"विचारधारा देश और समाज"
हमारे देश में दुनिया की लगभग सभी तरह की विचारधाराओं का चलन है । प्रत्येक विचारधारा की एक जड़ होती है जो एक बीज से निकलती है जिसमें उसका तना,शाखा, टहनी,पत्तेफूल तथा अंततः परिणाम के रूप में उसका फल निकलता है ज्ञात हो कि बीज के आंतरिक गुण यदि कड़वाहट के हैं या विषैला होगा तो उसे उपयोग करने वाले पर वह बीज अपने गुणों के अनुरूप प्रभाव डालेगा उस बीज का स्वभाव बीज से बने तना,शाखा,टहनी, पत्ते,फूल,फल पर रहता ही है । विचारधारा विभिन्न आयामों में काम करती है मानव समाज में यह उसके संस्कार,धर्म,संस्कृति,साहित्य,आर्थिक, सामाजिक,राजनीतिक,शैक्षणिक विषयों में छाया की तरह दिखाई देती है, जिसका मूल्यांकन आम समाज के समझ के परे की बात होती है । किसी विचारधारा को समझने के लिए उसके बीज से लेकर पेड़ के सभी अंगों की जानकारी और समझ होना चाहिए आइए हम अपने देश में प्रवाहित कुछ विचार धाराओं पर चर्चा करने का प्रयास करें । मोटे तौर पर विचारधाराओं की जड़ों का पता लगा पाना आसान नहीं होता है कि ये ना जाने कितनी मोटी कितनी गहराई तक हैं सामान्य और औसत बुद्धि को केवल बाहर का आकार प्रकार ही दिखाई देता हैं , जिसका मूल्यांकन वह उसी समझ के आधार पर करते हुए उसके प्रति अपनी सकारात्मक या नकारात्मक सोच बनाता है,जब कभी उसे अपनी बनाई धारणा के विरुद्ध पाता है तब वह अपनी धारणा बदलने का प्रयास करता है या कभी-कभी तना या शाखा के क्रियाकलापों से प्रभावित होकर अपनी धारणा में आंशिक बदलाव करते हुए अपने बनाए सोच में स्थिर कर लेता है । -.... आगे
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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