सरकारों के द्वारा प्रति यूनिट 5 किलो राशन देना मतलब गरीबों को निर्भर और लाचार भिखारी बनाये रखना है । सरकार क्या जीवन पर्यन्त ऐसा करेगी । यदि करेगी भी तो इस राशन से लोग अपने बाल बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य समृद्धि जैसे विषयों से निजात पा लेंगे ? क्या सरकार या बुद्धजीवी यह नहीं जानता कि राशन आपातकाल के लिए दिया जाता है , अभी कोई आपातकाल नहीं है। ऐसे अतिशेष अनाज का निर्यात कर भारत के राजकोषीय घाटे को कम किया जाय । तथा जनता को स्वाभिमानी आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए रोजगार और नौकरियों का सृजन करने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि हमारे देश का नागरिक आत्मनिर्भर बन सके उसकी क्रय क्षमता बढ़े, निर्भर भिखारी नहीं ! तभी हमारा देश आत्मनिर्भर और सशक्त अर्थव्यवस्था का अग्रणी बन पायेगा।
"निर्भरता से निर्बलता , निर्बलता से "लाचारी" पनपती है , लाचारी से "पिछलग्गूपन" इससे "गुलामी" और गुलामी में "स्वाभिमान" मर जाता है। और मरे स्वाभिमान का व्यक्ति या कौम क्रांति नहीं कर सकती।
-गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन एवं संस्थापक ग्राम गणराज्य पार्टी ।
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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