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Showing posts from July, 2018

"आदिवासियों के पास पांचवी अनुसूची के अधिकार है,पर शक्ति राजपाल के पास गिरवी है"

"आदिवासियों के पास पांचवी अनुसूची के अधिकार है,पर शक्ति राजपाल के पास गिरवी है" पांचवी अनुसूची में आदिवासियों के अधिकार सुरक्षित हैं , पर आदिवासियों को अधिकार प्राप्त करने की शक्ति से वंचित किया गया है । यही कारण है कि बिना शक्ति के आदिवासी पांचवी अनुसूची के प्रावधानों के होते हुए भी अपने अधिकार प्राप्त नहीं कर पा रहा है उसे पैसा नाम का झुनझुना पकड़ा कर पांचवी अनुसूची के संशोधन पेसा कानून में पंचायती राज व्यवस्था लागू करके रूढी पंचायत की जगह ग्राम सभा को अधिकार संपन्न बनाया ग या है । पांचवी अनुसूची की सारी शक्तियां राज्यपाल पर केंद्रीय कर दी गई हैं उसके बिना पांचवी अनुसूची के लागू होते हुए भी आदिवासी अधिकार संपन्न तो है लेकिन शक्तियों की कमी के कारण अपने अधिकार हासिल करने में अक्षम है। राज्य की TAC भी राज्यपाल के आदिवासियों के हित में लिए जाने वाले निर्णय और विषय का इंतजार करती है, यहां पर टीएसी भी राज्यपाल के विवेक के अधीन है। अर्थात आदिवासी के पास अधिकार तो है,पर उस अधिकार को हासिल करने की शक्ति राज्यपाल के विवेक के अधीन गिरवी है है । हमारा दबाव राज्यपाल पर हो । हमारी क

लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।"

"लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।" में भारत देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से देश का संचालन होता है । इस व्यवस्था में सबसे बडी भूमिका चैाथे स्तंभ मीडिया की होती है । यही कारण है कि इस लोकतंत्र में जनता और सत्ताधारी पार्टी के बीच माध्यम का काम मीडिया का होता है । जिसके लिये बकायदा केंद्र में सूचना प्रसारण तथा राज्यों में जनसंपर्क विभाग की स्थापना है । इनका दायित्व सरकार की योजनाओं को जनता तक जानकारी के रूप में पहुंचाना तथा जनता के दुख तकलीफ को शासन तक हूबहू अर्थात वास्तविक बात को सत्ताधारी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है । इसके बावजूद सरकारी तंत्र ने मीडिया के प्रायवेट एजेंसी के लिये भी निश्चित बजट बनाती है । उसके लिये सरकारी खजाने से आम जनता का धन खर्च करने की व्यवस्था बनाई गई है ताकि सरकारी तंत्र से पूरी जानकारी ना मिले तो । विज्ञापन दृष्य और श्रव्य के माध्यम से जनता तक पहुचाई जा सके । परन्तु वर्तमान समय में शासकीय मीडिया के साथ साथ प्रायवेट मीडिया भी आम जनता की आवाज बनने की बजाय सत्ताधारी पार्टी के विचारधारा का अगुवा बनकर काम कर रहा है । भले ही आम जनता को क

गोंडवाना के लिये गोंड परधान की जिम्मेदारी ।" मैं तो गोंडवाना के स्वर्णिम अवसर लाने के लिये

