मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी ।
चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलता है कि जो पहले पहुचा उसे अधिक मात्रा(अन्क) मे पेनो (देव )की प्राप्ति हुई जो बाद मे पहुचा उन्हे कम पेन मिले । गुरू के द्वारा पेन वितरण के समय ही उनके टोटम सम्बन्धी जानकारी से अवगत करा दिया जाता था ।
सम्बन्धित पेन वितरण के महाआयोजन की जानकारी एक समूह जिसे वर्तमान में "मरकाम" गोत्र के नाम से जाना जाता है, को मिली , अन्य समूहो के साथ साथ इस समूह ने भी पेन प्राप्ति की अभिलाषा से अपनी तैयारी आरम्भ की । खाने पीने का समान और अन्य आवश्यक सामग्री लेकर समूह आगे बढा कई दिन रात के सफर के बाद अन्तत् गुरू के स्थान की कुछ दूरी पर ही सान्झ होने लगी । गुरू के स्थान और समूह के बीच केवल एक विशाल तट की नदी का फासला था । अब केवल नदी पार करना था । मन्जिल निकट जानकर इस समूह के मुखिया ने कहा कि अब तो पहुच ही गये है । ऐसा करते हैं सभी लोग स्नान ध्यान कर भोजन पका लेते हैं, इसके बाद नदी में जो नाविक है उसे बुलाकर उस पार ठिकाने मे पहुच जायेगे । सभी ने स्नान किया तत्पश्चात भोजन बनाने की तैयारी हुई । भोजन पकाने के लिये पत्थर का चूल्हा बनाया जाना था दूर दूर तक पत्थर नहीं दिखाई दिया चूंकि वहाँ नदी थी केवल रेत ही रेत थी । इधर सान्झ हो चली नाविक भी जाने की तैयारी करने को था वह दूर से उसी समूह का इन्तजार कर रहा था कि वे आये तो मै अन्तिम खेप करके प्रस्थान करू । इधर समूह मे हलचल थी सब कुछ तैयार है , अब चूल्हा किस चीज से बनाये पत्थर भी दूर दूर तक नही दिखाई दे रहा है । अन्तत् समूह के मुखिया ने कहा कि गुड की ढेली का चूल्हा बनाओ । गुड का चूल्हा तैयार किया गया ,लकड़िया सुलगाई जाने लगी । ज्यो ज्यो आग तेज हुई चूल्हा पिघलने लगा सारा किए कराये पर पानी फिर गया । पुन् चूल्हा बनाया गया फिर वही हाल । इस तरह प्रयास करते करते सान्झ हो चुकी थी , नाविक उनका इन्तजार करते करते हताश होकर चला गया अन्तत् किसी तरह गुड के चूल्हे से ही भोजन बनाने मे सफलता मिली ।
समूह ने भोजन उपरांत नाविक को जलतट पर जाकर आवाज लगाई , नाविक तो जा चुका था अब नदी के उस पार जाने की समस्या थी एक बार पुनः नाविक को आवाज लगाई गई । नाविक का पता नहीं ! किवदन्ति के अनुसार समूह के बार बार आवाज लगाने पर नदी के तट पर विशालकाय कछुआ आया और उनसे नदी के पार जाने का आशय पूछा तब आशय समझ कर कहने लगा कि आप सभी मेरी पर बैठ जाये में सभी को नदी के पार कर दून्गा । इतना सुनकर समूह में खुशी की लहर दौड़ गई सभी ने कछुए के परोपकारी भाव की सराहना करते हुए उसकी पीठ पर सवार हो गये । धीरे धीरे कछुआ नदी की ओर बढा चलते चलते नदी के बीचोंबीच गहरे भाग में पहुचकर रूक गया और कहने लगा कि भाई मैं कई दिनों से भूखा हूँ अब मुझे एक साथ बहुत सा आहार मिल गया है इसलिये आप लोगो को खाकर अपनी भूख मिटाऊगा । इतना सुनते ही समूह मे हाहाकार मच गया सब रोने चिल्लाने लगे इस शोर गुल को सुनकर नदी तट पर अपने बच्चों के साथ घोंसला में बैठी रायगीघा पक्षी ने उतरकर समूह को देखा और स्थिति भांपकर समूह को उठा उठाकर नदह के पार छोड दिया । तब समूह ने गिद्ध के प्रति अपनी कृत्ज्ञता प्रकट करते हुए आभार माना और कछुए के प्रति घृणा भाव से उसके वंश को समूल नष्ट कर देने की चेतावनी से रायगीधा को अज्ञात नुकसान का अंदेसा हो गया तब उन्होने स्थिति को समझ कर समूह से कहा कि भाई इतना क्रोध और बदले की भावना रखने से तो कछुआ नाििम के जीव का अस्तत्व ही समाप्त हो जायेगा इसलिये आप लोग भले ही इससे दुराभाव रखो लेकिन यदि मेरे द्वारा किये गये कार्य का मुझे सम्मान देना चाहते हो तो आपको कछुए को अपना पेन देवता स्वीकार करना होगा । यह सुनकर सभी उस रायगीधा की बात को स्वीकारते हुए कहने लगे कि इसने तो हमारे वंश का ही अस्थ्तित्व मिटाने का प्रयास किया है इसलिये आपके कहने पर हम इसे पेन तो मानलेंगे लेकिन हम उसे छुऐंगे भी नहीं । रायगीधा ने सहमति दे दी । कहा जाता है कि तब से मरकाम समूह उसे देवता तो मानता है परन्तु उसे छूता तक नहीं यदि धोखे छुवा गया तो इस गोत्र के लोग नहाकर अपना शुद्धीकरण करते हैं ।
