विज्ञानं के युग में आँख बंद करके अप्राकृतिक ,बेमेल जॉइंट के प्रति आस्था होना हमारी बौधिक रुग्णता को दर्शाता है !
तीज और त्योहार
जैसे सवेदनशील विषय
पर कुछ लिखने
का प्रयास कर
रहा हूँ ! यह
विषय हमारे कुछ
मित्रों को ठेस
भी पंहुचा सकता
है , इसके लिए
अग्रिम छमा चाहता
हूँ ! हमारे बहुत
से साथी गणेश जी के
चित्रों का बहुत
अच्छे लुक के
साथ पोस्ट किया
है ! बहुतों
नें लाइक भी
किया है हो
सकता है इसका
कारन मित्रता निभाना
भी हो सकता
है ! परन्तु इस विज्ञानं
के युग में
आँख बंद करके अप्राकृतिक ,बेमेल जॉइंट के
प्रति आस्था होना
हमारी बौधिक रुग्णता
को दर्शाता है
! मेल से पैदा
होने को सत्य
मान लेना ! हाथी
के सर पर
मानव देह की
सर्जरी ,जानवर और इन्सान
के खून एवं
डीएनए मेचिंग अतिश्योक्ति
से कम नहीं
! स्वर्ग
नरक से भय
खाने वाला इस
अप्रत्याशित मेल को
जरूर स्वीकार कर लेगा लेकिन यह बात बौद्धिक व्यक्ति के गले नहीं उतरेगी ! यह प्रसंग
गोंडवाना के अंतिम 88 वें शम्भू के साथ जोड दी गई है । जिसमें उनके मूल पुत्र कार्तिकेय
की ख्याति को कम करने के लिये मनगढंत प्रसंग को लाया गया ! दक्षिण गोंडवाना में आज
भी कार्तिकेय को सम्मान दिया जाता है । राजा बली भी दक्षिण देष के इश्ट देव के रूप
में पूजे जाते हैं । गणेश नहीं ! गणेश उत्सव की शुरूआत के संबंध में संभी को ज्ञात है कि आजादी के संघर्श
में अंग्रेजो के विरूद्ध लोगों को एकत्र करने तथा उन्हें संघर्श के लिये उत्साहित करने
के लिये इस तरह के आयोजन किये जाते थे ताकि अंग्रेजो को लगे कि यह उनके धार्मिक आयोजन हैं । यह केवल प्रतीक रूप था कि आन्दोलनकारियों
को हाथी कान के संबंध बताया जाता था कि हमें हाथी के कान की तरह हर तरफ से आने वाली
आवाज को गृहण करना है । ताकि दुष्मन की हरकत अच्छी तरह से सुनाई दे ! हाथी के छोटी
आंख से हमें यह सीखना है कि आन्दोलन क्यों चलाया जा रहा है विशयों को बारीकी से देखना
अर्थात सुई में धागा डालते समय आंख कों छोटी करना होता है तभी धागा डाला जा सकता है
। सुंड से मतलब था कि जिस तरह हाथी फूक मारते हुए आगे बढता है उसी तरह हमें भी फूंक फूंक कर कदम रखना है । बडे पेट का दृष्य बहुत सी बातों को पचाना ताकि आन्दोलन की गोपनीयता
बनी रहे । आदि आदि ! लेकिन आजादी के बाद जिन लोगों के हाथ में देष की व्यवस्था आई उन्होंने हमारी इस मासिकता का जमकर दोहन किया जो आज यह परंपरा
का रूप ले चुकी है । और भी बहुत सी बातें हैं जिन्हें संक्षेप में बताया जा सकता है
। वह यह कि देष की मूल आस्था तीज त्यौहार और परंपराओं को कमजोर करने के हम तीजा मनाते
है तो उसको कमजोर करने के लिये गणेश चतुर्थी आ गई ! हम पंचमी मनाते हैं तो उसकी जगह
हरछठ ने ले लिया हमारे लोग अश्टमी में पूजा
समाप्त कर लेते है तब रामनवमी को बाजू से खडा कर दिया गया । एैसे बहुत सी हमारी मान्यताओं
को कमजोर करने के लिये की गई कूट रचना को समझना होगा । बाते बहुत सी हैं इस विशय में
गहराई पर उतरने की आवष्यकता है । जय सेवा जय जौहार ।
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