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Showing posts from September, 2018

"6सितंबर 2018 कथित भारत बंद।"

1- "6सितंबर 2018 कथित भारत बंद।" आरक्छन और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का विरोध यानी कि सवर्ण अपनी कमजोरी खुद दिखा रहे हैं जबकि यह मात्र कानून है ,कोई कानून का उल्लंघन ना करें इसलिए रास्ता है, इसका विरोध करने का मतलब इन्हें अन्याय अत्याचार की खुली छूट मिले, इन्हें नौकरियों में सभी सीटों पर कब्जा करने का अवसर मिले यही है उनका आशय है जब उच्च वर्ग अन्याय नहीं करेगा तो उस कानून के रहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कानून को संविधान में लिखा रहने दो आप अन्याय अत्याचार मत करो तो उस कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी ,आप सही हिस्सेदारी दो तो तुम्हें आरक्षण के विरोध की जरूरत नहीं पड़ेगी ,लेकिन सब कुछ थोड़े से लोग हड़प जाना चाहते हैं इसलिए इस तरह के कानून का विरोध करते हैं।-gsmarkam 2- "आदिवासी नेतृत्व वाले दलों को सुझाव" (देश की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में) जनजातियों का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक दल और सन्गठन में यदि सवर्ण कार्यकर्ता या पदाधिकारी हैं ,यदि वे उस पार्टी में रहना चाहते हैं तो ऐसे दलों को चाहिए कि वह सवर्ण कार्यकर्ताओं पदाधिकारियों से

"गोंडवाना के आदिवासियों को राजनीति के प्रति अपना माइंड सेट कर लेना चाहिए

"गोंडवाना के आदिवासियों को राजनीति के प्रति अपना माइंड सेट कर लेना चाहिए" मप्र में गोंडवाना का राजनीतिक आंदोलन शनै: शनै:, सत्ता का बेलेंसिंग पावर के रूप में स्थापित हो चुका है। कांग्रेस के द्वारा गोंडवाना को विभाजित करने के लाख कोशिशों के बावजूद गोंडवाना के सिपाही नहीं डगमगा रहे हैं। इसका परिणाम यह निकलकर सामने आ रहा है कि कांग्रेस को गोंडवाना सहित अन्य दलों के लिए ७० सीटें छोड़ने की प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा समाचार माध्यम से अधिकृत घोषणा करने को मजबूर होना पड़ा। गोंडवाना की यह ताकत आदिवासी राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। जयस जैसा गैर राजनीतिक संगठन भी यदि गोंडवाना के साथ चलकर पश्चिम मप्र में आदिवासी एकता का परिचय देती है तो आदिवासी सरकार की कल्पना को साकार किया जा सकता है। यदि एक साथ नहीं भी होकर जयस पश्चिम क्षेत्र में स्वतंत्र निर्णय लेता है तो गोंगपा को कोई आपत्ति नहीं। परंतु जयस स्वतंत्र चर्चा कर अपना नुकसान होता देख। संविधान,आरक्षण, और आदिवासी अस्मिता के सवालों को दरकिनार कर इन सवालों के विरुद्ध खड़ा होता है तो इसका दोषी वह स्वयं होगा। इसलिए मप्र का आदिवासी अपने माइंड

"जेखर घर नौ लाख गाय,दूसर घर मही मांगने जाय"

मप्र में विद्युत ऊर्जा प्रसंग। "जेखर घर नौ लाख गाय,दूसर घर मही मांगने जाय" मध्यप्रदेश देश का एकमात्र अजूबा राज्य है, जहां जल और कोयला से 18000 हजार मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है। और प्रदेश की विभिन्न, उपयोग जैसे उद्योग , घरेलू तथा कृषि के लिये कुल खपत 9000 मेगावाट है फसल की सिंचाई के समय यह खपत 12000 मेगावाट हो जाती है। फिर भी औसतन 6000 मेगावाट बिजली का उपयोग नहीं होने के कारण अन्य राज्यों को लागत से भी कम दाम में बेचना पड़ता है। वे राज्य जिनमें दिल्ली शामिल है ,दिल्ली राज्य सरकार अपनी जनता को मप्र की जनता को मिलने वाली प्रति यूनिट बिजली दर से आधे से भी कम कीमत पर बिजली प्रदाय कर रही है। दूसरों को लागत से  कम कीमत में बिजली देने की  बजाय मप्र की जनता को कम कीमत में बिजली नहीं दी जा सकती ? वहीं दिल्ली का मुख्यमंत्री मप्र में आकर अपनी सरकार की बिजली की कीमत पर वाहवाही लूट रहा है। बतायें कि कौन मुख्यमंत्री बेवकूफ है ? इस पर विचार करें।  क्या जनता की आंखों में धूल झोंकने वाली सरकार को माफ करेंगे ? इसलिए शिक्षित बेरोजगारों,नवजवानों,मजदूर किसानों जागो ! "अबकी बार ग