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Showing posts from August, 2018

"एक छोटे से भूल से अंबेडकरी आंदोलन दिग्भ्रमित हो गया।"

"एक छोटे से भूल से अंबेडकरी आंदोलन दिग्भ्रमित हो गया।" कहने को तो देश का मूलवासी, मूलनिवासी संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के मार्ग पर चलने की बात करता है लेकिन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के साहित्य को पढ़ो तो ऐसा लगता है की उनके साहित्य से ज्ञान तो अर्जित किया गया लेकिन बाबा साहब ने जिस महत्वपूर्ण कड़ी के तहत आंदोलन को चलाने की बात कही थी उस के पदचिन्हों पर ना चल कर बाबासाहेब के साहित्य मैं मीठा जहर डाल कर एक शैतान ने सारे आंदोलन की दिशा ही बदल दी , यह एक ऐसा टर्निंग पॉइंट था जिसमें बड़े-बड़े अंबेडकरवादी या बुद्धिजीवी भी इस पर ध्यान नहीं दे सके और आज भी उसी क्रम में अपने आप को अंबेडकरवादी कहते चले आ रहे हैं वह कड़ी यह है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने अपने साहित्य में सदैव महात्मा बुद्ध का अनुसरण करते हुए बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि और संघम शरणम गच्छामि इस क्रम में आंदोलन की रचना की थी उसी क्रम में डॉक्टर अंबेडकर साहब ने एजुकेट, एजिटेट एंड ऑर्गेनाइज शब्द क्रम को रखा था लेकिन उनके मरने के बाद जब उनका यह साहित्य हिंदी ,मराठी आदि कई भाषाओं में छापा गया तो

प्रधानमंत्री को जान का खतरा नहीं,"क्राउन आप इंडिया" का खतरा है।

प्रधानमंत्री को जान का खतरा नहीं,"क्राउन आप इंडिया" का खतरा है। यह बात भले ही अतिशयोक्ति पूर्ण लगे लेकिन मेरी दृष्टि से यह प्रसंग जान का नहीं वरन भारत की धन धरती और उसकी माल्कियत का है।जिन बुद्धजीवियों चाहे वे कम्युनिस्ट विचारधारा के हों या समाज वादी, प्रकृतिवादी विचार के हों,भारत की आत्मा से अच्छी तरह परिचित हैं। उन्हें लगा कि इस देश के मूल वंशजों के साथ कहीं ना कहीं नाइंसाफी हो रही है।उनकी धन धरती से लगातार उन्हें विस्थापित किया जाना उन्हें जंगली,असभ्य कहकर उनकी सरलता,सहजता को अग्यानता कहकर उनके विकास के नाम पर उन्हें समूल नष्ट करने के सत्ताधारी प्रयासों को मानवता वादी समझ रहा था । इसलिए उनमें वैचारिक , व्यवहारिक चेतना पैदा करने के लिए उनके बीच उन्ही की तरह जीवन जीकर एहसास किया। उनके दुख दर्द को मिटाने का संकल्प लेकर साहित्य सृजन के साथ उनके स्वाभिमान को जगाने का प्रयास किया गया उसका परिणाम यह हुआ कि भूमिपुत्रों में आत्मविश्वास जागृत हुआ। सर्वहारा वर्ग की श्रेणी का एहसास हुआ। भूमिपुत्र इन साम्यवादी, समाजवादी, वर्तमान अम्बेडकरी विचारों से लगातार  चैतन्य होता गया। आज वह तैय

"सांस्कृतिक युद्ध में प्रजातंत्र के राजनीतिक अस्त्र का इस्तेमाल करो।"

"सांस्कृतिक युद्ध में प्रजातंत्र के राजनीतिक अस्त्र का इस्तेमाल करो।" गोंडवाना के आदिवासियों की भाषा, धर्म, संस्कृति और अस्तित्व को बचाना है ,देश को हिटलर की तानाशाही विचारधारा से मुक्त कराना है ,तो संघ और भाजपा को भारत भूमि से उखाड़ फेंकना होगा। यह समय सांस्कृतिक युद्ध का है,जो राजनीति के अस्त्र से लड़ा जाना है। इस युद्ध में जो भी व्यक्ति, समुदाय और राजनीति, गैर राजनीतिक संगठन शामिल होंगे, उन्हें आने वाली पीढ़ियां सदैव क्रांतिकारियों के रुप में याद रखेंगी । -gsmarkam

