''सनातन धर्म (हिन्दु) बनाम छदमवेशी ब्रामन धर्म''
आर्यों के आगमन के पूर्व हमारे संम्र्पूएा देष में मूल प्रकृति पुनेम अर्थात प्रकृति धर्म का प्रचलन था । जो कालांतर में आर्य दृविण संघर्श के बाद सनातन धर्म के रूप में सामने आया । आर्य धर्म जो मूलतः ब्रामन धर्म ही है विजयी आर्यों ने मनुस्मृति बनाने के बाद मूलनिवासियों पर सख्ती और जबरदस्ती कर वर्ण व्यवस्था कायम कर समाज को वर्ण और जातियों में बांट दिया । वर्ण और जाति विभेद के बाद भी मूलनिवासियों ने अपनी सनातन परंपराओं को जीवित रखने के प्रयास में लगातार संघर्श करते रहे । परिणामस्वरूप अनेक पंथ और सम्प्रदायों का जन्म हुआ ।
''सनातन धर्म क्या है'' :- सनातन परंपरा मूलनिवासियों के प्रकृति पुनेम का ही दूसरा रूप है । जिसमें अपनी मान्यता अपने अराधक अपने अनुश्ठान आदि सारे क्रियाकलाप स्वयं या अपने मुखिया भुमका पडिहार से कराने की परंपरा रही है । आज भी विभिन्न जाति समूह और सम्प्रदायों में प्रचलित है । इन समूहो में ब्रामन के द्वारा अपने कोई भी संस्कार सम्पन्न नहीं कराये जाते । जैसे अपने कुल देवी देवता की पूजा जन्म विवाह मृत्यु संस्कार अपने परंपरागत व्यवसाय के अनुश्ठान स्वयं संचालित किये जाते हैं । उदाहरण के लिये अहीर अपने गोवर्धन पूजा परंपरागत सनातनी परंपरा से करता है कुम्हार लोहार तेली बढई आदि अनेक परंपरागत व्यवसायिक जातियों के अनुश्ठान स्वसंचालित हैं । जनजातियों में यह परंपरा आज भी काफी गहराई में प्रचलित है । अपने देवी देवता अपने ग्राम देवता कृशि से संबंधित अनुश्ठान जन्म विवाह मृत्यु संस्कार आज भी प्रचलन में है जिसमें ब्रामन के द्वारा अनुश्ठान नहीं होते परन्तु अब ब्रामन उनमें भी प्रवेष करने का प्रयास कर रहा है ।ष्ष्
ब्राहमन धर्म ने समय समय पर मूल सनातन धर्म के अंदर प्रवेष करने का सदैव प्रयास किया है । आरंभ में कहीं कही सफल भी हुआ असफल भी। परन्तु वह अपने अभियान में लगातार लगा रहता है । अपने अभियान को सफल करने के लिये उसने अपने मूल अस़्त्र साम दाम दण्ड भेद की नीति का सदैव इस्तेमाल किया है । बौद्ध काल तक अपने अस्तित्व को पूर्णतः स्थापित करने में असफल ब्रामन धर्म ने चन्दग्रुप्त मौर्य नामक मूलनिवासी राजा को तैयार कर सनातन धर्म के रूप में अस्तित्व बचाते बौद्ध धर्म को नश्ट करने का प्रयास किया पर पूर्णतः सफल नहीं हो सका । तब तक भी कथित हिन्दु नाम के धर्म का उदय नहीं हुआ था । समय बीता हमारे देष में मुगलो का आक्रमण हुआ जिन्होने आक्रमण करते हुए इस देष के लोगों को एक गाली से सम्बोधित किया हिन्दु जिसका उनकी भाशा में चोर लुटेरा काला कलूटा होता है । यह संबोधन आक्रमणकारी द्वारा स्थानीय सभी लोगो के लिये किया गया तब ब्रामन ने इसका फायदा उठाते हुए इस नाम को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर इसका नेतृत्व अपने हाथ में लेकर तथा मुगल विजेताओ से गुप्त समझौता करते हुए अपनी बहन बेटियों को उनके हवाले कर उनके दरबारी बने अनेक उदाहरण हैं । एक तरफ लोगों को मुगलों के विरूद्ध हिन्दु अस्मिता के नाम पर भडकाकर ब्रामन वर्चस्व के लिये लगातार कार्य करते रहे बडी बडी जागीरों में पुरोहित और सलाहकार बन गये वहीं