"कांग्रेस ने ही अतिवादी राष्ट्र की नींव रखी थी।"
वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्यों का ल्हास हो रहा है, लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ न्याय पालिका, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और मीडिया यदि चारण की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं। इसका जिम्मेदार भी कांग्रेस ही है। धार्मिक उन्माद के माध्यम से आर एस एस के तानाशाही विचारधारा की नींव रखवाने वाले भी इन्हीं के पुरोधा रहे हैं।
भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित करते हुए डा.भीमराव अंबेडकर जी ने कहा था कि "किसी देश का संविधान कितना ही अच्छा हो यदि उसके चलाने वाले अच्छे नहीं होंगे तो वह संविधान अच्छा परिणाम नहीं दे सकता, वहीं किसी देश का संविधान कितना भी खराब हो यदि उसके चलाने वाले अच्छे होंगे तो खराब संविधान भी अच्छा परिणाम दे सकता है।" कहने का मतलब स्पष्ट है कि संविधान के माध्यम से स्वतंत्र भारत का संचालन जिन हाथों में आया इसके कर्ताधर्ता भी आर एस एस के छद्म कांग्रेसी नेता रहे हैं। जिन्होंने शनै शनै आज की परिस्थितियों की नींव रखी थी। ज्ञान पिपासा ने भारतीय समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता के चलते समाज में व्याप्त असमानता, भेदभाव,कुरीतियां आदि को दूर करने के लिए अनेक समाजसेवी/राजनीतिज्ञ अग्रणी भूमिका में आने लगे यथा महात्मा फुले, पेरियार डा.अंबेडकर,लोहिया जैसे समाजवादी विचारधारा के चिंतक ,परन्तु शासकों ने इनकी भूमिका को नजरंदाज किया। स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई। आज भी इन मनीषियों के विचारों के मार्ग पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू चलाने के लिए प्रयास जारी हैं, परन्तु यहां पुनः कांग्रेस के माध्यम से रोड़ा अटकाने का काम किया जा रहा है। अर्थात वह अग्रणी भूमिका अदा कर तीसरी शक्तियों को नजरंदाज करने की कोशिश करते हुए तानाशाही सत्ता का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। यानी तीसरी शक्ति की संभावना को समाप्त करने की कोशिश कर रहा है। करे भी क्यों ना आखिर कांग्रेस भाजपा आरएसएस एक ही थैली के चट्टे बट्टे जो ठहरे ! यदि आने वाले समय में पूंजीवाद के सहारे तानाशाही सत्ता खड़ी होती है तो इसका जिम्मेदार जितना भाजपा है उससे ज्यादा जिम्मेदार और दोषी कांग्रेस होगा।
- गुलजार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
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