"मप्र में जूते चप्पल की राजनीति"

"मप्र में जूते चप्पल की राजनीति" ‌सवाल यह नहीं कि इन जूते चप्पलों में केंसर पैदा करने वाला तत्व पाया गया। यह बात तो जगजाहिर है कि संघ के एजेंडे में मूलवासी मूलनिवासी समाज के लिए,खान पान से लेकर मानसिक विकृतियों ,नश्ल और जीन तक को कमजोर करने के लिए औषधियों में परोक्ष रूप से जहर जैसे तत्त्व को मिलाये जाने का लिखित दस्तावेज मिलते हैं जूते चप्पल के माध्यम से कैंसर भी ऐसे एजेंडे का हिस्सा हो सकता है। पर इसके अतिरिक्त सवाल यहां सीधे सीधे भ्रष्टाचार, मनमानी और अनिक्षा से जुड़ा है। ज ूते चप्पल की क्वालिटी उसकी मानकता (मापदंड)पर निर्धारित है। कि इसमें कंपनी और खरीददार एजेंसी के बीच कितनी दलाली तय हुई । एक ओर तेंदू पत्ता संग्राहक की मेहनत की राशि को सीधा न देकर उसकी अनिक्षा से,कि उसकी प्राथमिक आवश्यक है कि नहीं,उसके हिस्से की राशि को मनमाने ढंग से चप्पल जूते के रूप में थोपना । यानि जनता के मेहनत को भी सरकार के द्वारा दिए जा रहे एहसान के रूप में प्रस्तुत करना। सरेआम आंखों में धूल झोंकने जैसी बात है। इसे गंभीरता से जनमानस के बीच लाना होगा। ताकि इनके द्वारा किये जा रहे कृत्यों की पोल खुल

"गोगपा की मध्यप्रदेश में राजनीति स्थिति स्पष्ट"

"गोगपा की मध्यप्रदेश में राजनीति स्थिति स्पष्ट" (भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए गोंगपा मप्र में अग्रणी भूमिका निभायेगी) देश और प्रदेश में लगातार संविधान विरोधी गतिविधियां अनुसूचित वर्ग के विरुद्ध लगातार चल रहे षडयंत्र तथा कमजोर तबकों पर अमानवीय अत्याचार अन्याय की घटनाओं से आहत समाज की भावनाओं को लेकर गोंगपा ने भाजपा को सत्ता से बाहर करने का स्पष्ट ऐलान कर दिया है। गोंडवाना के इस मुहिम के साथ मप्र में जितने भी राजनीति संगठन साथ मिलकर चलना चाहते हैं उन्हें उनकी संख्या और बजनदा री के साथ महत्त्व दिया जायेगा, कांग्रेस भी यदि भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए इस मुहिम में अग्रणी भूमिका निभाने को तैयार है तो गोंगपा इसका स्वागत करती है । कांग्रेस यदि अति आत्मविश्वास के कारण इस मुहिम से दूर रहती है तो यही समझा जायेगा कि कांग्रेस, संविधान विरोधी एवं अतिवादियों को परोक्ष रूप से समर्थन के पक्ष में है। इसी तरह गैरराजनीतिक संगठन भी इस मुहिम में एकजुटता का परिचय दें अन्यथा उन पर भी संविधान विरोधी भाजपा और उसकी मातृ संस्था का परोक्ष सहयोगी माना जायेगा। यह कठोर निर्णय लेने के पीछे कारण स

वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत करें"

"वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत करें" देश की आजादी के लिए सबसे पहले अंग्रेजो के विरुद्ध आदिवासियों ने जंग छेड़ा था। आज हमें पुनः देश को अन्याई अत्याचारियों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ना होगा। अंग्रेज भी तो  यही करते थे। जो आज के सत्ता धारी कर रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में हमारे बीच के ही कुछ गद्दार अपने ही भाइयों के साथ गद्दारी करते थे उसी तरह आज भी हमारे बीच से ही कुछ गद्दार सत्ता धारियों की गुलामी में फंस कर हमसे गद्दारी कर रहे हैं इन्हें भी पहचान कर रखना होगा। देशकी आंतरिक पुलिस व्यवस्था में तैनात लोग हों या मिलिट्री से लेकर, शासकीय सेवा में लगे लोग हों । इन सबको वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध लामबंद होना होगा । अंग्रेजी शासन व्यवस्था के विरुद्ध जिस तरह असहयोग और बगावत की चिंगारी फूंकी गई थी उसी तरह वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध हमें बगावत करना होगा। हमारे अपने माईन्ड को सेट करना होगा । देश की जागरुक लोग यदि अंग्रेजों के विरुद्ध उठकर बगावत नहीं करते उनके विरुद्ध आंदोलन नहीं छेड़ते तो आज भी अंग्रेज हमारे देश से नहीं जाते। आज भी मुट्ठी भर मनुवादी अंग्रेजों की तरह बहुसंख्

"कहीं एैसा तो नहीं कि गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन का राजनीतिक पक्ष अभी भी अपने शैशव काल में है।"

"कहीं एैसा तो नहीं कि गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन का राजनीतिक पक्ष अभी भी अपने शैशव काल में है।" गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन की विभ्न्नि महत्वपूर्ण शाखायें भाषा धर्म संस्कृति एवं साहित्य के क्षेत्र में शनैः शनैः अग्रसर हो रहीं हैं । हालांकि इन रास्तों में भी अनेक बाधाऐं हैं । गोंडियन धार्मिक रास्ते में धार्मिक आंदोलनकारी कुछ अलग अलग तरीके से गोंडवाना के इस पक्ष को रखकर आगे बढ रहे हैं पर जय सेवा के मंत्र को आत्मसात करके चल रहे हैं । कोई बात नहीं हिन्दू धर्म में कई शाखायें हैं वे शैवमती वैष्णवमती या गायत्री के माध्यम से हिन्दुत्व को बरकरार रखकर मौके पर हिन्दुत्व को अपना अंतिम हथियार मान लेते हैं । इसी तरह गोंडवाना आंदोलन का धार्मिक पक्ष भले ही बडादेव बूढादेव के झंझट में उल्झा हो या मूलवासी मूलनिवासी कौन की व्याख्या में लगा हो तथा ज्यूडीशियल नान ज्यूडीशियल को अपने रीतिरिवाज को अपना अस्त्र बनाकर संगठित हो रहा हो पर सब एक ही धारा के पक्षधर हैं इसलिये हम एक तीर एक कमान आदिवासी आदिवासी एक समान हैं यह भावना बलवती हो रही है । जो भविष्य में सांस्कृतिक धार्मिक समर में सब एकदूसरे

*खबरदार होशियार संविधान को ऐसे लोगों से भी खतरा है*

*खबरदार होशियार संविधान को ऐसे लोगों से भी खतरा है* (समुदाय और पद की गरिमा को भी गिरवी रखने से नहीं चूकते पार्टियों के गुलाम आदिवासी जनप्रतिनिधि) ‌आदिवासी स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने और संवेधानिक पद की गरिमा को गिरवी रखने का मामला प्रकाश में आया है पांचवी सूची अंतर्गत आने वाले ब्लाक चिचोली जिला बैतूल से चिचोली जनपद पंचायत के अध्यक्ष हैं आदिवासी चिरोंजीलाल कवडे। यह कवडे महोदय जिस पार्टी के इशारे से अध्यक्ष बनें हैं पार्टी नेताओं के इतने गुलाम हो चुके हैं कि 15 अगस्त जैसे राष्ट्र ीय पर्व मैं अपने जनपद क्षेत्र में आयोजित मुख्य ध्वजारोहण समारोह जिसमें वे शासन के नियमानुसार संवैधानिक हकदार हैं । परंतु अज्ञात कारण कहें या अज्ञात भय जिसके कारण चिचोली नगर परिषद् के अध्यक्ष जोकि गैर आदिवासी है उन्हें ध्वजारोहण के लिए अधिकृत कर दिया। ऐसी बात नहीं कि वे इस समारोह में शामिल नहीं होंगे । शामिल तो होंगे लेकिन अपनी गुलामगिरी और व्यक्तिगत अक्षमता को समुदाय की अक्षमता का नमूना दिखाकर अपने समुदाय और संवेधानिक पद की गरिमा को कालिख पोतते दिखाई देंगे। ‌ जबकि आयोजन के लिए हुई मीटिंग में तहसीलदार के द्वारा जन

