कथित हिन्दु की आड में ब्रामन अपने ब्रामन धर्म को मजबूत कर रहा है ।
पूजिये विप्र ज्ञान गुन हीना,पूजिये न शूद्र गुन ज्ञान प्रवीना
”
सर्व विदित है कि मनुवादी व्यवस्था मनुस्मृति संविधान की पैरोकार है । जो वर्ण व्यवस्था पर आधारित बामन क्षत्रिय वैश्य और षूद्र के रूप में समाज को बांटता है । देष के मूलनिवासी अजा अजजा एवं अपि वर्ग समुदाय को इसी श्रेणी में रखता है । यही कारण है कि क्षत्रपति कहे जाने वाले षिवाजी महाराज जो कुर्मी थे, ब्रामनों ने इनका राजतिलक करने से मना कर दिया था। लोभ लालच देने पर बनारस में मुर्दा संस्कार करने वाला काला ब्रामन आया जो कि पुरोहितों के दबाव से बचने के लिये बांयें पैर के अंगूठे से महाराजा का तिलक किया । फूलमाला का व्यवसाय करने वाले माली जाति के महात्मा फूले को केवल शूद्र होने के कारण ब्रामन मित्र की बारात से निकाल दिया गया था । संविधान निर्माता डा0 आम्बेडकर को बडौदा महाराज के आफिस में ब्रामन चपरासी दूर से फंेककर फाईल देता था । आज भी मूलनिवासी वर्ग का कोई व्यक्ति मठाधीश या पुरोहित नहीं हो सकता । छुआछूत की व्यवस्था आज भी सर चढकर बोल रहा है । मनुवादी गृंथ आज भी मूलनिवासियों को श् ढोल गंवार षूद्र पषु नारी ये सब ताडन के अधिकारी श् तथा श् स्वपच किरात कोल कलवारा जे वर्णाधम तेलि कुम्हारा श् जैसी अमानवीय षब्दों का जहर धोलने वाले दोहे चैपाईयां आज भी मानवता का मजाक उडाते नजर आते हैं । मूलनिवासी सनातन हिन्दु समाज अपने आप को कथित हिन्दु धर्म का रक्षक मानता है जबकि हिन्दु केवल सनातन मूलनिवासी जनों का समूह है जो परंपरागत सनातनी एवं प्रकृति धर्मी है । जिन देवताओं की ये समाज अराधना करता है यथा खेरापति खेरमाई ठाकुरदेव गोंड बाबा पटैल बाबा लोहासुर बधेसुर पाट दूल्हादेव आदि इन देवताओं का उल्लेख किसी कथित हिन्दू धर्म गृंथों में नहीं हैं ।
ब्राहमन धर्म ने समय समय पर मूल सनातन धर्म के अंदर प्रवेष करने का सदैव प्रयास किया है । आरंभ में कहीं कही सफल भी हुआ असफल भी। परन्तु वह अपने अभियान में लगातार लगा रहता है । अपने अभियान को सफल करने के लिये उसने अपने मूल अस़्त्र साम दाम दण्ड भेद की नीति का सदैव इस्तेमाल किया है । बौद्ध काल तक अपने अस्तित्व को पूर्णतः स्थापित करने में असफल ब्रामन धर्म ने चन्दग्रुप्त मौर्य नामक मूलनिवासी राजा को तैयार कर सनातन धर्म के रूप में अस्तित्व बचाते बौद्ध धर्म को नश्ट करने का प्रयास किया पर पूर्णतः सफल नहीं हो सका । तब तक भी कथित हिन्दु नाम के धर्म का उदय नहीं हुआ था । समय बीता हमारे देष में मुगलो का आक्रमण हुआ जिन्होने आक्रमण करते हुए इस देष के लोगों को एक गाली से सम्बोधित किया हिन्दु जिसका उनकी भाशा में चोर लुटेरा काला कलूटा होता है । यह संबोधन आक्रमणकारी द्वारा स्थानीय सभी लोगो के लिये किया गया तब ब्रामन ने इसका फायदा उठाते हुए इस नाम को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर इसका नेतृत्व अपने हाथ में लेकर तथा मुगल विजेताओ से गुप्त समझौता करते हुए अपनी बहन बेटियों को उनके हवाले कर उनके दरबारी बने अनेक उदाहरण हैं । एक तरफ लोगों को मुगलों के विरूद्ध हिन्दु अस्मिता के नाम पर भडकाकर ब्रामन वर्चस्व के लिये लगातार कार्य करते रहे, बडी बडी जागीरों में पुरोहित और सलाहकार बन गये वहीं से अपने ब्रामन धर्म और मनुस्मृति के अनुषार सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने में लगे रहे । मूलनिवासी समाज टूटता गया ब्रामन व्यवस्था पर चलने को मजबूर होता गया । कालांतर में डच फ्रांसीसी अंग्रेजो के आगमन ने इनकी सारी व्यवस्था को चकनाचूर कर दिया अब ब्रामन केवल मुगलों के विरूद्ध हिन्दु नाम से अगुआ नहीं बन सकता था । उन्होने अंग्रेजों से भी संठगांठ कर ली उनके सलाहकार भी बने मूलनिवासी हमेषा विदेषियों के विरूद्ध इनका साथ देते रहे और वह सत्ताधारियों के साथ मिलकर अपने वर्चस्व की विचारधारा को मजबूत करने में लगा रहा । कहीं आर्य समाज नाम से ब्रामन संगठन की स्थापना करता तो कहीं हिन्दु महासभा और आरएसएस के नाम पर अपने वर्चस्व को कायम कर अपने एजेडे को मूर्तरूप् देने में लगा रहता है । आजादी के इतने सालों के इनका यह कहना कि सात सौ साल बाद हिन्दुओ का षासन स्थापित हुआ है अज्ञात भ्रम पैदा करता है । 2014 के पहले पहले किसका षासन था क्या ये षासक हिन्दू नहीं थे प्रष्न विचारणीय है । आर्यों के आगमन से लेकर अंग्रेजो तथा 1947 से लेकर 2014 तक जिस षीर्श पर पर बैठकर ब्रामन अपने एजेण्डा को जिसमें ब्रामन प्रधान व्यवस्था है, को लागू किया जा सकता था । चूकि वह समय अब आया है इसलिये पुनः हिन्दु नाम की खाल ओढकर वह अपना मनुस्मृति के संविधान की भूमिका बनाने में लगा हुआ है ।
सनातनी मूलनिवासियों जागो अपने सनातन परंपरा को पहचानो संख्या बल पर सत्ता और सम्मान
के स्वयं हकदार हो, इसे अपने हाथ में लेकर न्यून संख्या वाले ब्रामन तथा उसके धर्म
के वर्चस्व को समाप्त करो !
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