"महारानी दुर्गावति बलिदान दिवस"
24 जून को प्रति वर्ष गोंडवाना की,वीरांगना महारानी दुर्गावति का बलिदान दिवस सम्पूर्ण गोंडवाना में बडे धूम धाम से मनाया जाता है । आस्था में सराबोर सारे देश के विचारक नेता समाजसेवी अनेक आयोजित शासकीय अशासकीय मंचों में रानी दुर्गावति की शौर्य और बहादुरी तथा गोंडवाना की अस्मिता की रक्षा करने वाली महानायिका के रूप में अपने विचारों से समाज को आन्दोलित करेंगे । वहीं एक एैसा वर्ग एैसे संगठन जो गोंडवाना की वीरांगना के इस महान कृत्य समाज की अस्मिता रक्षा हेतु बलिदान की दिशा ही बदल देने का प्रयास पहले भी करते रहे हैं अब भी करने का प्रयास करेंगें । इनका यह उदबोधन प्रयास महारानी का मुगलों के साथ किये संघर्ष को याद दिलाने को होता है । आदिवासियों को हिन्दुओं के साथ खडा कर मुस्लिम विरोधी बनाने का प्रयास किया जाता है । वहीं रानी दुर्गावति को राजपूत कन्या के रूप में स्थापित कर राजपूतों में ही इतनी क्षमता हो सकती है इस बात को हाईलाईट करने का प्रयास होता है । ताकि गोंडवाना का यह विशाल समाज दिग्भ्रमित हो अपने आप में हीनता का शिकार हो कि बहादुरी तो केवल राजपूतों में होती है गोंड के यहां रहकर भी अपनी राजपूतानी शौर्य को दिखाया । लेकिन हमें इस बात का सीधा अर्थ निकाल लेना होगा कि रानी दुर्गावति ही नहीं नहीं इससे पूर्व भी गोंडवाना की वीरांगना और वीरों नें आर्यों ,मुगलों तथा अंग्रेजो से भी रानी दुर्गावति की तरह ही अपने मान सम्मान अपनी इज्जत अस्मिता और धन धरती को बचाने के लिये अपने प्राणों की आहुति दी है । इस कौम ने अन्यों की तरह अपनी बहन बेटियों को आक्रमणकारियों के हवाले करके अपने राजपाट को नहीं बचाया ना ही अकबर सम्राट के दरबार में नवरत्न के रूप में सुशोभित हुए । यह गोंडवाना के रक्त की पहचान है । रानी दुर्गावति गोंडवाना के मूलनिवासी महोबा के राजा कीरत सिंह जो कि गोंड की उपजाति भूमिया चंदेल की कन्या थी । महोबा से लेकर पन्ना छतरपुर दमोह तक भुमिया आदिवासियों में चंदेल गोत्र पाया जाता है । पूर्व गोंडवाना काल में वंश परंपरा में विवाह होते रहे हैं जातियां गौण हुआ करती थी । इसलिये हमें एैसे महत्वपूर्ण मौके पर अन्य विषय पर अपने विचार ना रखते हुए । यह याद रखना होगा कि पिछले एैतिहासिक संघर्ष की तरह ही रानी दुर्गावति ने अपने शुद्ध रक्त का प्रमाण दिया है । आज भी वही रक्त विषम परिस्थिति में रहकर भी शोषक अत्याचारी के विरूद्ध संघर्षरत है । अपने जल जंगल जमीन को सुरक्षित रखने के लिये तब भी संघर्षरत था आज भी है । जब तक रक्त में शुद्धता है तब तक संघर्ष करेगा । :-- गुलज़ार सिंह मरकाम
24 जून को प्रति वर्ष गोंडवाना की,वीरांगना महारानी दुर्गावति का बलिदान दिवस सम्पूर्ण गोंडवाना में बडे धूम धाम से मनाया जाता है । आस्था में सराबोर सारे देश के विचारक नेता समाजसेवी अनेक आयोजित शासकीय अशासकीय मंचों में रानी दुर्गावति की शौर्य और बहादुरी तथा गोंडवाना की अस्मिता की रक्षा करने वाली महानायिका के रूप में अपने विचारों से समाज को आन्दोलित करेंगे । वहीं एक एैसा वर्ग एैसे संगठन जो गोंडवाना की वीरांगना के इस महान कृत्य समाज की अस्मिता रक्षा हेतु बलिदान की दिशा ही बदल देने का प्रयास पहले भी करते रहे हैं अब भी करने का प्रयास करेंगें । इनका यह उदबोधन प्रयास महारानी का मुगलों के साथ किये संघर्ष को याद दिलाने को होता है । आदिवासियों को हिन्दुओं के साथ खडा कर मुस्लिम विरोधी बनाने का प्रयास किया जाता है । वहीं रानी दुर्गावति को राजपूत कन्या के रूप में स्थापित कर राजपूतों में ही इतनी क्षमता हो सकती है इस बात को हाईलाईट करने का प्रयास होता है । ताकि गोंडवाना का यह विशाल समाज दिग्भ्रमित हो अपने आप में हीनता का शिकार हो कि बहादुरी तो केवल राजपूतों में होती है गोंड के यहां रहकर भी अपनी राजपूतानी शौर्य को दिखाया । लेकिन हमें इस बात का सीधा अर्थ निकाल लेना होगा कि रानी दुर्गावति ही नहीं नहीं इससे पूर्व भी गोंडवाना की वीरांगना और वीरों नें आर्यों ,मुगलों तथा अंग्रेजो से भी रानी दुर्गावति की तरह ही अपने मान सम्मान अपनी इज्जत अस्मिता और धन धरती को बचाने के लिये अपने प्राणों की आहुति दी है । इस कौम ने अन्यों की तरह अपनी बहन बेटियों को आक्रमणकारियों के हवाले करके अपने राजपाट को नहीं बचाया ना ही अकबर सम्राट के दरबार में नवरत्न के रूप में सुशोभित हुए । यह गोंडवाना के रक्त की पहचान है । रानी दुर्गावति गोंडवाना के मूलनिवासी महोबा के राजा कीरत सिंह जो कि गोंड की उपजाति भूमिया चंदेल की कन्या थी । महोबा से लेकर पन्ना छतरपुर दमोह तक भुमिया आदिवासियों में चंदेल गोत्र पाया जाता है । पूर्व गोंडवाना काल में वंश परंपरा में विवाह होते रहे हैं जातियां गौण हुआ करती थी । इसलिये हमें एैसे महत्वपूर्ण मौके पर अन्य विषय पर अपने विचार ना रखते हुए । यह याद रखना होगा कि पिछले एैतिहासिक संघर्ष की तरह ही रानी दुर्गावति ने अपने शुद्ध रक्त का प्रमाण दिया है । आज भी वही रक्त विषम परिस्थिति में रहकर भी शोषक अत्याचारी के विरूद्ध संघर्षरत है । अपने जल जंगल जमीन को सुरक्षित रखने के लिये तब भी संघर्षरत था आज भी है । जब तक रक्त में शुद्धता है तब तक संघर्ष करेगा । :-- गुलज़ार सिंह मरकाम
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