"संघर्ष और मनोरंजन(नाच गान संस्कृति) अधिकार प्राप्ति में आंदोलन को कमजोर बनाता है।"
"संघर्ष और मनोरंजन (नाच गाने संस्कृति) एक साथ चलने से कोई भी आंदोलन धारदार नहीं बन सकता चूंकि एक ओर हम आंदोलन के माध्यम से अपने हक और अधिकार के लिए आक्रामक गुस्सा लिये संघर्ष कर रहे होते हैं, वही एकसाथ सांस्कृतिक आयोजन करके उस गुस्से को मनोरंजन का आयोजन करके ठंडा कर लेते हैं। यही कारण है कि हमें अपने समुदाय को बार बार एक ही विषय पर पुनर्जागरण की आवश्यकता पड़ती है। मेरा मानना है कि समुदाय श्रमजीवी है अधिक शारीरिक श्रम करता उसे शारीरिक मानसिक थकावट के लिए समय समय पर मनोरंजन की भी आवश्यकता है। परन्तु उसके लिए हमारे पुरखों ने ऋतु आधारित मनोरंजन की व्यवस्था निर्धारित की है, परन्तु हमारा समुय इससे सीख लेने की बजाय, पुरखों के व्यवस्थित क्रम को तोड़ देता है। आज का दौर प्रतियोगिता का है ऐसी परिस्थितियों में हमें नाच गान जैसी सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन करके मनोरंजन के साथ कला को निखारने की आवश्यकता है।अधिकारों के लिये संघर्ष में केवल संघर्ष दिखाई दे।" -गुलजार सिंह मरकाम ( रा०अ०ग्रागपा)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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