"गोंडवाना के लिये गोंड परधान की जिम्मेदारी ।" मैं तो गोंडवाना के स्वर्णिम अवसर लाने के लिये गोंडवाना का एक सेवक हूं । चाहे कुर्बानी दौलत की या जान की हो इसके लिये सदैव तत्पर हूं । भले ही जाति गोंड में ही सही पर उपजाति परधान का हूं जाया । मैं ही इस गोंड का साया हूं । भले ना मुझको कभी नहीं भाया । पर मुझे इतना ज्ञान है लोंगों । मेरे बिन तुम नहीं हो कुछ गोंडो । मेरे बिन मिल नहीं सकते तुम अपने पुरखों से मेरे बाना के आगे तुम नहीं हो कुछ गोंडो । मेरा सम्मान मत करो भी सही । बडादेव से क्या कह सको गोंडो । मेरे बाना औ कींकरी की कसम । चल सको तो चल कर दिखाओ एक कदम । बडादेव भी तुमको नकार देवेगा पिछले पुरखों का हिसाब मागेंगा । उसको दिये हिस्से का हिसाब मांगेगा हिसाब तो रखा है हर साल भाई का गोंडो। कितना दिया है भाई तो बंटवारा मांगेगा । नहीं दिया तो तुम कर्जदार हो छोटे भाई के । हिसाब देने के लिये बने हो छोटे भाई के । वह तो हर बार तुमसे कहता है हंसिया कुल्हाडी और थाली का हिस्सा मांगेगा । नहीं दिया तो देना होगा तुमको बडे भाई का फर्ज निभाना है तुमको । तुम अपने फर्ज को निभ

जुग जुग जियो, पूतों फलो, टुकना में ढांकत तक जियो।"

"जुग जुग जियो, पूतों फलो, टुकना में ढांकत तक जियो।" मुझे लगता है कि इसकी व्याख्या गलत हो रही है गोंडी भाषा में जुग जुग का मतलब प्रकाशमान होना है । पूतों को गोंडी भाषा के मूल शब्द पूयता यानि फूल के पुष्पित होने का संकेत है । फूल से फल होकर इतना जियो कि तुम्हें टोकनी से भी ढंका जा सके इतना जियो । उपरोक्त लोकोक्ति की आज परिभाषा ही बदल दी गई है। जुग जुग को युग युग पुष्पित होने को पूत या पुत्र टुकना ढंकत तक यानि पूर्ण स्वस्थ होकर अपनी पूर्ण आयु तक जीने  का संदेश है । मुझे लगता है कि उपरोक्त लोकोक्ति को पुनर्परिभाषित करना चाहिये । कारण कि गोंडियन दर्शन में चार युगों की कल्पना नहीं है ।-gsmarkam

गोन्वाना की राजनीतिक सन्गठन गोगपा को विरोधी हमले से सुरक्षित किया जा सकता है"

"गोन्वाना की राजनीतिक सन्गठन गोगपा को विरोधी हमले से सुरक्षित किया जा सकता है" गोन्डवाना आंदोलन से जुड़े समर्थक समर्पित एवं आम कार्यकर्ताओं, इस चुनाव वर्ष में गोंडवाना की राजनीति को कमजोर करने के लिए विरोधी शक्तियां लगातार प्रभावशील हैं उनसे बचने के लिए गोन्वाना आंदोलन के सभी संवेदनशील जनता बिना कोई आधिकारिक पत्र ,जो कि पार्टी के लेटर हेड पर हो उसमें उस पदाधिकारी के हस्ताक्षर हो ऐसी कोई अधिकृत सूचना प्रसारित होती है वही सत्य है ,मौखिक बयानों से सूचनाओं से हकीकत का कोई दूर-दूर से रिश्ता नहीं होता ऐसी कार्यवाहियां केवल गोन्वाना की राजनीति को डिस्टर्ब करने के लिए प्रसारित किए जाते हैं,इसलिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के ग्राम इकाई से लेकर राष्ट्रीय इकाई तक कोई भी पदाधिकारी यदि मौखिक बयान देता है तो वह पार्टी  विरोधी गतिविधियों में शामिल माना जाएगा या उसे पार्टी को तोड़ने वाले के रूप में रेखांकित किया जाएगा जिसकी जिम्मेदारी उसकी स्वयं की होगी।-राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना गणतंत्र पार्टी

आदिवासी नेतृत्व और भटकता युवा"