*प्रकृतिवाद और द्रविण मूल*

"प्रकृतिवाद और द्रविण मूल" (9 अगस्त विश्व आदिवासी, इंडीजीनियस, मूलवासी, देशज दिवस के अवसर पर विशेष प्रस्तुति) आज देश में आदिवासी चेतना का ज्वार उठ रहा है । यह समुदाय अपने हक अधिकारों को समझकर देश भर में एकता का बिगुल बजा रहा है । 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस ने एक ओर इन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान बढाया तो कुछ पढे लिखे नवजवानों ने संविधान के पन्ने पलटना शुरू किये । परिणामस्वरूप अन्याय,अत्याचार,शोषण,पलायन,विस्थापन से हताश समुदाय या तो खुदकुशी कर ले या फिर क्रांति का बिगुल बजा दे । दोनों ही काम हो सकते थे, परन्तु संविधान में अपनी सुरक्षा की ग्यारंटी के कारण अधिकार प्राप्ति के लिये जन चेतना को अस्त्र बनाना तय किया । यह जनचेतना शोषण के विरूद्ध लोकतंत्र में वोट के रूप में अपनी प्रमुख भूमिका अदा करेगा । इस आसरा में आदिवासी समुदाय अपने आप को लामबंद करने में लगा हुआ है । इस लामबंदी में भाषा,धर्म,संस्कृति,क्षेत्रीयता,नस्ल और जाति की महीन सी दीवार दिखाई देती है । इस बारीक दीवार को ढहाते वक्त इस बात का खयाल रखना होगा कि आदिवासी मूलतः दृविण नश्ल की प्रजाति है । जोकि मानव विकास कृम में वि

चुनाव में आरक्षण का झुनझुना

*चुनाव में आरक्षण का झुनझुना* आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट जब राज्य सरकारों से अनुसूचित जाति जनजाति के रिक्त एवं भरे गए पदों की जानकारी मांग रहा है तब राज्य सरकार यह जानकारी लेकर सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत क्यों नहीं कर रही है। इसका मतलब मध्यप्रदेश में शासकीय सेवकों की संख्या मैं कहीं ना कहीं धांधली हुई है। जबकि अनुसूचित जाति और जनजातियों की जनसंख्या के अनुपात में अभी तक उनका कोटा पूरा नहीं हुआ है। वही अन्य पिछड़ी जातियों को भी अनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। यह आरक्षित जातियां 50% की सीमा को भी लग नहीं रही है। इसका मतलब यह है की सामान्य श्रेणी के लोग 50% शासकीय सेवाओं में भी पूरी तरह काबिज हैं, साथ ही आरक्षित वर्गों के रिक्त पदों को भी सामान्य प्रचारित करके उनमें भी काबिज हैं। इसलिए मध्य प्रदेश की सरकार सुप्रीम कोर्ट को कुल शासकीय पद और रिक्त पदों की जानकारी देने से कतरा रही है। मोटी मोटी जानकारी देकर आरक्षित वर्ग और सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रही है। सरकार की इस गुमराही के चक्कर में अजाक्स जैसे संगठन भी आ चुके हैं। अन्यथा इतने दिनों में कुल शासकीय पद, रिक्त पद, आरक्षित
*विश्व आदिवासी दिवस,और आदिवासी सामाजिक दबाव*  "प्रदेश में 22 प्रतिशत आदिवासी समुदाय है, परंतु यह संख्या शायद सरकार के सामने कोई मायने नहीं रखता, कारण भी है की सत्ताधारी दल के आदिवासी जनप्रतिनिधि पूरी तरह गुलाम बने हुए हैं । सरकारों की नींद चुनाव वर्ष में खुली है कि अब शासकीय स्तर पर 9 अगस्त विश्व आदिवासी मनाया जाय । यही नहीं विश्व आदिवासी दिवस पर जिन जिलों में सरकार के माध्यम से विश्व आदिवासी दिवस मनाने का ढोंग किया जा रहा है, उनमें इस तरह शासकीय सेवकों की ड्यूटी  लगाकर शासकीय आयोजन नहीं कराते, इसका सीधा सा मतलब है की आम नागरिकों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यवधान पैदा कराना है। इससे यह साबित होता है की आदिवासी जनता को बड़ी आसानी से विभाजित किया जा सकता है। समाज का यह विभाजन सामाजिक दबाव को कमतर करता है। ठीक यही स्थिति गैर सत्ताधारी आदिवासी जनप्रतिनिधियों की है। जो विपक्ष में बैठकर भी 9 अगस्त की छुट्टी के लिए विशेष पैरवी नहीं कर सके,इनकी भी अपनी डफली अपना राग है। सरकार अभी भी आदिवासियों को मात्र भीड़ मानती है। उसे अभी भी विश्वास है कि इस समुदाय को खरीदा जा सकता है, बहलाया फुसला

