Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2017

"कडवा सच"

क्या मार्कन्डेय काटजू सुपी्रम कोर्ट के जज ने कह दिया कि, देश में केवल आठ प्रतिशत आदिवासी है वही देश का मालिक है आपने सहर्ष स्वीकार कर लिया । चेहरे में खुसी की लहर दौड गई । कि हम आठ प्रतिशत के लौग ही देश के मालिक है । कही एैसा तो नहीं कि मार्कन्डेय काटजू ने केवल अनुसूचित जनजाति की सूचि को लेकर टिप्पडी करके सूचि में शामिल लोगों से वाहवाही लूट ली । आदिवासियों की जनसंख्या कम आंककर उन्हें पिटवाने का रास्ता तो अन्यों को नहीं दिखा दिया । हम बिना सोचे समझे कहने लगे हम आठ प्र तिशत लोग मालिक है । अरे आपने कभी सोचा है कि आदिवासी इस देश में केवल आठ प्रतिशत नहीं बल्कि लगभग 25 प्रतिशत है । और किसी देश में 25 प्रतिशत हिस्सा कु छ  भी    करने में सफल हो सकता है , 25 प्रतिशत कैसे हैं इसकी विवेचना होनी चाहिये अन्यथा आदिवासी अल्पसंख्यक को सारा देश तिरछी नजरों से देखना शुरू कर देगा । आदिवासी अलग थलग हो सकता है । इसलिये आदिवासी इस देश में बहुसंख्या में है अल्पसंख्या में नहीं इस बात की जानकारी हो जानी चाहिये । केवल एक समूह गोंड को ले लेते हैं । गोंड म0प्र0 में जनजाति उ0प्र0 के 13 जिलो को छोड सभी में अ0जाति,

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

"कर्नाटक राज्य में गोंड तथा उसकी उपजाति की स्थिती"

कर्नाटक के रायचूर जिले में वाल्मीकि समुदाय अनुसूचित जनजाति की राज्य सूचि में अधिसूचित है । रायचूर विधानसभा में विधायक भी हैं ।  गोंड,राजगोंड प्रदेश में तथा कुरूबा गोंड रायचूर, गुलबर्गा एवं बीदर जिले में अनुसूचित जनजाति की राज्य सूचि में अधिसूचित हैं । गोंड राजगोंड से कोई भी विधायक नहीं पर कुरूबा गोंड से 12 विधायक राज्य में नेतृत्व कर रहे हैं । धनगड जाति अन्य पिछडावर्ग की सूचि में शामिल है । जनजाति के लिये राज्य में आठ प्रति शत का आरक्षण है केवल राजगोंड ही शुद्ध गोडी भाषा बोलते हैं गोंडी धर्म संस्कृति का पालन करते हैं । शेष गोंड की जातियां शैवमतावलंबी हैं पर काफी तादात में वैष्णव मतावलंबी हो चुके हैं । कनकगुरू पीठ के स्वामी से बातचीत के दौरान उन्होने बताया कि कनकगुरू शैवमत के राजा थे जिन्होने प्रजा की सुरक्षा के लिये विजयनगर राज्य के वैष्णव राजा की अधीनता स्वीकारते हुए वैष्णव धर्म का पालन करने लगे थे पर उनका धर्मांतरण के पूर्व का साहित्य मनुवादी व्यवस्था के विरोध का है इसे हम धीरे धीेरे आगे लाने का प्रयास कर रहे हैं । यही कारण है कि स्वामी जी ने उस पीठ में केवल शैवमती झलक मिलती है । स्

"अब गोत्रों का होगा मानकीकरण !"

"अब गोत्रों का होगा मानकीकरण !" देश के विभिन्न हिस्सों में गोंड समुदाय एवं उनकी उपजातियां स्थानीय भाषा के प्रभाव के कारण 750 गोंत्र नामों से भी अलग नाम से लिखते हैं । यथा बिहार झाारखण्ड( बेसरा) छ0ग0( हुपेंडी) तेलंगाना (अर्का) महाराष्ट (गेडाम, आडे) उडीसा (नायक) म0प्र0 (गोठरिया ,मार्को) आदि ! उ0प्र0 में केवल (गोंड) गोत्र नहीं ,अन्य राज्यें में केरला में भी गोंड समुदाय की जानकारी प्राप्त हो रही है इसका भी अध्ययन किया जाना है । जनजातियों सहित मूलविासियों के सभी गोत्र टोटेिमस्टिक होते है ।   सगा जनों और फेसबुक मित्रों से आग्रह है कि अपने नाम के साथ अपना सर्नेम को अनिवार्य रूप से जोडें गौरव की बात होगी । सभी अपने टोटम या गोत्र चिन्ह से भी सबको अवगत कराये ंतो देष के समस्त मूलनिवासी समूह जो अपने गोत्र की जानकारी के साथ टोटम से अवगत करायेंगे तो पुरातन समय की सामाजिक व्यवस्था को समझने में आसानी होगी कारण कि जाति और वर्गों में बंटा यह समाज भाषायी अंतर के कारण एक ही टोटम क ो अलग अलग नाम से धारित किया हुआ है । मिंज उरांव, में मछली टोटम और मीना राजस्थान में मछली टोटम गोंडी में मीन यानि