"आदिवासी नेतृत्व और भटकता युवा" नेशनल जयस के कुछ मित्रों का कहना है कि देश प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व नहीं है। गैर कांग्रेस और गैर भाजपा वाले आदिवासी नेतृत्व के दल देश में मौजूद हैं, आदिवासी नेतृत्व अभी देश में मौजूद हैं। देश में छोटू भाई वसावा ,हीरा सिंह मरकाम ,शिबू सोरेन जैसे आदिवासी नेतृत्व के रहते आपको और कैसे नेतृत्व की आवश्यकता है आज आदिवासी कम से कम पार्टी बनाकर आगे चल रहे हैं तो सभी युवाओं को उन दलो का उस राज्य में साथ देना चाहिए। यह कहना गलत कि आदिवासी नेता नहीं है । इन्हीं पार्टियों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर युवा आगे आ सकते हैं। यह अच्छी बात है कि किसी दल का किसी राज्य में एक दूसरे से हस्तक्षेप नहीं है। कांग्रेस भाजपा मैं तो अनेक गुलाम नेता हैं। क्या इनकी टिकिट लेकर इनकी गोदी में,शरण में जाकर आदिवासी नेतृत्व उभर जायेगा।-Gsmarkam

गोंडवाना की प्रकृतिवादी विचारधारा आज भारत के प्रत्येक राज्य में समुदाय के बीच अपनी कुछ ना कुछ जगह बनाने में सफल हुआ है

"गोंडवाना आंदोलन के चिंतक विचारक और संगठकों को समाज में राजनीतिक समझ विकसित करना होगा ।" गोंडवाना की प्रकृतिवादी विचारधारा आज भारत के प्रत्येक राज्य में समुदाय के बीच अपनी कुछ ना कुछ जगह बनाने में सफल हुआ है । जिसमें गोंडवाना आंदोलन से जुडे चिंतक विचारक और संगठको का बहुमूल्य योगदान है । बुद्धिजीवि लगातार गोंडवाना की विचारधारा को बढाने में संलग्न हैं । विचारधारा को बढाने के लिये गोंड गोंडी गोंडवाना के साथ साथ गोंडवाना के आदिवासियों को लेकर अनेक आदिवासी सामाजिक धार्मिक संगठन शैक्षिक संगठनों का निर्माण हुआ है जो अपने अपने स्तर पर गोंडवाना के समस्त आदिवासियों के समग्र उत्थान के लिये कार्यरत हैं । देश के विभिन्न हिस्सों में समुदाय के नाम पर जनचेतना का काम तो जारी है । परन्तु गोंडवाना भूभाग का आदिवासी इस समुदाय में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक समझ विकसित करने में अभी सफल नहीं हो पाया है । कुछ राज्यों में जैसे झारखंड राज्य के इन सामाजिक घार्मिक संगठनों ने झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के माध्यम से समाज में राजनीतिक समझ विकसित करने का प्रयास किया जिसके परिणामस्वरूप आंशिक सफलता प्राप्त करने म

पप्पू ने गप्पू से कान में क्या कहा

पप्पू ने गप्पू से कान में क्या कहा.....  उस दिन मैंने आपको गले लगाया था , दिल से लगाया था। क्योंकि मेरे पापा ने evm का राज मुझे बताया था ।। कहा था उन से बैर मत रखना, आंख मार कर जनता को बहला कर रखना। Evm का राज औरों से तुम ना कहना, बारी बारी से मजा लेते हुए तुम रहना।। जब तलक हर राज्य में उसका पताका ना फहरे। हर चुनाव में उसे बाकोबर देते रहना।। भारत के संविधान से मैं भी उकता गया था बेटे, तब कोई इन सा सिकंदर था न उस जमाने में, वरना उस वक्त मैं भी ये काम कर गया होता। तुम्हें किसी दलित और आदिवासी का नाम नहीं लेना पड़ता। पिछड़े वर्गो पर भी आश्रित नहीं होना पड़ता । तब तलक हम देश में ताना शाही राज कायम नहीं कर देते । लोकतंत्र की जब तक धज्जियां बिखेर कर रख देते । तब तक इसी तरह खुद को पप्पू बनाते रखो शुक्र है,उनसे गले लगा करके ,जरा सी आंख को दबा करके ,एक तीर से दो शिकार तुम करके । अपने नाना के अरमानों,को पूरा करते नजर आते हो तुम। ईवीएम का विरोध नहीं करके भी, पप्पू राष्ट्रीय नेता कहलाते हो तुम ।-Gsmarkam "संसद में अविश्वास प्रस्ताव का नाटक" जब बहुमत नहीं है विश्वास ग