सच सुनता नहीं, बोलता है।

"सच सुनता नहीं बोलता है" हम तो बेवकूफ हैं थोड़े में हीं झुक जाते हैं। समाज का वास्ता देकर हमें वो छल जाते हैं।। तमाम कोशिशें तरकीबों को भी आजमाया। एक वो शख्स हैं जो, चुपके दगा दे जाते हैं।। इतना तो अक्ल है करतूत उनकी ना समझें । फिर भी खुली आंखों में वे,धूल झोंक जाते हैं ।। जिसको कहना है,उस तक पहुंच जाये ये खत । लोग तो डाक को भी चुपके से पढ़ जाते हैं ।। इस हकीकत की इबारत को भले ही ना समझो। ये तो इक दर्द है कभी लिखते में आ जाते हैं ।। -Gsmarkam

"प्रकृतिवाद और द्रविण मूल"

"प्रकृतिवाद और द्रविण मूल" (9 अगस्त विश्व  आदिवासी, इंडीजीनियस, मूलवासी, देशज दिवस के अवसर पर विशेष प्रस्तुति) आज देश में आदिवासी चेतना का ज्वार उठ रहा है । यह समुदाय अपने हक अधिकारों को समझकर देश भर में एकता का बिगुल बजा रहा है । 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस ने एक ओर इन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान बढाया तो कुछ पढे लिखे नवजवानों ने संविधान के पन्ने पलटना शुरू किये । परिणामस्वरूप अन्याय,अत्याचार,शोषण,पलायन,विस्थापन से हताश समुदाय या तो खुदकुशी कर ले या फिर क्रांति का बिगुल बजा दे  । दोनों ही काम हो सकते थे, परन्तु संविधान में अपनी सुरक्षा की ग्यारंटी के कारण अधिकार प्राप्ति के लिये जन चेतना को अस्त्र बनाना तय किया । यह जनचेतना शोषण के विरूद्ध लोकतंत्र में वोट के रूप में अपनी प्रमुख भूमिका अदा करेगा । इस आसरा में आदिवासी समुदाय अपने आप को लामबंद करने में लगा हुआ है । इस लामबंदी में भाषा,धर्म,संस्कृति,क्षेत्रीयता,नस्ल और जाति की महीन सी दीवार दिखाई देती है । इस बारीक दीवार को ढहाते वक्त इस बात का खयाल रखना होगा कि आदिवासी मूलतः दृविण नश्ल की प्रजाति है । जोकि मानव विकास कृम में वि

*मप्र में राजनीतिक चेतना के लिये विधान परिषद का गठन होना चाहिये ।*

*मप्र में राजनीतिक चेतना के लिये विधान परिषद का गठन होना चाहिये ।* "मध्यप्रदेश में राजनीतिक चेतना की कमी का कारण प्रदेश में विधान परिषद का गठन नहीं होना भी हो सकता है कारण कि जिस तरह से विधान परिषद का चुनाव होता है उसमें भाग लेने वाले मतदाता कालेज स्थानीय निकाय और विधायकों द्वारा चुने जाते हैं । जब संसद में दो सदन हैं तो संसदीय परंपरानुशार प्रत्येक राज्य में दो सदन होना चाहिये । क्या मप्र राज्य के नेता विधायिका शक्ति का विकेंद्रीकरण नहीं चाहकर एक सदन के माध्यम से मनमानी करना  चाहते हैं ।" *विधान परिषद्* भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा की तरह विधानपरिषद एक स्थायी निकाय है जो कभी विघटित नहीं होतीण् इसका प्रत्येक सदस्य यएमएलसीद्ध छह वर्ष के लिए अपनी सेवा देता है और इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में सेवामुक्त हो जाते हैं वर्तमान में भारत के छह राज्यों में विधान परिषद है आंध्र प्रदेश बिहार जम्मू और कश्मीर कर्णाटक । महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश । *विधान परिषद् सदस्य बनने के लिए योग्यताएं* 1.वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो 2.30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका होण् 3.वह मानसिक

