"संघर्ष और मनोरंजन(नाच गान संस्कृति) अधिकार प्राप्ति में आंदोलन को कमजोर बनाता है।" "संघर्ष और मनोरंजन (नाच गाने संस्कृति) एक साथ चलने से कोई भी आंदोलन धारदार नहीं बन सकता चूंकि एक ओर हम आंदोलन के माध्यम से अपने हक और अधिकार के लिए आक्रामक गुस्सा लिये संघर्ष कर रहे होते हैं, वही एकसाथ सांस्कृतिक आयोजन करके उस गुस्से को मनोरंजन का आयोजन करके ठंडा कर लेते हैं। यही कारण है कि हमें अपने समुदाय को बार बार एक ही विषय पर पुनर्जागरण की आवश्यकता पड़ती है। मेरा मानना है कि समुदाय श्रमजीवी है अधिक शारीरिक श्रम करता उसे शारीरिक मानसिक थकावट के लिए समय समय पर मनोरंजन की भी आवश्यकता है। परन्तु उसके लिए हमारे पुरखों ने ऋतु आधारित मनोरंजन की व्यवस्था निर्धारित की है, परन्तु हमारा समुय इससे सीख लेने की बजाय, पुरखों के व्यवस्थित क्रम को तोड़ देता है। आज का दौर प्रतियोगिता का है ऐसी परिस्थितियों में हमें नाच गान जैसी सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन करके मनोरंजन के साथ कला को निखारने की आवश्यकता है।अधिकारों के लिये संघर्ष में केवल संघर्ष दिखाई दे।" -गुलजार सिंह मरकाम ( रा०अ०ग्रागपा)