"गोंडी भाषा के अल्प ज्ञान से उसकी टांग मत तोड़ो"
गोंडवाना आंदोलन अनवरत जारी है,इस दौरान गोंडवाना भूमि के आदिवासी समुदाय के कुछ खोजी,कुछ विरासत में मिली परंपराओं को आगे बढ़ाने वाले चिंतक,विचारक साहित्यकार,बैगा भुमका नर्तक गायक, भाषा शास्त्री परंपरागत जड़ी बूटी ज्ञान (जंतर) से लेकर यंत्र और मंत्रों की ओर भी अपना ध्यान देने में लगे हुए हैं । जोकि आंदोलन की सफलता के लिए अति आवश्यक है। परन्तु इस तरह के प्रयास में लगे कुछ अति उत्साही लोग या आत्ममुग्धता से ग्रस्त लोग आंदोलन के मूल आधारिक तत्वों (भाषा,धर्म, संस्कृति और साहित्य )की मूल भावना का ख्याल ना रखते हुए आत्म गौरव को बढ़ाने के लिए, इन महत्वपूर्ण तत्वों की टांग तोड़ते नजर आते हैं।इन सब बातों से अनभिज्ञ समुदाय (जन-गण) टूटी टांग को ही असली टांग समझ लेती है । जो भविष्य में आंदोलन के लिए कष्टकारक है। उदाहरण स्वरुप भाषा का क्षेत्र ले लें जो आंदोलन का आधारिक बिंदु है। जिसके सहारे हमारी समृद्धि के दर्शन होते हैं, उसके शब्दों के अर्थों में हमारा पुरातन ज्ञान (प्रकृति, के साथ जल थल और नभ) छुपा हुआ है। यदि हम भाषा के मूल की ही टांग तोड़ दें तो उससे प्राप्त होने वाले रहस्यमय और समृद्ध ज्ञान से वंचित हो जायेंगे। इसमें एक दो शब्द आजकल कुछ ज्यादा प्रयोग में आ रहे हैं , जिसका निरंतर प्रयोग हमारी नियति भी है। यथा जन्म और मृत्यु जन्म यानि गोंडी भाषा में "जाये" (किसका,किसके यहां) या "वायना"(वाता/ वातुर) वायना शब्द (किसके यहां) यह क्रिया है जो अपने आप में पूर्ण ही नहीं परिपूर्ण है। परन्तु टांग तोड़ू ज्ञानी इस एक शब्द की टांग तोड़कर हिन्दी का अनुवाद करके "पुटसी वायना " जैसे दो शब्दों को जोड़कर एक की दो टांग बनाने का प्रयास कर रहे हैं । जन्म लेना कोई नेंग नहीं जन्म के बाद उस शिशु के लिये किये जाने वाले संस्कार और क्रियाकलाप ही नेंग हैं। इसी तरह मृत्यु के लिए है, "सात,सातुर या हत्त,हत्तुर" जिसे "सायना नेंग" कहना मूर्खता है यह भी क्रियावाचक शब्द है, सायना नेंग,कोई प्रचलित या पारंपरिक प्रयोग का शब्द नहीं "सात या हत्तुर" के बाद होने वाले संस्कार या क्रियाकलापों को नेंग कहा जाता है। मरना मृत्यु होना नेंग नहीं "सातु /हत्तु या सातुर/ हत्तुर" मृत्यु के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तरह अनेक दिग्भृमित करने वाले शब्दों की गहराई से पड़ताल किए जाने की आवश्यकता है। कारण कि इस पुरातन भाषा के शब्द यदि गुम हो गये, हमारी नासमझी से विलुप्त हो गये तो हो सकता है इसमें छुपे गूढ़ रहस्य जिन्हें खोजबीन करने का प्रयास चल रहा है। हमेशा के लिए विदा ना हो जायें। सभी मित्रों को सेवा जोहार। मेरी बातों से यदि किसी को ठेस लगी हो तो,माफ करें।पर समाज के अमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करें।(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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