"गोंड समुदाय एवं उनकी उपजातियों की अपनी पारंपरिक रुढी प्रथा"
""पेनकड़ा व्यवस्थापक एवं व्यवस्था" व्यवस्थापकगण:-
1 - पाटालिर (पाटाड़ी,परधान) ,
2 -कड़ा झाड़िया,
3 -अटका भंडारी,
4 - माटिया,
5 -पटाऊ,
6 -गाडवा,
7 -पांच पंच - (भुमका, नाते रिश्तेदार, समधी ग्रुप के हो सकते हैं ।)
पेन कड़ा की व्यवस्था:- 1- पाटालिर आने वाली रैयत को उसके दोष के हिसाब से नदी, तालाब, पोखर के पानी में खड़ाकर उसका दोष पूछकर उससे उपस्थित रैयत के समक्ष कुबूल करवाता है और उसके हाथ में तान्दरी(हल्दी चावल) उसे जल छोड़ने एवं आगे गल्ती न दोहराने की हिदायत देता है ( इसे मैली छाटना कहते हैं)
२- करा झारिया;-देव खलिहान की साफ सफाई की जिम्मेदारी.
३-अटका भंडारी;-देव खलियान के अंदर बन्ना बनाना जो कुटकी और उड़द दाल का होता है ।
४.माटिया;-परिवार घर में कोई घटनाएं घटी या दोष सिद्ध हुआ है उसकी जानकारी देव सवारी के माध्यम से देने वाला.
५-पटाऊ:-परिवार का मुखिया जो परिवार में होने वाले गुण दोष की सजा या खर्चा तय करता है।
६:-गाडवा(पटाऊ की घरवाली):- पटाओ द्वारा दिया गया जो पूजा के सामान का घर में जाकर बनना बनाने वाली।(रयत के द्वारा तिल्ली के तेल बनाना यानी हाथ से दिल्ली को मसलकर गढ़वा भर तेल निकालना उस तेल से दीपक जलाया जाता है)
" गोंडवाना क्षेत्र की पारंपरिक ग्राम सभा यानी गांव की व्यवस्था।"
१. मुकदम:- गांव का मुखिया जिसे बनाया जाता है।
२. पटैल :-अंग्रेजों के समय में बनाई गई व्यवस्था का नेतृत्व करता है जिसके माध्यम से टैक्स वसूली की जाती है।
३.दवान :-मुकद्दम का सहायक या न्याय व्यवस्था में भाग लेने वाला
४. कोटवार:-गांव के मुकद्दम के आदेश से विभिन्न संदेशों को गांव में प्रसारित करने वाला ।
५:-भुमका/बैगा:- खेरमाई सहित विधि पूजा कराने वाला।
६.गायकी/ग्वाल:-खिला मुठवा एवं पशु से संबंधित पूजा एवं कार्य करने वाला।
७.अगरिया:-लोहासुर देव का पूजन करने वाला।
८. ओझा/ढुलिया/नगारची:- सांस्कृतिक प्रमुख।
"भीलवाड़ा क्षेत्र की पारंपरिक ग्राम व्यवस्था"
१. खत्रिज (गाथे)
२.हनुमान
३.माता(भिहोरी माता)
४. बाबा देव
५. मेढा
६. बापदेव
७.भीलटदैव
"कोलारियन क्षेत्र की ग्राम व्यवस्था"
नोट- संकलन शोध के उपरांत प्रस्तुत किया जायेगा।
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
Comments
Post a Comment