किसी तरह यह समूह अंत में गुरूवा के स्थान पर पहुंचता है तब तक अनेक समूह अपना अपना पेन प्राप्त कर चुके थे गुरू के पास कुछ ही पेन संख्या वितरण के लिये बचे थे सो इस समूह को केवल तीन पेन ही मिल सके इस तरह सबसे कम देव समूह लेकर मरकाम समूह का नामकरण हुआ जिसमें गुरू ने रायगीघा सहित आम के वृक्ष् को उनका टोटम संपादित किया । कहा जाता है कि मरकाम का यह समूह अपनी विभिन्न व्यवसायिक ग्रुपों में बंटा वही व्यवसायिक ग्रुप आज जातियों उपजातियों में एक सा गोत्र लिखा जाता है । इसी तरह अन्य गोत्र के देव समूह भी इसी तरह एक ही गोत्र और देव मानते हुए आज विभिन्न जातियों उपजातियों के रूप में विद्धमान हैं ।
यह किवदंती विश्व में इंसानी गोत्र व्यवस्था की स्थापना का मूल आधार ही जान पडता है । अन्यथा गोत्र व्यवस्था की स्थापना का आधार क्या है । अब यह पता लगाना होगा कि वो गुरू कौन था कहीं पहांदी पारी कुपार लिगों तो नहीं । यह शोध का विषय है ।
मैंने अपने गोत्र के अलावा अन्य गोत्र के संबंध में जानकारी हासिल किय तो उनकी कहानी भी पेन वितरण आयोजन के समय उनके साथ होने वाली घटनाओं को जोडा गया है । उन घटनाओं का जिक्र करते हुए नात और सगा समूह आपस में मजाक करते देखे गये हैं । इस तरह की कहानियां यदि किन्ही गोत्रों के बुजुर्गों से प्राप्त होती है जतो जिज्ञासु गण अवश्य इसका संग्रह करें हो सकता है इस संकलन से गोंडवाना संस्कृति के उच्चतर आदर्श दुनिया के सामने आ सकें । प्रस्तुति (गुलजार सिंह मरकाम)
Vinod Nikhil मरकाम जी आप की जो ये कथा है बिल्कुल सही है।मुझे इस कहानी के बारे मे मेरे नाना जी ने सुनाया था जो स्वयं मरकाम गोत्र के है,, लेकिन इस कहानी मे मुझे थोड़ा बदलाव नजर आ रहा है बदलाव ये है जँहा पर आपने गिद्ध का जिक्र किया है वँहा पर नाना जी ने बताया की केकड़ा ने उनकी जान बचाया क्योंकि नदी की धार मे कछुआ बहने लगा था तो केकड़ा ने आकर उन लोगो को बचाया बाँकी सब ठीक है ।मेरे नाना जी ने हमारे बारह भाइयों के बारे मे भी बताया कि उन लोगो ने कैसे नदी पार किया बेँदो एक बेल है इसी के सहारे हमारे लोग नदी पार किये और इसी के आधार पर हमारा गोत्र हुआ पेँदो ।मुझे तो जानकारी नहीँ है जो नाना ने बताया था ओ मै बता रहा हूँ ।जय सेवा ,जय सगा समाज ।
पुरते, परते, परतेती गण सावधान !
"परतेती ना हूरा हाल, परतेतिर्कना पर्रौ काल"
(गोत्रो के आपसी मजाक या प्रहसन)
किसी समय की बात है गांव के कुछ लोग शिकार के लिये जंगल में गये, वहां एक ओर जाल लगाकर दूसरी ओर से हांका (आवाज) करते जंगली जानवरों को जाल की ओर भेजना था । जाल के किनारा पकडकर दो व्यक्ति आड में खडे थे । जैसे ही जाल की ओर एक बडा जंगली सूवर आया जाल को आगे धकेलता हुआ जाने लगा जाल को पकडे दोनें व्यक्ति खीचते रहे लेकिन सूवर आगे ही बढता रहा, इतने में जाल पकडे व्यक्ति गिर गये और उनकी टांगें उपर हो गई तब अन्य हांका करने वाले लोग यह हाल देखकर उस व्यक्ति को मजाक से कह गये "परतेती ना हूरा हाल, परतेतिर्कना पर्रौ काल" अर्थात परतेती के देखो हाल उनकी टांगें उपर हो गई आज भी कभी कभी बुजुर्ग आपसी मजाक में परतेजी गोत्र के लोगों के लिये इसी वाक्या का उपयोग करते हुए हंसी ठठा कर लेते हैं । इसी तरह सभी गोत्र आपस में हंसी ठठा करने के लिये किस्से कहानियो को गढकर आपसी प्रेम व्यवहार से सामाजिक जीवन जीते थे । एैसे प्रहसनो में ज्ञानवर्धन हास्य व्यंग और सामूहिकता की सीख मिलती है । -gsmarkam
Sir bahut bahut dhanyawad sir Kunjam gotta keep jankari chahiye Tha
ReplyDeleteKunjam sarnem ke baare me kuchh likhe
Ok
DeleteMere pujy sadGurudev Swami Nikhileshwaranand ji ne to ye batsya ki Kisi bhi Jati ka gotta uske naam pe chalata Jo kishi purn byaktitv ke dvij ban kar purnata (jite jee moksh) prapt karta hai sayad hamare purwaj markam naam ka koi byakti ne dvij ban kar purnata prapt ki ho
ReplyDeletePagal mat banaob
DeleteDada markam gotra ka koun sa phool hai
ReplyDeleteMarkaam jitney dev ke hote hai koi 3 kehta hai or koi 5,6 vastav me sahi kya hai
ReplyDeletePagal mma banao
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