"मनुवाद के विरूद्ध एकजुटता का परिचय देने का वक्त आ गया है ।"

"मनुवाद के विरूद्ध एकजुटता का परिचय देने का वक्त आ गया है ।"  देश में एक बहुत बडी धटना घट गई जिसे किसी मीडिया ने प्रसारित नहीं किया थोडा बहुत छपा भी तो एक कोने का समाचार बनकर रह गया है । यह घटना है देश में अम्बेडकरी मिशन का सबसे बडा बौद्धिक वर्ग बामसेफ का राजनैतिक संगठन बीएमपी का लोकतांत्रिक जनता दल में विलय । अब यह बौद्धिक वर्ग शरद यादव को पीछे से बहुत बडी ताकत के रूप में खडा हो चुका है । सभी को ज्ञात है कि वामन मेश्राम जी के नेतृत्व में चल रहा बामसेफ ही मात्र एैसा संगठन है  जो आज आरएसएस जैसे संगठन को खुली चुनौती देता दिखाई देता है । बामसेफ के अनुशासित बौद्धिक कार्यकर्ता पूरे देश भर में फैले हैं जो मनुवादी व्यवस्था के विरूद्ध लगातार अपने आंदोलन को चलाकर मूलनिवासियों का माईड सेट कर रहे हैं । आरएसएस और भाजपा की मूलनिवासी विरोधी खुली चुनौती के चलते देश में राष्ट्रीय स्तर पर बौद्धिक वर्ग ने चिंतन मनन शुरू कर दिया है । सभी राजीतिक सामाजिक संगठन एकजुटता के लिये प्रयासरत हैं एैसे में गोंडवाना का आदिवासी आंदोलन अलग थलग ना पड जाय इसका ख्याल रखना होगा । अन्यथा उदित राज ,रामविलास पासव

‌‌ *धरातल के आंदोलन को भूलो मत*

‌‌ *धरातल के आंदोलन को भूलो मत* "पत्थर गढ़ी पूर्णतः संवैधानिक और वैद्य है" (प्रत्येक ग्राम में पत्थर गढ़ी करें लेकिन कैसे ?) 1. संबंधित ग्राम में पत्थर गढ़ी करने के पहले विशेष ग्राम सभा का आयोजन किया जाकर ग्रामीण संसाधनों पर ग्राम सभा के अधिकार नियंत्रण एवं प्रबंधन प्राप्त किए जाने का स्पष्ट प्रस्ताव पारित करवाया जाए ग्राम सभा की भूमि पर पत्थर गढ़ी कर उस पर सूचना अंकित किए जाने का प्रस्ताव करवाया जाना चाहिए। 2. ग्राम का निस्तार पत्रक पटवारी से या जिला अभिलेखागार से प्राप्त कि या जाना चाहिए यदि अधिकार अभिलेख उपलब्ध है तो उसमें गैर खाते की भूमियों के दर्ज ब्योरों की प्रति प्राप्त की जानी चाहिए वर्तमान खसरा पंजी में दर्ज गैर खाते की भूमियों और से संबंधित ब्योरे प्राप्त किए जाने चाहिए। 3. ग्राम सभा के प्रस्ताव की सूचना विधिवत कलेक्टर ,सीईओ जिला पंचायत एवं जनपद पंचायत अनुविभागीय अधिकारी एवं तहसीलदार तथा थाना प्रभारी को पंचायत की ओर से प्रेषित की जानी चाहिए -gsmarkam

आदिवासियों को समूल नष्ट करने के बजाए उनके धैर्य की सीमा को ही मर्यादित कर दिया जाए,

