"प्रजातंत्र प्रणाली में राजनीति ताकत के महत्व को समझे आदिवासी समुदाय।"
संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल शक्तिहीन राज्य और राष्ट्र के प्रमुख हैं तब आदिवासी समुदाय इनके संरक्षण में कैसे अधिकार सम्पन्न हो सकता है। इसलिये हमें इनके भरोशे किसी भी जनविरोधी आदिवासी विरोधी कानून में दखल देकर उन्के हितों के संरक्षण की आशा कैसे की जा सकती है। इसलिये आदिवासी समुदाय को चाहिये कि वह लोकतंत्र प्रणाली में वोट की राजनीतिक ताकत पैदा करके अपने हितों का संरक्षण कर सकती है। आदिवासी समुदाय अपने राज्य और राष्ट्र के कथित हित संरक्षक से पांचवीं अनुसूचि पेसा कानून या वनाधिकार कानून जैसे मुददों पर उम्मीद करना बेमानी होगी। इसलिये कहा जाता है कि राजनीतिक एक एैसी मास्टर चाबी है जिससे हर समस्या रूपी बंद ताले को खोला जा सकता है।
(गुलजार सिंह मरकाम रा0सं0गों0स0क्रां0आं0)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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