व्यक्ति समाज और उसका दायित्व
आज हम आदिवासी समाज सामाजिक स्तर पर एक होकर अपने हक अधिकार की लडाई लडने की बात करते हैं हमारी भाशा धर्म संस्कृति को सुरक्षित करने की बात करते हैं यहां तक सौ प्रतिषत ठीक है । और ठीक है हजारों संगठन बनाना भी परन्तु सभी संगठन इस बात पर जरूर ध्यान दे कि हमारी सोच विचार और व्यवहार एक हो । मैं मानता हूं कि मानवीय स्वभाव होता है किसी अन्य पर प्रभुत्व बनाये रखने का । चाहे वह पत्नि हो बच्चे हों या समाज का परिवार का छोटा समूह हो । यही नहीं मानवीय स्वभाव ने अपने इसी प्रवृति के कारण अन्य जीव जन्तुओं को भी अपने कब्जे में करके अपनी इच्छानुरूप चलाना चाहता है । अपनी विवेकषील मष्तिश्क के कारण उन पर राज करता है । चूंकि इंसान ने इंसान के बीच इस तरह की कोई अडचन ना आये इसलिये मानवीय नियम जाति नियम सामाजिक नियम और राश्टीय स्तर पर राश्टीय नियम बनाकर संतुलन को बनाये रखने का प्रयास किया जाता है । परन्तु इन नियमों के होते हुए भी कभी कभी मनुश्य का मूल मानवीय स्वभाव सामने आ जाता है वह सब बातों को नजरंदाज कर अपने व्यकितगत स्वभाव के कारण हिंसक हो जाता है । एैसे मौके पर उसे केवल अपना व्यक्तिगत स्वभाव पर आधारित क्रिया समझ में आती है अन्य कुछ नहीं । इसलिये मेरा मानना है कि यदि मनुश्य ने यदि स्वयं ही अपने समाज को व्यवस्थित करने के लिये नियम बनाये हैं तो उसका उसे पालन करना चाहिये। उस नियम का हर स्तर पर पालन करना चाहिये । जाति हित समाज हित राश्ट हित में आवष्यक नियमों का यदि याद नहीं तो किसी माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर अपने आप को संयमित कर अहं का त्याग करना चाहिये । व्यकितगत समस्या का व्यकितगत समाधान जातीय समस्या का जातिगत समाधान सामाजिक वर्गीय समस्या का अपने वर्गगत समाधान निकालें तथा यदि यह राश्टीय समस्या है तो राश्टीय स्तर पर इसका समाधान निकालना होगा । जितनी बडी चुनौती उतना बडा दिल रखने की आवष्यकता होगी । इसका एक ही सूत्र सामुदायिक समस्या सामूहिक उत्तरदायित्य । व्यक्तिगत समस्या व्यक्तिगत जिम्मेदारी । लेकिन व्यक्ति समाज संगठनों की सोच विचार और व्यवहार एक हो । तब परिणाम आपके पक्ष में होगा । आपके अभिमत की प्रतीक्षा प्रस्तुति% गुलजार सिंह मरकाम
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