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पार्टी और दल व्यवस्था ने देष में स्वतंत्र प्रजातंत्र आने से रोक दिया ।

पार्टी और दल व्यवस्था ने देष में स्वतंत्र प्रजातंत्र आने से रोक दिया ।  संविधान निर्माताओं ने देष की व्यवस्था को चलाने के लिये गणतंप व्यवस्था लागू कर जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ राज्य की बागडोर देकर व्यवस्था को चलाना । इसलिये संविधान ने देष को राश्ट नहीं गणराज्य कहा । इसलिये जनता का जनता के लिये जनता द्वारा चलायी जाने वाली व्यवस्था को लोकतंत्र व्यवस्था कहा गया । जनहित में किसी कान ून को बनाने के लिये सदन के बहुमत को महत्वपूर्ण माना गया है । संविधान निर्माण के बाद लगातार इसी नियम के तहत कार्य चलता रहा । लेकिन चालाक नेताओ खासकर कांग्रेष के स्वयंभू नेताओं को लगा कि यह संसद इसी तरह चलता रहा तो मुखिया नेताओं की नहीं चलेगी । आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधियों पर कोर्इ जोर नहीं चल पायेगा । इस कारण से सदन में बहुमत प्राप्त दल को व्यवस्था की बागडोर दिये जाने का प्रावधान लाकर जन तंत्र की जगह पार्टीतंत्र को स्थापित किया गया। जबकि आज भी पूर्व प्रकि्रया के तहत ही कानून पारित होते हैं परन्तु पार्टी तंत्र के कारण बहुमत दल मनमानी करने लगता है । जोडतोड से जनविरोधी कानून भी पास करा लेत...

गोंडियन समुदाय के गोत्र तथा देव व्यवस्था

हमारे एक मित्र तिरूमाल कुरेटी साहब ने गोंडियन समुदाय के गोत्र तथा देव व्यवस्था संबंधाी जानकारी चाही है । हमारी परंपरागत गोंडियन व्यवस्था का आरंभ प्रकृति के ऋण और धन सूत्र के आधार पर स्थापित की गई है । समुदाय की पारंपरिक व्यवस्था में माता और पिता के पक्ष को आधार माना गया है । इसी को व्यवस्थित करते हुए हमारे महान तत्ववेत्ता धर्मगुरू पहांदी पारी कुपार लिंगों ने  आपसी संबंध कैसे हों इसके लिये पारी व्यवस्था दी है । जिसे हम समान्यतया पारी सेरमी के रूप् में देखते हैं ।  चूंकि मानव की आरंभिक अवस्था के पषुवत जीवन से आसपसी समूह संघर्श के हिंसक परिणाम को प्रथम लिंगों ने गंभीरता से लिया । तब एैसे समूहों के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित करने के लिये तथा प्रकृति के बीच जीव जगत का संतुलन बनाये रखने के लिये प्रत्येक समूह में गोत्र व्यवस्था को लागू किया । यह गोत्र व्यवस्था आज विष्व के समस्त देषों में आज भी संचालित है । गोत्र व्यवस्था ने सम गोत्रधारियों के बीच आपसी भाईचारे को जन्म दिया । विभिन्न समूहों में समगोंत्रधारी आपस में समा संबंधी के रूप् में स्थापित हुए । गोत्र व्यवस्था ने समूहों के बीच हो...

विज्ञानं के युग में आँख बंद करके अप्राकृतिक ,बेमेल जॉइंट के प्रति आस्था होना हमारी बौधिक रुग्णता को दर्शाता है !

तीज और त्योहार जैसे सवेदनशील विषय पर कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूँ ! यह विषय हमारे कुछ मित्रों को ठेस भी पंहुचा सकता है , इसके लिए अग्रिम छमा चाहता हूँ ! हमारे बहुत से साथी   गणेश जी   के चित्रों का बहुत अच्छे लुक के साथ पोस्ट किया है   ! बहुतों नें लाइक भी किया है हो सकता है इसका कारन मित्रता निभाना भी हो सकता है ! परन्तु   इस विज्ञानं के युग में आँख बंद करके   अप्राकृतिक   , बेमेल   जॉइंट   के प्रति आस्था होना हमारी बौधिक रुग्णता को दर्शाता है ! मेल से पैदा होने को सत्य मान लेना ! हाथी के सर पर मानव देह की सर्जरी , जानवर और इन्सान के खून एवं डीएनए मेचिंग अतिश्योक्ति से कम नहीं !  स्वर्ग नरक से भय खाने वाला इस अप्रत्याशित मेल को जरूर स्वीकार कर लेगा लेकिन यह बात बौद्धिक व्यक्ति के गले नहीं उतरेगी ! यह प्रसंग गोंडवाना के अंतिम 88 वें शम्भू के साथ जोड दी गई है । जिसमें उनके मूल पुत्र कार्तिकेय की ख्याति को कम करने के लिये मनगढ...

gondi bhasha me hamare samandh

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''क्रन्तिकारी मंशु ओझा के श्रदांजलि दिवस के अवसर पर विशेष श्रदांजलिसहित ''

''क्रन्तिकारी मंशु ओझा के श्रदांजलि दिवस के अवसर पर विशेष श्रदांजलिसहित '' आज का दिन २ ८ अगस्त आदिवासी युवाओं के लिए विशेष महत्त्व का है ! घोडाडोंगरी जिला बैतूल मध्यप्रदेश का एक नवजवान मंशु ओझा जो १ ९ ४ २ में मात्र १ ८ वर्ष की उम्र में जेल पंहुचा दिया गया ! इसका दोष इतना था की वह अंग्रेजों के विरुद्ध अपने साथियों के साथ मिलकर आये दिन संघर्ष करता रहता था ! उसे अंग्रेजो की गुलामी बर्दास्त नहीं  थी , जंगलों में अपने गाँव के नवजवानों को लेकर रातों रात रेल की पटरियां उखाड देना आये दिन की बात हो गयी थी ! जब मुखबिरों के माध्यम से उनके करतूतों की जानकारी शासन तक पहुची तब सभी नवजवान साथी जंगलों में छिप गए ! शासन के आय का साधन इमारती लकड़ी के कई डिपो रातो रात जला डाले ! ''बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती '' अंततः सारे साथी पकड़ लिए गए बैतूल जेल भर गया , ऐसी स्तिथि में मंशु ओझा को सश्रम कारावास के लिए नरर्सिंहपुर जेल भेज दिया गया ! आजादी के बाद उन्हें तत्कालीन सरकार ने उन्हें ताम्र पत्र देकर अपनी खानापूर्ति कर दिया ! उनका परिवार आज भी घोडाडोंगरी जिला बैतूल में अत्यंत...