Skip to main content

‘‘क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिये गोंडवाना आन्दोलन को कमजोर मत होने दो ।‘‘

            ‘‘क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिये गोंडवाना आन्दोलन को कमजोर मत होने दो ।‘‘
देष की आजादी के पूर्व से ही गोंडवाना आन्दोलन की नींव रखी जा चुकी थी । जिसमें गोंडवाना की मूल भावना को समझने वाले पुरोधाओं ने अपने स्तर पर उसे आगे बढाने का काम करते रहे,इस काम में गोंडवाना राज्य के विभिन्न रियासतों के राजा ओर राज परिवार के कुछ साहसी लोग लगे रहे आम जनता से भी बहुत से बुद्धिजीवी और विचारक निकले जिन्होंने गोंडवाना आन्दोलन के लिये आवष्यक तत्वों को मजबूती प्रदान करते रहे । मनीषियों ने पाया कि गोंडवाना आन्दोलन का आधार गोंडवाना की भाषा , धर्म और संस्कृति हो सकते हैं । इन विषयों पर काम होने लगा । धर्म जागरण को आन्दोलन का मुख्य स्तंभ बनाकर समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का कार्य भी आरंभ हुआ । बडी बडी सामाजिक कुरीतियों कांे समाज से बाहर निकालने की मंषा रखने वाले लोग सामाजिक पंचायतों के आधार से अपसी विवाद भी निपटाने का कार्य होने लगा । समाज में लगातार चेतना का प्रचार प्रसार होता रहा । आगे चलकर कुछ लोगों ने समाज की भाषा का विकास हो इस कार्य में जुटने लगे । गोंडी साहित्य का प्रकाषन होने लगा । भाषा के उत्थान हेतु लिपि तैयार की गई । गोंडवाना आन्दोलन का कारवां षनैः षनैः आगे बढता गया । आजादी के पूर्व जहां आन्दोलन को आगे बढाने में राजा लालष्याम षाह छ0ग0 थे तो,राजा अहेरी महाराष्ट्र की भूमिका महत्वपूर्ण रही । वहीं आजादी के आरंभिक काल में जहां कंगला मांझी छ0ग0 ने गोंडवाना आंन्दोलन को आगे बढाया तो धोकल सिंह मरकाम मण्डला म0प्र0 ने इसे जीवित बचाये रखा । वहीं गोंडवाना के कवि एवं राजनेगी रंगेल सिंह मंगेल सिंह भलावी अपनी काव्य रचना के माध्यम से इस आन्दोलन के सूत्र को संजोये रखा । इसी परंपरा को आगे बढाते हुए गोंडवाना आन्दोलन के आधुनिक सूत्रधार मोतीरावण कंगाली ने अब तक लिखे साहित्य का संकलन किया तो षीतल मरकाम नें लिंगो दर्षन को पुर्नस्थापित करने हेतु गांव गांव में बडादेव ठाना स्थापित करने का बीडा उठाया । इन सब कार्यों को गति देने के लिये गोंडवाना सगा मासिक पत्रिका जो आज गोंडवाना दर्षन के नाम पर संचालित है सुन्हेर सिंह ताराम के सतत प्रयास से गोंडवाना आन्दोलन जारी है । आन्दोलन के चलते लोगों में एकता संगठन और ताकत का एहसास होने लगा। इस ताकत का प्रदर्षन हो तथा विचारधारा के विस्तार का पैमाना मानकर हीरा सिंह मरकाम ने आन्दोलन की ताकत को राजनीतिक स्वरूप देकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की स्थापना की जिसे लगातार आगे बढाया जा रहा है । गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को आन्दोलन के सभी प्रमुख संचालकों का जिसमें प्रमुखतया आचार्य मोतीरावण कंगाली जी छ0ग0 ,सुन्हेर सिंह ताराम जी म0प्र0 , षीतल मरकाम जी महाराष्ट्र ,कोमल सिंह मरावी जी छ0ग0 , बी0एल0 कोर्राम सहित गोंडवाना महासभा के अध्यक्ष षुक्लू सिंह आहके गुलजार सिंह मरकाम जी सहित समस्त आधार स्तंभों का लगातार समर्थन है । जो गोंडवाना आन्दोलन को मंजिल की ओर ले जा रहे हैं । इन संस्थापकों ने चिंता जताई है कि आन्दोलन की राजनीतिक षाखा ‘‘गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ‘‘को कमजोर करने से आन्दोलन कमजोर होगा । इसलिये गोंडियन सगा समाज गोंडवाना आन्दोलन को आगे बढाने के लिये ‘‘गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ‘‘के अतिरिक्त गोंडवाना के नाम का उपयोग करने वाले किसी भी राजनैतिक संगठन को हवा ना दिया जाये । मूल संगठन ही आन्दोलन के सतत संचालन में सहायक है । कुछ लोग क्षुद्र राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर गोंडवाना के नाम पर छोटे छोटे क्षेत्रों में समाज को विभाजित कर गोंडवाना के विषाल आंदोलन को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं इन्हें मालूम नहीं कि गोंडवाना आन्दोलन के संचालक इस आंदोलन को देष के विभिन्न राज्यों में पहुंचा चुके हैं । तब इस आंदोलन को अपने स्वार्थ के लिये क्षेत्रीय आधार पर कमजोर ना किया जाये । एकजुट प्रयास से ही आंदोलन आगे बढेगा क्षुद्र स्वार्थ से गोंडवाना आंदोलन की गति धीमी होती है । उसे धीमा ना होने दिया जाय ।

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि