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"इस देश का समस्त मूलनिवासी एसटी एससी ओबीसी एवं धर्मातरित अल्पसंख्यक आदिवासी है ।"

"इस देश का समस्त मूलनिवासी एसटी एससी ओबीसी एवं धर्मातरित अल्पसंख्यक आदिवासी है ।" 
इस बात पर अनुसूचित जनजाति में सूचिबद्ध समूह भले ही अपने आप को "केवल हम ही" कहता हो पर सच कुछ और है । इन वर्गों का रक्त भी वही है शारीरिक बनावट जीवनचर्या स्वभाव भी वहीं है तो केवल हम कैसे। हजारों वर्षों से इस देश में हो रही घटनाओं के कारण प्रभावित इलाकों में सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन हुए इसमें मूलनिवासी समुदाय बिखर कर रह गया है । रक्त और शरीर की बनावट तो बदल नहीं सकता था सो नहीं बदला चूंकि यह प्रकृति की रचना है । बदला है तो केवल बाहरी परिवेष और मान्यतायें जिन्हें पुन: स्थापित किया जा सकता है । संविधान की अनुसूचि में अनुसूचित वर्गों को सूचि में जोडने घटाने का काम हो सकता है । अब हमें मूलनिवासी की असली पहचान आदिवासी के रूप में स्थापित होने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से दी गई महत्वपूर्ण मापदण्ड का पालन करना होगा । संविधान में उल्लेखित सूचि के कारण हम जातीय मानसिकता से कुछ कुछ उबरते हुए वर्गीय मानसिकता को पकड रखे हैं । इससे भी हमें मुक्त होना होगा और हमें इस देश का मूल आदिवासी होने की पहचान बनाना होगा । जिस तरह मनुवादियों के द्वारा हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान की कल्पना कर अपनी संप्रभुता स्थापित करना चाहते हैं हिन्दु राष्ट्र बनाना चाहते हैं ठीक इसी तरह देश का आदिवासी गोंड ,गोंडी,गोंडवाना की राष्ट्रीय कल्पना को साकार कर गोंडवाना राष्ट्र बना सकते हैं ।

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