म0प्र0 में गोंड जनजाति की जनसंख्या को देखते हुए तथा उसकी समृद्व भाशा गोंडी को बोलने वालों की संख्या को देखते हुए कोयतुर गोंडवाना महासभा जोकि सामाजिक संगठन है । के द्वारा गोंडी भाशा को मान्यता दिलाये जाने हेतु लगातार प्रयास कर रही है । इसी के तहत म0प्र0 के विधान सभा सदस्यों से संपर्क कर नवम्बर 2011 के सत्र के दौरान मांग पत्र प्रस्तुत किया ताकि ये सदस्य विधान सभा में चर्चा कराके प्रस्ताव पारित करा लें । दुर्भाग्य से किसी भी सदस्य ने इसे नहीं उठाया । जबकि इस संबंध में लगभग सभी अनु0जनजाति के विधायकों को मांग पत्र देकर अनुरोध किया गया । महत्व नहीं दिये जाने का कारण जो भी लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि इन विधायकों में भाशा की महत्ता क्या होती है इसकी समझ नहीं । इन्हें यह दिखाई नहीं देता कि विदेषी भाशा अंग्रेजी षरणार्थी विदेषी सिंधियों की भाशा सिंधी को जब इस देष के संविधान में जगह मिल सकती है तब मूल निवासियों की भाशा गोंडी को मान्यता क्यों नहीं दिया जाना चाहिए । जरा सोंचें ।
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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