मुझे लगता है कि हम मूलनिवासियों को आजादी के लिये संघर्श करने की आवष्यकता है । इस संघर्श को आरंभ करने के पहले मूलनिवासी कौन इस बात की जानकारी देना जरूरी होगा । अन्यथा हमारे मूलनिवासी जन ही हमारे विरूद्ध खडे हो जायेंगें । अंग्रेजों की सत्ता जाने के बाद उनके ही नस्ल के आर्यों के हाथ में देष की सत्ता आ गई है । जलवायु के कारण चेहरा और रंग बदल जाने से खून नहीं बदलता संस्कार नहीं बदलते यही कारण है कि जिन अंग्रेजों ने देष में लम्बे समय तक राज्य करने के लिये आजादी के पहले अंग्रेजों ने इन्डिया एक्ट बनाया था वही कानून आज तक हमारे देष में चल रहा है । भू अधिग्रहण कानून अंग्रेजों ने ही ईस्ट इन्डिया कम्पनी को जमीन दिलाने के लिये बनाया था ताकि कानून के चलते कोई विरोध ना हो । सरकार किसी भी किसान को जमीन खाली करने का एक नोटिस देकर जमीन को विदेषी कम्पनियों को दे देती थी । आज भी उसी तरह हो रहा है । कुछ संषोधन अभी हुए हैं फिर भी ग्रम सभाओं की नहीं सुनी जा रही है । कलेक्टर के द्वारा सरपंच को धारा 40 का भय बताकर ग्राम सभा से नकली सहमति पत्र बनवाकर आज भी किसानों की जमीने प्रायवेट तथा बहुराश्टीय कम्पनियों के हवाले की जा रही है । आखिर आजादी के बाद क्या बदलाव आया है । जो लोग अंग्रेजों के समय में अंग्रेजों के लिये टेक्स वसूलने के लिये मालगुजार और जमींदार बने थे । वे तब भी सुखाी थे आज भी वही लोग सत्ताधारी बनकर सत्तासुख भोग रहे हैं । परन्तु समय परिर्वतन के साथ देष के मूलनिवासियों में अपने हक और अधिकार को समझने की चेतन आने लगी तब ये सत्ता धारी अंग्रजों की औलाद उदारीकरण निजीकरण एवं भूमंडलीकरण के नाम पर विदेष में बैठै अपने सगे संबंधियों को भारत में आमंत्रित कर रहे हैं ताकि मूलनिवासियों की चेतना को संविधान का वास्ता देकर दबाया जा सके । कारण की मूलनिवासी संविधान को सम्मान देता है । उसकी अवहेलना का मतलब डा0 अम्बेडकर को नकारना है । इसी कमजोरी का फायदा उठाने के प्रयास में लगा हुआ है । जबकि डा0 अम्बेडकर ने कहा है कि किसी देष का संविधान कितना ही अच्छा हो यदि उनके संचालक सहीं नहीं हैं तो अच्छा संविधान भी जनता के लिये कश्टदायी हो सकता है । वहीं उन्होंने कहा है कि किसी देष का संविधान कितना ही बुरा क्यों ना हो लेकिन संचालक सहीं हैं तो बुरा संविधान भी जनता को सुख दे सकता है । इसलिये आजादी का संखनाद करो चेहरा बदल जाने से खून का असर नहीं जायेगा । लडाई है देषी और विदेषी की लडाई है आर्य और अनार्य की लडाई है सभ्यता और संस्कुति की लडाई है सत्ताधारी षासक और गुलाम मूलनिवासी की । लडाई है प्रकृतिधर्मी और ब्राहमन धर्म की । लडाई है गोंडवाना लैंड और अंगारा लैण्ड की गहरे में जाओ तो लडाई है डी0एन0ए0 की ।
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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