से अपने ब्रामन धर्म और मनुस्मृति के अनुषार सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने में लगे रहे । मूलनिवासी समाज टूटता गया ब्रामन व्यवस्था पर चलने को मजबूर होता गया । कालांतर में डच फ्रांसीसी अंग्रेजो के आगमन ने इनकी सारी व्यवस्था को चकनाचूर कर दिया अब ब्रामन केवल मुगलों के विरूद्ध हिन्दु नाम से अगुआ नहीं बन सकता था । उन्होने अंग्रेजों से भी संाठगांठ कर ली उनके सलाहकार भी बने मूलनिवासी हमेषा विदेषियों के विरूद्ध इनका साथ देते रहे और वह सत्ताधारियों के साथ मिलकर अपने वर्चस्व की विचारधारा को मजबूत करने में लगा रहा । कहीं आर्य समाज नाम से ब्रामन संगठन की स्थापना करता तो कहीं हिन्दु महासभा और आरएसएस के नाम पर अपने वर्चस्व को कायम कर अपने एजेडे को मूर्तरूप् देने में लगा रहता है । आजादी के इतने सालों के इनका यह कहना कि सात सौ साल बाद हिन्दुओ का षासन स्थापित हुआ है अज्ञात भ्रम पैदा करता है । 2014 के पहले पहले किसका षासन था क्या ये षासक हिन्दू नहीं थे प्रष्न विचारणीय है । आर्यों के आगमन से लेकर अंग्रेजो तथा 1947 से लेकर 2014 तक जिस षीर्श पर पर बैठकर ब्रामन अपने एजेण्डा को जिसमें ब्रामन प्रधान व्यवस्था है को लागू किया जा सकता था । वह समय चूकि अब आया है इसलिये पुनः हिन्दु नाम की खाल ओढकर अपना मनुस्मृति के संविधान की भूमिका बनाने में लगा हुआ है । पुनः बौद्ध काल के इतिहास की पुनरावृति करने का प्रयास चल रहा है । उन्हें अपने लिये एक और मूलनिवासी चन्द्रुप्त मौर्य मिल गया है नरेंन्द्र मोदी के रूप में । परन्तु उन्हे याद रखना चाहिए कि हमारे देष का कथित हिन्दु सनातन धर्मी है प्रकृति धर्मी है । आज भी वह पूरी तरह तुम्हारे जाल में नहीं फसा है उसने हिन्दु नाम से दिये तुम्हारे राश्टवाद को भलीभांति समझ रहा है । तुमने मूलनिवासियों को षासन सत्ता से कमजोर कर दिया धन संपत्ति षिक्षा से भी कमजोर कर दिया अब बची खुची रहने लायक भूमि से भी वंचित करने की साजिष में लगे हो ताकि देष का मूलनिवासी पूरी तरह लाचार हो जाये इस बात को समझने लगा है । इसलिये वह ब्रामनवादी व्यवस्था से दूर हटता जा रहा है । सत्ता में रहकर राश्ट के विकास के लिये काम करो अपने ब्रामनी वर्चस्व वाली व्यवस्था कायम करने मनुस्मृति के संविधान को लागू करने के सपने मत देखो । इस देष का मूलनिवासी लगातार संघर्श करता रहा है लेकिन अपने अस्तित्व को मिटने नहीं दिया है सनातन धर्म आज भी विभिन्न रूपों में ब्रामन धर्म को नकारता है ।
2."परधर्मो भयायव:" जिस व्यक्ति समाज या समूह का उपनयन सन्सकार ,जनेऊ सन्सकार होता है जिसमें उसे पांच घरों में भीख मन्गवाकर सन्सकारित किया जाता है वही मात्र हिन्दू है, कुछ राजकीय मान्यता प्राप्त धर्मों के अनुयायियों को छोड़कर देश के सब मूलनिवासी जिनका उपनयन सन्सकार नहीं हुआ है और जो अपने आप को हिन्दू मानते हैं सब नकली हिन्दू हैं । सभी धर्मों में उस धर्म का अनुयायी होने के लिए निर्धारित मापदंड हैं। निर्धारित मापदंड पूरा किये बिना वह उस धर्म का नही माना जाता ना वह उस समूह, समुदाय में सम्मानित होता भले ही वह कितना ही धनवान विद्वान क्यों ना हो। -(गुलजार सिंह मरकाम )