असली और नकली की पहचान हो"is

"असली और नकली की पहचान हो" आदिवासी समाज का एक वह हिस्सा है जो आदिवासी संस्कृति को आत्मसात किए हुए है पर उसे जनजाति सूची में शामिल नहीं किया जा रहा है, दूसरी तरफ आदिवासी समाज का वह हिस्सा जो जनजाति की सूची में है या सूची मैं शामिल होने को लालायित है लेकिन आदिवासी  संस्कृति से कोसों दूर है ,अब आप ही बताएं कि सूची में रहकर पर संस्कृति मैं जीने वाला असली आदिवासी है या सूची से बाहर रहकर भी आदिवासी संस्कृति का पालन कर रहे हैं वह असली आदिवासी है ,विचार करें क्या आप नहीं चाहते कि असली आदिवासी को संवैधानिक अधिकार मिले ।-Gsmarkam

"गोंडवाना के आदिवासी मैं यदि अहिंदू की मानसिकता परिपक्व है तो भाजपा के हिंदुत्व रथ को रोका जा सकता है"

"गोंडवाना के आदिवासी मैं यदि अहिंदू की मानसिकता परिपक्व है तो भाजपा के हिंदुत्व रथ को रोका जा सकता है" गोडवाना का आदिवासी यदि अहिंदू के रूप से एकजुट होता है तो उसका लाभ विधानसभा चुनाव मैं कुछ इस तरह मिलेगा। भाजपा के हिंदुत्व की लहर को अहिंदू आदिवासी ही रोक सकता है। जनजातियों के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों में हिंदू और अहिंदू आदिवासी का जनगणना 2021 के पूर्व सर्वे कर लिया जाए। यह सर्वे विधानसभा चुनाव २०१८ के पूर्व कर लिया जाए तो और भी उत्तम है, कारण की हिंदू आदिवासी खुलकर भाजपा को वोट देगा। अहिंदू आदिवासी ,गोन्डवाना का सहयोगी होगा। आरक्षित सीटों में अपने आप को अहिंदू मानने वाला आदिवासी यदि एकता दिखाता है, तो अंबेडकरवादी अनुसूचित जाति गोन्डवाना को सहयोग करेगा तथा गैर अंबेडकरवादी अनुसूचित जाति ,कांग्रेस या भाजपा को मदद करेगा । इसी तरह महात्मा फुले, साहूजी महाराज, अंबेडकर की विचारधारा को मानने वाला पिछड़ा वर्ग इन क्षेत्रों में गोन्डवाना को वोट करेगा परंतु महात्मा फुले, साहूजी महाराज अंबेडकर की विचारधारा को नहीं समझने वाला पिछड़ा वर्ग भाजपा, कांग्रेस को वोट करेगा। देश का अल्पसंख्

"लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।"

"लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।"  भारत देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से देश का संचालन होता है । इस व्यवस्था में सबसे बडी भूमिका चैाथे स्तंभ मीडिया की होती है । यही कारण है कि इस लोकतंत्र में जनता और सत्ताधारी पार्टी के बीच माध्यम का काम मीडिया का होता है । जिसके लिये बकायदा केंद्र में सूचना प्रसारण तथा राज्यों में जनसंपर्क विभाग की स्थापना है । इनका दायित्व सरकार की योजनाओं को जनता तक जानकारी के रूप में पहुंचाना तथा जनता के दुख तकलीफ को शासन तक हूबहू अर्थ ात वास्तविक बात को सत्ताधारी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है । इसके बावजूद सरकारी तंत्र ने मीडिया के प्रायवेट एजेंसी के लिये भी निश्चित बजट बनाती है । उसके लिये सरकारी खजाने से आम जनता का धन खर्च करने की व्यवस्था बनाई गई है ताकि सरकारी तंत्र से पूरी जानकारी ना मिले तो । विज्ञापन दृष्य और श्रव्य के माध्यम से जनता तक पहुचाई जा सके । परन्तु वर्तमान समय में शासकीय मीडिया के साथ साथ प्रायवेट मीडिया भी आम जनता की आवाज बनने की बजाय सत्ताधारी पार्टी के विचारधारा का अगुवा बनकर काम कर रहा है । भले ही आम जनता को किसी

"सुख दुख के खातिर मिलकर एक आशियां बनालें "

साथ साथ चलने की आदत को हम बना लें । बिखरे हुए मोतीयों की माला तो हम बनालें ।। खुदगर्ज होके तुम भी कितनी देर चल सको ।  सुख दुख के खातिर मिलकर एक आशियां बनालें ।। मूलवासी आदिवासी और भी हैं साथी । जीतलो सबका मन कोई ना रहे बाकी ।। विश्वास से चलता था राज मेरे गोंडवानो का । आओ इस गोंडवाना को आज फिर से हम सजालें ।। देश भी वही है वही लोग हैं अब तक । मिटटी का रंग बदला ना पानी का आज तक ।। तब हमारे सोचने का ढंग क्यों बदला । एक हैं तब एकता की छाप तो दिख्खे । गोंडवाना के मूलनिवासियों की एक आवाज तो निकले ।। फिर से ये सोने की चिडिया बन सके भारत । बस इसके लिये अपना अपना फर्ज निभा लें ।। आओ मिलके चलने की आदत को बना लें । बिखरे हुए मोती की हम माला बना लें ।।-gsmarkam

"अभी तक भारतीय जनमानस का माईंड सेट नहीं है"

"अभी तक भारतीय जनमानस का माईंड सेट नहीं है" अभी तक भारतीय जनमानस का माईंड सेट नहीं है । वह कहीं भी कभी भी किसी से भी प्रभावित हो जाता है । इसका कारण भी है कि हिन्दुत्व में हर विषय को भले ही वह राजनीति हो अर्थनीति हो शिक्षा ,चिकित्सा आदि को भगवान, ईश्वर ,स्वर्ग नरक से जोड देता है । इसलिये जनमानस उदासीन रहता है, जिसे कभी भी कहीं भी मोडा जा सकता है । उदाहरण के लिये यह कि विज्ञान का मास्टर कक्षा में आकर सूर्य की व्याख्या गर्म गोले के रूप में लरखों डिग्री तापमान बताकर करता है वहीं उसी कक्षा के अगले पीरियड में हिन्दी का मास्टर आता है वह कहता है कि हनुमान ने बचपन में खेलते खेलते सूरज को अपने मुंह से निगल लिया था । दोनों ही शिक्षक है छात्रों को अपने गुरू की बात पर विश्वास करना ही है । परन्तु वह छात्र जब घर आता है अपने मां बाप से पूछता है कि आज मेरी इस तरह की पढाई हुई आप क्या कहते हैं । चूंकि बाप का माईंड भी सेट नहीं है इसलिये खीझकर कह देता है तुझे पास होने से मतलब है हिन्दी का प्रश्न पत्र आये तो हनुमान वाली बात लिख देना । विज्ञान के प्रश्न पत्र में विज्ञान के मास्टर ने जो बताया है