-gsmarkam "मप्र में यदि 2018 में भाजपा की सरकार बनी तो इसका सबसे बडा कारण कांग्रेस होगी ।"  गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सहित प्रदेश में अनुसूचित जातियों पिछडे वर्गों का नेतृत्व करने वाली पार्टियां अपने प्रमुख मुददे प्रमोशन में आरक्षण एट्रोसिटी एक्ट ईवीएम मशीन सहित एस टी एस सी के मुख्य मुददों पर लगातार एकजुट हो रही हैं । वहीं कांग्रेस पार्टी इन मुददों को लेकर कोई बयान नहीं दे रही है । ना ही इन दलों के साथ गठबंधन पर कोई विशेष पहल करती नजर नहीं आ रही है । इसका मतलब है एस टी एस सी के संगठनो च ाहे

"हमारी दुश्मनी करा दी ,हमारे ही कुनबे से"

part-1 "हमारी दुश्मनी करा दी ,हमारे ही कुनबे से" विकास के नाम पर, बॉध हमारे दुश्मन हो गये ।  बाघ हिरन भी शत्रु हो गये ।  पेड पौधों जो हमारे देवता हैं । जीविका के लिये उपयोग किया । तो वन विभाग के अपराधी हो गये । अब तो बच्चों के खेलने की तितलियॉ भी डंक मारेंगी । उनसे भी सियासत दुश्मनी करायेगी । कभी ऐसा ना हो सब्र टूट जाये मेरा । मॉ से बेटे को दूर करने का शडयंत्र तेरा । मेरे बदले की आग बन करके । एके ४७ से सीना छलनी ना कर जाये तेरा । तब कह देना नक्सलवादी है , तब भी बता देना अलगाव वादी है । देश की जनता की ऑखों में धूल झोंक सकते हो । दोस्त को दुश्मन बता सकते हो । मुझे यकीन है मेरी प्रकृति परमेश्वर से । उसकी निगाहों से बचके तुम भी नहीं जा सकते हो ।।-gsmarkam part-2 देश है आज खतरे में । आरक्षित समुदाय की रोटी भी है आज खतरे में । काठ पर लग चुकी दीमक इससे है देश खतरे में । चूसकर वे चले जायेगे अपने आर्ये वतन को । लूटकर ले ही जा रहे वो भारत के चमन को । तुम कहां जाओगे एै दोस्त छिपे हो हर एक कतरे में । काठ पर लग चुकी दीमक इससे है देश खतरे में । कोशिषें लाख तुम कर लो सुधरना है नहीं उनको

"मप्र में आदिवासी समुदाय चुनाव 2018 में अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराये ।"

"मप्र में आदिवासी समुदाय चुनाव 2018 में अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराये ।"  मप्र में 21 प्रतिशत एकमुस्त जनसंख्या वाला समुदाय यदि मनुवाद की पोषक कांग्रेस भाजपा से टिकिट की भीख मांगे तो तो इससे बडी विडम्बना की बात कुछ नहीं हो सकती । जबकि प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व वाला महत्वपूर्ण दल गोंगपा है । क्या आदिवासी इसकी टिकिट से अपनी ताकत को लोहा नहीं मनवा सकता ।  पहले बहाने बाजी होती थी कि गोंगपा विभाजित है । अब तो एक है फिर आदिवासी इधर उधर तांक झांक क्यों करे । 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति को एकत्र कर मायावति उत्तर प्रदेश में बार बार सरकार बना सकती है अन्यों को भी अपनी टिकिट पर समुदाय की एकजुटता से जिता सकता है तब मप्र में यह काम आदिवासी समुदाय क्यों नहीं कर सकता । आदिवासी समुदाय विचार करे अवसर सुनहरा है । "दूसरे की गोदी दूसरे का दूध बडा मंहगा सौदा है" -gsmarkam

व्यवस्थित अनुशासित समाज और संगठन हर लक्ष्य को हासिल कर सकता है ।

व्यवस्थित अनुशासित समाज और संगठन हर लक्ष्य को हासिल कर सकता है । (गोंगपा से संबंधित सभी शाखाओं के प्रमुखो को संगठन ढांचा को मजबूत करने और प्रत्येक कार्यकर्ता पदाधिकारी का एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी रहने के लिये पदों पर नियुक्तयां देने में निम्न पार्टी गाईडलाईन का ध्यान रखें । ) मुख्य कार्यकारिणी  1. राष्ट्रीय अध्यक्ष केंद्रीय कार्यकारिणी की अनुशंसा पर प्रदेश अध्यक्षों तथा सभी शाखाओं के राष्ट्रीय अध्यक्षों की नियुक्ति । 2. प्रदेश अध्यक्ष प्रदेश प्रभारी की अनुशंसा से राज्य कार्यकारिणी एवं जिलाध्यक्षों की नियुक्ति । 3. जिलाध्यक्ष जिला प्रभारी की अनुशंसा से जिला कमेटी विधान सभा प्रभारी एवं ब्लाक अध्यक्षों की नियुक्ति । 4. ब्लाक अध्यक्ष ब्लाक प्रभारी की अनुशंसा पर ब्लाक कार्यकारिणी एवं क्षेत्रीय समिति के अध्यक्षों की नियुक्ति । शाखा कार्यकारिणी: पार्टी की शाखाओं के प्रमुख यथा महिला मोर्चा , युवा मोर्चा , छात्र मोर्चा, किसान मोर्चा , अनुसूचित जाति मोर्चा , पिछडा वर्ग मोर्चा, सवर्ण मोर्चा,अल्पसंख्यक मोर्चा आदि भी अपनी अपनी शाखाओं में उपरोक्त नियमानुशार क्रमशः नियुक्तियां प्रदान कर अ

गोंडवाना का आदिवासी एकजुट रहे आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का अवसर आपके हाथ में है ।

गोंडवाना का आदिवासी एकजुट रहे आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का अवसर आपके हाथ में है । गोंडवाना भूमि का आदिवासी समुदाय और बहुत से संगठन के लोग 2003 के बाद गोंडवाना के विघटन के बाद बार बार यही कहते रहे हैं और तो और कांग्रेस भाजपा में काम करने वाले आदिवासी भी सलाह देने से नहीं चूकते थे कि गोंडवाना के राजनीतिक दलों को एकजुट हो जाना चाहिये । हम सब तन मन धन और पूरी मेहनत से गोंडवाना का साथ देंगे । गोंडवाना के राजनीतिकों ने समुदाय की बात मानते हुए एकजुटता का परिचय दे दिया है अब गोंडवाना का आदिवासी समुदाय और संगठन अपनी जिम्मेदारी उठाने के लिये तैयार रहें मप्र में गोंडवाना को राजनीतिक सफलता अवश्य मिलेगी आदिवासी मुख्यमंत्री का सपना जरूर पूरा होगा । 2018 का चुनाव प्रदेश का भविष्य बदल सकता है । गोंडवाना की राजनीतिक एकता के चलते प्रदेश के अनुसूचित वर्ग अल्पसंख्यक वर्ग पिछडा वर्ग के फुले अंबेडकरी सोच वाले राजनैतिक संगठन पूरी तरह से सहयोग के लिये तैयार हैं । मप्र में तीसरी बडी ताकत बनाने को तैयार हैं । एैसे में प्रदेश में सबसे बडी जनसंख्या आदिवासी को मुखियगिरी के लिये तैयार हो जाना चाहिये । विभिन्न दलों

"मीडिया के गोलमोल संदेश और तोडमोड कर छपी खबरों से परहेज करें"

"मीडिया के गोलमोल संदेश और तोडमोड कर छपी खबरों से परहेज करें" आप सभी जानते हैं कि पार्टियों की तरह मीडिया भी किसी दल के प्रति आस्था रखता है । किसी कमजोर या कच्चे नेता को घेरकर उससे कुछ भी उगलवाकर, अपना लच्छ्य साध लेता है । इसलिये गोंगपा के हर पदाधिकारी को चाहिये कि वह केवल पार्टी गाईड लाईन पर ही कोई इन्टरव्यू या प्रेस विग्यप्ति जारी करें । अन्यथा आपके वक्तव्यों को तोडमरोड कर छपी प्रेस समाचार का खंडन वह पेपर नहीं करेगा तब तक बात बिगड चुकी होती है । इसलिये सभी कार्यकर्ता पदाधिक ारियो से अनुरोध है कि मप्र गोगपा के संबंध में समाचार पत्रों में छपने वाले हर समाचार की वैधता के संबंध में गोंगपा के रा०का०अध्यच्छ एवं प्रभारी मप्र तिरूमाल मनमोहन शाह वट्टी जी से जानकारी ले लें । कुछ दिन बाद पार्टी पालिसी के आधिकारिक बयान के लिय अच्छा प्रवक्ता बना दिया जायेगा ,वही समाचार पार्टी का आधिकारिक समाचार होगा । इसलिये अभी किसी अच्छे बुरे समाचार से विचलित होने की आवश्यकता नहीं, ना ही अनर्गल बयानबाजी पर ध्यान दिया जाय । गोंडवाना की सरकार बनाने की बात करने के साथ साथ उतना मानसिक रूप से परिपक्व भी ह

"मप्र में सत्ता परिवर्तन के लिये आदिवासी की मूमिका महत्वपूर्ण को सकती है ।"

"मप्र में सत्ता परिवर्तन के लिये आदिवासी की मूमिका महत्वपूर्ण को सकती है ।" मप्र में आदिवासी मुख्यमंत्री की कल्पना को साकार करना है तो आदिवासियों से संबंधित सभी सामाजिक राजनीतिक शैक्षिक आदि विषयों पर काम करने वाले संगठन एक धारा में बहें । तीसरी ताकत अपने आप बन जाने वाली है । जिसमें गोंडवाना और जयस संगठन अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं । प्रदेश के अन्य समाजवादी अम्बेडकरवादी मानववादी संगठन आपके सहयोग के लिये तैयार हैं । गोंडवाना के द्धारा प्रस्तावित आदिवासी मुख्यमंत्री की घोषणा के पक्षधर हैं । सभी की निगाहें आदिवासी एकता पर टिकी हैं । आदिवासी संगठन इस मुहिम में अग्रणी भूमिका निभायें । पहला अवसर है जब कांग्रेस भाजपा को छोडकर मप्र में तीसरी राजनीतिक ताकत बनाने के लिये प्रदेश की जनता और संगठन तैयार हो रहे हैं । आगाज अच्छा है बस अमल की जरूरत है ।-gsmarkam