आर्यों के आगमन के पूर्व हमारे संम्र्पूएा देष में मूल प्रकृति पुनेम अर्थात प्रकृति धर्म का प्रचलन था । जो कालांतर में आर्य दृविण संघर्श के बाद सनातन धर्म के रूप में सामने आया । आर्य धर्म जो मूलतः ब्रामन धर्म ही है विजयी आर्यों ने मनुस्मृति बनाने के बाद मूलनिवासियों पर सख्ती और जबरदस्ती कर वर्ण व्यवस्था कायम कर समाज को वर्ण और जातियों में बांट दिया । वर्ण और जाति विभेद के बाद भी मूलनिवासियों ने अपनी सनातन परंपराओं को जीवित रखने के प्रयास में लगातार संघर्श करते रहे । परिणामस्वरूप अनेक पंथ और सम्प्रदायों का जन्म हुआ ।
''सनातन धर्म क्या है'' :- सनातन परंपरा मूलनिवासियों के प्रकृति पुनेम का ही दूसरा रूप है । जिसमें अपनी मान्यता अपने अराधक अपने अनुश्ठान आदि सारे क्रियाकलाप स्वयं या अपने मुखिया भुमका पडिहार से कराने की परंपरा रही है । आज भी विभिन्न जाति समूह और सम्प्रदायों में प्रचलित है । इन समूहो में ब्रामन के द्वारा अपने कोई भी संस्कार सम्पन्न नहीं कराये जाते । जैसे अपने कुल देवी देवता की पूजा जन्म विवाह मृत्यु संस्कार अपने परंपरागत व्यवसाय के अनुश्ठान स्वयं संचालित किये जाते हैं । उदाहरण के लिये अहीर अपने गोवर्धन पूजा परंपरागत सनातनी परंपरा से करता है कुम्हार लोहार तेली बढई आदि अनेक परंपरागत व्यवसायिक जातियों के अनुश्ठान स्वसंचालित हैं । जनजातियों में यह परंपरा आज भी काफी गहराई में प्रचलित है । अपने देवी देवता अपने ग्राम देवता कृशि से संबंधित अनुश्ठान जन्म विवाह मृत्यु संस्कार आज भी प्रचलन में है जिसमें ब्रामन के द्वारा अनुश्ठान नहीं होते परन्तु अब ब्रामन उनमें भी प्रवेष करने का प्रयास कर रहा है ।ष्ष्
ब्राहमन धर्म ने समय समय पर मूल सनातन धर्म के अंदर प्रवेष करने का सदैव प्रयास किया है । आरंभ में कहीं कही सफल भी हुआ असफल भी। परन्तु वह अपने अभियान में लगातार लगा रहता है । अपने अभियान को सफल करने के लिये उसने अपने मूल अस़्त्र साम दाम दण्ड भेद की नीति का सदैव इस्तेमाल किया है । बौद्ध काल तक अपने अस्तित्व को पूर्णतः स्थापित करने में असफल ब्रामन धर्म ने चन्दग्रुप्त मौर्य नामक मूलनिवासी राजा को तैयार कर सनातन धर्म के रूप में अस्तित्व बचाते बौद्ध धर्म को नश्ट करने का प्रयास किया पर पूर्णतः सफल नहीं हो सका । तब तक भी कथित हिन्दु नाम के धर्म का उदय नहीं हुआ था । समय बीता हमारे देष में मुगलो का आक्रमण हुआ जिन्होने आक्रमण करते हुए इस देष के लोगों को एक गाली से सम्बोधित किया हिन्दु जिसका उनकी भाशा में चोर लुटेरा काला कलूटा होता है । यह संबोधन आक्रमणकारी द्वारा स्थानीय सभी लोगो के लिये किया गया तब ब्रामन ने इसका फायदा उठाते हुए इस नाम को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर इसका नेतृत्व अपने हाथ में लेकर तथा मुगल विजेताओ से गुप्त समझौता करते हुए अपनी बहन बेटियों को उनके हवाले कर उनके दरबारी बने अनेक उदाहरण हैं । एक तरफ लोगों को मुगलों के विरूद्ध हिन्दु अस्मिता के नाम पर भडकाकर ब्रामन वर्चस्व के लिये लगातार कार्य करते रहे बडी बडी जागीरों में पुरोहित और सलाहकार बन गये वहीं से अपने ब्रामन धर्म और मनुस्मृति के अनुषार सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने में लगे रहे । मूलनिवासी समाज टूटता गया ब्रामन व्यवस्था पर चलने को मजबूर होता गया । कालांतर में डच फ्रांसीसी अंग्रेजो के आगमन ने इनकी सारी व्यवस्था को चकनाचूर कर दिया अब ब्रामन केवल मुगलों के विरूद्ध हिन्दु नाम से अगुआ नहीं बन सकता था । उन्होने अंग्रेजों से भी संाठगांठ कर ली उनके सलाहकार भी बने मूलनिवासी हमेषा विदेषियों के विरूद्ध इनका साथ देते रहे और वह सत्ताधारियों के साथ मिलकर अपने वर्चस्व की विचारधारा को मजबूत करने में लगा रहा । कहीं आर्य समाज नाम से ब्रामन संगठन की स्थापना करता तो कहीं हिन्दु महासभा और आरएसएस के नाम पर अपने वर्चस्व को कायम कर अपने एजेडे को मूर्तरूप् देने में लगा रहता है । आजादी के इतने सालों के इनका यह कहना कि सात सौ साल बाद हिन्दुओ का षासन स्थापित हुआ है अज्ञात भ्रम पैदा करता है । 2014 के पहले पहले किसका षासन था क्या ये षासक हिन्दू नहीं थे प्रष्न विचारणीय है । आर्यों के आगमन से लेकर अंग्रेजो तथा 1947 से लेकर 2014 तक जिस षीर्श पर पर बैठकर ब्रामन अपने एजेण्डा को जिसमें ब्रामन प्रधान व्यवस्था है को लागू किया जा सकता था । वह समय चूकि अब आया है इसलिये पुनः हिन्दु नाम की खाल ओढकर अपना मनुस्मृति के संविधान की भूमिका बनाने में लगा हुआ है । पुनः बौद्ध काल के इतिहास की पुनरावृति करने का प्रयास चल रहा है । उन्हें अपने लिये एक और मूलनिवासी चन्द्रुप्त मौर्य मिल गया है नरेंन्द्र मोदी के रूप में । परन्तु उन्हे याद रखना चाहिए कि हमारे देष का कथित हिन्दु सनातन धर्मी है प्रकृति धर्मी है । आज भी वह पूरी तरह तुम्हारे जाल में नहीं फसा है उसने हिन्दु नाम से दिये तुम्हारे राश्टवाद को भलीभांति समझ रहा है । तुमने मूलनिवासियों को षासन सत्ता से कमजोर कर दिया धन संपत्ति षिक्षा से भी कमजोर कर दिया अब बची खुची रहने लायक भूमि से भी वंचित करने की साजिष में लगे हो ताकि देष का मूलनिवासी पूरी तरह लाचार हो जाये इस बात को समझने लगा है । इसलिये वह ब्रामनवादी व्यवस्था से दूर हटता जा रहा है । सत्ता में रहकर राश्ट के विकास के लिये काम करो अपने ब्रामनी वर्चस्व वाली व्यवस्था कायम करने मनुस्मृति के संविधान को लागू करने के सपने मत देखो । इस देष का मूलनिवासी लगातार संघर्श करता रहा है लेकिन अपने अस्तित्व को मिटने नहीं दिया है सनातन धर्म आज भी विभिन्न रूपों में ब्रामन धर्म को नकारता है ।
2."परधर्मो भयायव:" जिस व्यक्ति समाज या समूह का उपनयन सन्सकार ,जनेऊ सन्सकार होता है जिसमें उसे पांच घरों में भीख मन्गवाकर सन्सकारित किया जाता है वही मात्र हिन्दू है, कुछ राजकीय मान्यता प्राप्त धर्मों के अनुयायियों को छोड़कर देश के सब मूलनिवासी जिनका उपनयन सन्सकार नहीं हुआ है और जो अपने आप को हिन्दू मानते हैं सब नकली हिन्दू हैं । सभी धर्मों में उस धर्म का अनुयायी होने के लिए निर्धारित मापदंड हैं। निर्धारित मापदंड पूरा किये बिना वह उस धर्म का नही माना जाता ना वह उस समूह, समुदाय में सम्मानित होता भले ही वह कितना ही धनवान विद्वान क्यों ना हो। -(गुलजार सिंह मरकाम )
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