Skip to main content

"अधिनायक या तानाशाही तन्त्र के स्थापना की कोशिष में लगा है आरएसएस"

"अधिनायक या तानाशाही तन्त्र के स्थापना की कोशिष में लगा है आरएसएस"
"हिटलर के विचारों का समर्थन करने वाला सन्घ १९२५ से लगातार अपनी विचारधारा का स्लोपाईजन राष्टवाद के नाम पर अपने छदम और जहरीले विचारो को समाज के बीच बडी चतुराई से रोपित कर रहा है । चूकि देश मे प्रजातान्त्रिक प्रणाली के चलते और पक्ष विपक्ष तथा छोटी बडी राजनीतिक पार्टियो की देशी विचारधाराओ के चलते देश की सर्वोच्च सन्था राज्य सभा और लोकसभा मे दो तिहाई बहुमत नही होने से इनकी दाल गलती नजर नही आने साथ ही विभिन्न राज्यो मे अलग अलग समय मे सरकारो का कार्यकाल होना भी इनकी गले की हड्डी की तरह खटक रहा है । ऐसी परिस्थिति मे इन्होने "न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर अपने लक्ष्य की ओर बढने का प्रयास कर रहे है ,पर वहा भी देश का सन्विधान आडे आ रहा है । इन सब बातो के रहते इन अतिवादियो को भारी झुन्झलाहट हो रही है इसलिये वे अपने राजनीतिक सन्गठनो भाजपा जिसमे कान्ग्रेस और अन्य चड्डीधारी नेताओ से लैस पार्टिया और सन्गठन है । उनका समय समय पर उपयोग को समझा जा सकता है । दन्गा फसाद, पुलिस,मिल्ट्री का उपयोग कर राष्ट्र सुरक्षा के नाम पर निरीह जनता को गोलियों से भूनना घर उजाडने का मूक आदेश देकर अपने आप को राष्ट्रवाद की विचारधारा का असली अनुगामी होने का प्रयास किया जा रहा है । देश में तानाशाही विचारधारा स्थापित करने का इनका यह षड्यंत्र निम्न क्रियाकलापों से स्पष्ट हो जाता है , बस इसे समझने की आवश्यकता है ।
(१) समान नागरिक संहिता ।
(२) राज्यों के चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ हो ।
(३) बहुदलीय चुनाव प्रणाली के स्थान पर द्विदलीय चुनाव प्रणाली
(४) आरक्षण की समीक्षा ।
(५) देश के इतिहास की समीक्षा एवं पुनर्लेखन ।
(६) सन्विधान की समीक्षा आदि ।
उपरोक्त सभी बिन्दुओ पर हमारी द्रष्टि तेज होना चाहिए ताकि समाज को इनके गहरे साजिश से बचाया जा सके । कारण कि इनकी हर प्रस्तुति समाज को राष्ट्रवाद का चश्मा पहनाकर होती है जिससे समाज भावनाओं में बहकर अपना नुकसान कर लेता है । इनका शडयन्त्र सफल होने के बाद समाज को भूल का एहसास होता है तब तक वह अपने लक्ष्य के अगले पायदान में पहुंच जाता है । यह क्रिया लगातार जारी है । इसे समझदारी जागरूकता से रोकना होगा (गुलजार सिंह मरकाम)

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि