"गोंडी भाषा के अल्प ज्ञान से उसकी टांग मत तोड़ो" गोंडवाना आंदोलन अनवरत जारी है,इस दौरान गोंडवाना भूमि के आदिवासी समुदाय के कुछ खोजी,कुछ विरासत में मिली परंपराओं को आगे बढ़ाने वाले चिंतक,विचारक साहित्यकार,बैगा भुमका नर्तक गायक, भाषा शास्त्री परंपरागत जड़ी बूटी ज्ञान (जंतर) से लेकर यंत्र और मंत्रों की ओर भी अपना ध्यान देने में लगे हुए हैं । जोकि आंदोलन की सफलता के लिए अति आवश्यक है। परन्तु इस तरह के प्रयास में लगे कुछ अति उत्साही लोग या आत्ममुग्धता से ग्रस्त लोग आंदोलन के मूल आधारिक तत्वों (भाषा,धर्म, संस्कृति और साहित्य )की मूल भावना का ख्याल ना रखते हुए आत्म गौरव को बढ़ाने के लिए, इन महत्वपूर्ण तत्वों की टांग तोड़ते नजर आते हैं।इन सब बातों से अनभिज्ञ समुदाय (जन-गण) टूटी टांग को ही असली टांग समझ लेती है । जो भविष्य में आंदोलन के लिए कष्टकारक है। उदाहरण स्वरुप भाषा का क्षेत्र ले लें जो आंदोलन का आधारिक बिंदु है। जिसके सहारे हमारी समृद्धि के दर्शन होते हैं, उसके शब्दों के अर्थों में हमारा पुरातन ज्ञान (प्रकृति, के साथ जल थल और नभ) छुपा हुआ है। यदि हम भाषा के मूल की ही टांग तोड़...