1.आदिवासियों को समूल नष्ट करने के बजाए उनके धैर्य की सीमा को ही मर्यादित कर दिया जाए, ताकि वह अपने शोषण और लूट का प्रतिकार सत्ताधारियों, शोषकों के विरुद्ध ना कर सके। शासक वर्ग के लिए इससे अच्छा गुलाम बनाने का हथियार कोई नहीं हो सकता।-gsmarkam "प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कार्यपालिका विधायिका एवं न्यायपालिका की संवैधानिक मर्यादाएं एवं संवैधानिक सीमाएं सुनिश्चित हैं जिसका पालन करने और प्रजा से पालन करवाए जाने कि प्रजातंत्र का नाम दिया गया है। संवैधानिक मर्यादाओं एवं संवैधानिक सीमाओं के उल्लंघन की चिंताजनक वास्तविकताओं के बीच आदिवासी क्षेत्रों एवं आदिवासियों को किस धैर्य का परिचय देना होगा इसका भी निर्धारण कार्यपालिका विधायिका एवं न्यायपालिका को सुनिश्चित कर ही देना चाहिए।"-gsm 2. "खबर और ख़बरनवीस" ख़बरनवीस का भी खबर से विश्वास उठ गया । मुर्दा इंसान भी आज जिंदा छप गया ।। मरे थे भूख से जहां लाखों गरीब जन। खबर पढ़ा तो आंकड़ा दहाई,इकाई में आ गया । रोज देखता था उसे सड़क पर पन्नी बटोरते । रिकॉर्ड,और खाना पूर्ति के लिये ख़बरों में डान हो गया ।। ख़बरनवीस हूं खबरें तो मैं स

"9 अगस्त को अजा/जजा एकता बनायें रखें ।"

"9 अगस्त को अजा/जजा एकता बनायें रखें ।" 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर भारत बंद अनु0 जाति /जनजाति के बीच दरार पैदा करने का प्रयास है । अनु0 जाति के भाइर्यों से निवेदन है कि आप भले ही इस आयोजन में शामिल ना हों पर बंद का समर्थन ना करें । यदि इस विषय पर भारत बंद करना है तो अन्य दिवस तय कर लें आपका छोट भाई अनु जनजाति उस बंद के लिये 2 तारीख के बंद की तरह कंघे से कंघा मिलाकर बंद का समर्थन करेगा जेसा पहले किया है ,इसलिये शडयंत्रकारियों के बहकावे में ना आवें । इससे हमारी आरक्षित वर्ग एकता विभाजित होगी और दुश्मन इसमें सफल होगा । -गुलजार सिंह मरकाम (रा0संयोजक गोंसक्रांआं एवं गोगपा)

"2 अगस्त 2018 को भोपाल में भाजपा विरूद्ध मूलनिवासी आंदोलन का शंखनाद"

"2 अगस्त 2018 को भोपाल में भाजपा विरूद्ध मूलनिवासी आंदोलन का शंखनाद" (भाजपा के विरूद्ध तीसरे मोर्चा का शंखनाद कांग्रेस यदि संविधान बचाना चाहती है तो इनके साथ मिलकर गठबंधन करे ।) आज देश में भाजपा के क्रियाकलापों से देश का मूलनिवासी परिचित हो गया है । उसके संविधान बदलकर मनुस्मृति के संविधान की वकालत खुलकर सामने आ चुकी है । एैसे मौके पर देश का मूलनिवासी समुदाय जिसमें अनु0जाति जनजाति पिछडा वर्ग एवं धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय एकत्र होकर इस संविधान विरोधी भाजपा के विरूद्ध एक साथ नही ं हुए तो मूलनिवासी समुदाय का भविष्य अंधेरे की गर्त में जाता दिखाई दे रहा है । इनके विजयी सांसद खुला बयान दे रहे हैं कि हम संविधान बदलने के लिये जीत कर आये हैं । और अभी संविधान के रहते हम समान नागरिक संहिंता का बिल लाकर देश में नागरिको के लिये समान नागरिक संहिता बनायेंगे । आप ही सोचें जब संविधान में समान नागरिक संहिंता लागू होगी सभी सामान्य नागरिक होगे तब आपको संविधान में प्रदत्त विशेष अधिकार आरक्षण का क्या होगा । अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का क्या होगा । प्रमोशन में आरक्षण जैसे विशेषाध