"आन्दोलन और पूर्णकालिक कार्यकर्ता"

आज के दौर में किसी आन्दोलन को सफल बनाने के लिये उस संगठन की प्रत्येक शाखाओं में कुछ पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं का होना अनिवार्य है । चाहे वह सामाजिक, आथिक ,राजनैतिक,धार्मिक शाखा हो । आदिवासियों के आन्दोलन को आज गिने चुने लोग जो कि व्यवसायिक, परिवारिक क्रियाकलापों के साथ कुछ ही समय दे पाते हैं । फिर भी किसी तरह आन्दोलन आगे बढ रहे हैं,जो लक्ष्य प्राप्ति के लिये नाकाफी हैं । कारण कि यदि व्यवसायिक, पारिवारिक जिम्मेदारी बढी तो आन्दोलन पर उसका असर प डता है, उसकी गति धीमी होती है । कभी कभी देखने में आता है कि कोई पारिवारिक या व्यवसायिक जिम्मेदारी वाला व्यक्ति आन्दोलन में कुछ अधिक समय या धन खर्च करता है तो वह आन्दोलन को लीक से हटकर अपने तरीके से चलाने का प्रयास करता है, जो आन्दोलन के लिये नुकसानदायक है । यदि पूर्णकालिक कार्यकर्ता होगा तो उसे कोई लोभ् लालच या पारिवारिक, व्यवसायिक जिम्मेदारी प्रभावित नहीं कर सकेगी । आज जितने भी बडे या केडर बेस संगठन परिणाम तक पहुंच रहे हैं उनका आधार पूर्णकालिक कार्यकर्ता है । हमें इस तरह के पूर्णकालिक कार्यकर्ता की खोज कर उन्हें पूरी तरह सामाजिक संरक्षण देकर समाज

"गोन्डवाना और महाभारत कथा"

महाभारत काव्य की एक काल्पनिक कथा है। जिसमें पान्डवो ने अपनी जीविका के लिये केवल बटवारे में" पान्च गांव" की मांग रखे थे। उनके ही खून के भाई दुर्योधन ने उन्हें सुई की नोक बराबर भी भागीदारी से मना कर दिया। बाप ने भी न्याय की जगह महत्वाकांक्षी बेटे का साथ दिया अन्ततः अहन्कार हारा । इस कहानी से गोन्डवाना आन्दोलन के लोगों को सबक लेना चाहिए। जब छग और मप्र में एक साथ चुनाव होना है तब हम आपस में राज्य विभाजन कर दुश्मन को मात देने के लिये इतनी समझ के साथ क्यों नहीं चल सकते। यदि यह फार्मूला जिन्हें सुई की नोक वाली कहानी को दुहराना चाहती है।तो शौक से ध्रष्टराष्ट्र की तरह आन्ख बन्द कर महाभारत के उस प्रसंग को अमर करने को तैयार रहें । तथा दोनों दलों में दोषी कौन पर तर्क वितर्क कर अपना और समाज का बहुमूल्य समय व्यर्थ करे ।

"आनर आफ इन्डिया हैं गोंडवाना लैंड के आदिवासी ।"

मिशन 2018 5वी और छठी अनुसूचि के आदिवासी हित के प्रवधानों के संबंध में आदिवासियों को जागृत करने का प्रयास कर रही है । किसी को इस बात को जरा सा भी आभास नहीं कि हम जिस म0प्र0 में पांचवीं अनुसूचि के तहत अधिकारों की बात कर रहे हैं वहां पर पांचवी अनुसूचि के कोई भी नियम नहीं बनाये गये हैं । जब तक राज्यपाल द्धारा राज्य में पांचवी अनुसूचि को लेकर अधिसूचना जारी नहीं होती तब तक उस राज्य में पांचवीं अनुसूचि का कोई मायना नहीं है । इसलिये ज यस का मिशन 1018 निश्चित रूप से आदिवासी यों की आंख खोलने के लिये काफी है । हमें जयस के इस आव्हान का पूरी तरह समर्थन करना चाहिये । दूसरी ओर आनर आफ इन्डिया की मुहिम चलाने वाले हमारे कुछ बुद्धिजीवि जो आदिवासियों को देश का मालिक बता रहें हैं निश्चित ही आदिवासी देश का मालिक है । राज्यपाल और राष्टपति केवल हमारा संरक्षक है ,उसे हमारे जल जंगल जमीन के क्रय विक्रय की अधिसूचना जारी करने का अधिकार नहीं है । पर भारतीय संविधान और अंतर्राष्टीय नियमों का उल्लंघन कर इस देश की अल्पमतीय सरकार जो केवल आदिवासियों की व्यवस्थापक है, नये नये कानून बनाकर आदिवासी मालिक की जनसंख्या को नहर,