"कितना आवष्यक हैं व्यक्ति के पहले गोत्र की पहचान "
तेलंगाना राज्य में अदिलाबाद के कुछ गांवों का दौरा करने पर एक बात मेरे मन के अंदर अकुलाहट पैदा कर रही थी कि जब भी मैं किसी से बातचीत संवाद करता दनके नाम पूछता चाहे वह छोटा बच्चा हो या बूढा वह गोंडी भाषा में बोलता और नाम के पहले अपना सरनेम को बताता था जैसे सीडाम बाजीराव अर्का मानिकराव मडकाम संतोष उईका लीलाधर मसराम नागेन्द्र आदि तब मैंने विचार में लिया कि अखिर इसका चलन कब से है और क्यों है तब मुझे लगा कि गोंडवाना सभ्यता संस्कृति में कितनी गहराई है हर एक बिन्दु पर समाज समुदाय के प्रति उत्तरदायित्व के लिये अपनी प्रथम पहचान समाज या परिवार की पहचान गोत्र को माना जाता है व्यक्ति का स्थान समाज गोत्र और पिता के बाद आता है । यही कारण है कि पूर्व समय में लोग पहले अपने नाम के पहले गांव गोत्र और पिता का नाम जोडते थे । कालान्तर में गांव का नाम लिखना तो छूट ही गया पिता के नाम को केवल कागजी कार्यवाही में नाम के बाद लिखा जाने लगा सरनेम को भी नाम के पीछे लिखते हुए उसे भी व्यक्ति से कम महत्व का बना दिया । परिणाम क्या हुआ व्यक्ति अपने समाज को भूलने लगा गोत्र सरनेम भी भूलता जा रहा है । बाप का नाम बाद में या कभी कभी आने से उसके मन मस्तिष्क में बाप की छवि विस्मिृत होने लगी आदर भाव कम हुआ । जिस जाति धर्म में पैदा हूं उसका मुझ पर है कर्ज बडा की बात को नजरअंदाज करता हुआ व्यक्तिवादी होता चला जा रहा है । हमारे पूर्वजों ने उपरोक्त तरीके से अपनी पहचान बताने के पीछे जो संदेश देने का प्रयास किया था वह समाज परिवार और पिता से व्यक्ति है व्यक्ति से समाज परिवार या पिता नहीं । आज के कठिन दौर में हमें अपनी पहचान को कम से कम परिवार तथा पिता के नाम से जाना जाय इसलिये पहले लिखा या जोडा जाय तो बेहतर हो सकता है । तेलंगाना राज्य के गोंड जनजाति के लोगों की भाषा की समझ अपने नाम के पहले परिवार का गोत्र या पिता को महत्व देना जिससे उसकी पहचान है अनुषरण करने योग्य है । यह संस्कार भी हमें कहीं ना कहीं समाज के प्रति उत्तरदायित्व के लिये प्रेरित करती है । इसका अनुषरण हो ताकि हम व्यक्तिवाद से उपर उठकर कम से कम परिवार के समाज के नाम पर पहचाने जायें । ''इस तरह नाम लिखने से अपने नाम के साथ प्रसाद, राम, सिंह, लाल, पीला आदि लिखने से भी मुक्ति मिलेगी'' "मरकाम" गुलजार सिंह
तेलंगाना राज्य में अदिलाबाद के कुछ गांवों का दौरा करने पर एक बात मेरे मन के अंदर अकुलाहट पैदा कर रही थी कि जब भी मैं किसी से बातचीत संवाद करता दनके नाम पूछता चाहे वह छोटा बच्चा हो या बूढा वह गोंडी भाषा में बोलता और नाम के पहले अपना सरनेम को बताता था जैसे सीडाम बाजीराव अर्का मानिकराव मडकाम संतोष उईका लीलाधर मसराम नागेन्द्र आदि तब मैंने विचार में लिया कि अखिर इसका चलन कब से है और क्यों है तब मुझे लगा कि गोंडवाना सभ्यता संस्कृति में कितनी गहराई है हर एक बिन्दु पर समाज समुदाय के प्रति उत्तरदायित्व के लिये अपनी प्रथम पहचान समाज या परिवार की पहचान गोत्र को माना जाता है व्यक्ति का स्थान समाज गोत्र और पिता के बाद आता है । यही कारण है कि पूर्व समय में लोग पहले अपने नाम के पहले गांव गोत्र और पिता का नाम जोडते थे । कालान्तर में गांव का नाम लिखना तो छूट ही गया पिता के नाम को केवल कागजी कार्यवाही में नाम के बाद लिखा जाने लगा सरनेम को भी नाम के पीछे लिखते हुए उसे भी व्यक्ति से कम महत्व का बना दिया । परिणाम क्या हुआ व्यक्ति अपने समाज को भूलने लगा गोत्र सरनेम भी भूलता जा रहा है । बाप का नाम बाद में या कभी कभी आने से उसके मन मस्तिष्क में बाप की छवि विस्मिृत होने लगी आदर भाव कम हुआ । जिस जाति धर्म में पैदा हूं उसका मुझ पर है कर्ज बडा की बात को नजरअंदाज करता हुआ व्यक्तिवादी होता चला जा रहा है । हमारे पूर्वजों ने उपरोक्त तरीके से अपनी पहचान बताने के पीछे जो संदेश देने का प्रयास किया था वह समाज परिवार और पिता से व्यक्ति है व्यक्ति से समाज परिवार या पिता नहीं । आज के कठिन दौर में हमें अपनी पहचान को कम से कम परिवार तथा पिता के नाम से जाना जाय इसलिये पहले लिखा या जोडा जाय तो बेहतर हो सकता है । तेलंगाना राज्य के गोंड जनजाति के लोगों की भाषा की समझ अपने नाम के पहले परिवार का गोत्र या पिता को महत्व देना जिससे उसकी पहचान है अनुषरण करने योग्य है । यह संस्कार भी हमें कहीं ना कहीं समाज के प्रति उत्तरदायित्व के लिये प्रेरित करती है । इसका अनुषरण हो ताकि हम व्यक्तिवाद से उपर उठकर कम से कम परिवार के समाज के नाम पर पहचाने जायें । ''इस तरह नाम लिखने से अपने नाम के साथ प्रसाद, राम, सिंह, लाल, पीला आदि लिखने से भी मुक्ति मिलेगी'' "मरकाम" गुलजार सिंह
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