संविधान की सूचि में लम्बे समय से देश के मूलनिवासियों को अलग अलग सूचि में डाल दिये जाने के कारण अनुसूचित जनजाति एवम अनुसूचित जाति वर्ग की वर्गीकृत सोच बन चुकी है ! जबकि ये वर्ग आज भी सामान वातावरण ,सामान परिवेश ,सामान राजनैतिक ,सवैधानिक सरक्षन में जी रहे हैं ! परन्तु यह वर्गीकृत विभाजन ,उन्हें सामाजिक ,सांस्कृतिक ,धार्मिक राजनैतिक बिन्दुओं पर मानसिक रूप से भी विभाजित करके रख दिया है ! इसी तरह सविधान में वर्णित पिछड़े वर्ग की विशाल संख्या जो एक वर्गीकृत मानसिकता में ढल रही थी , को चालाक लोगों ने विभाजित कर क्रीमीलेयर नाम देकर ,कमजोर कर दिया ! वर्गीय विभाजन के कारण एक ही जाति एक राज्य में यदि अनुसूचित जनजाति है ,अन्य राज्य में पिछड़ा वर्ग में ,तथा किसी अन्य राज्य में अनुसूचित जाति में है तो उस जाति में आदिवासी या जनजातीय मानसिकता नहीं पैदा होती ,बल्कि जिस राज्य में वह जिस वर्ग में गिना जाता है वही मानसिकता बनती है ! भले ही वह एक संस्कृति ,संस्कारों ,परिवेश ,वातावरण में जीवन यापन कर रहा हो ! जबकि सविधानिक सूचि केवल विशेष सुविधाओं सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए बनी है ! आपको सामाजिक ,सांस्कृतिक...