1- "6सितंबर 2018 कथित भारत बंद।"
आरक्छन और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का विरोध यानी कि सवर्ण अपनी कमजोरी खुद दिखा रहे हैं जबकि यह मात्र कानून है ,कोई कानून का उल्लंघन ना करें इसलिए रास्ता है, इसका विरोध करने का मतलब इन्हें अन्याय अत्याचार की खुली छूट मिले, इन्हें नौकरियों में सभी सीटों पर कब्जा करने का अवसर मिले यही है उनका आशय है जब उच्च वर्ग अन्याय नहीं करेगा तो उस कानून के रहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कानून को संविधान में लिखा रहने दो आप अन्याय अत्याचार मत करो तो उस कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी ,आप सही हिस्सेदारी दो तो तुम्हें आरक्षण के विरोध की जरूरत नहीं पड़ेगी ,लेकिन सब कुछ थोड़े से लोग हड़प जाना चाहते हैं इसलिए इस तरह के कानून का विरोध करते हैं।-gsmarkam
2- "आदिवासी नेतृत्व वाले दलों को सुझाव"
(देश की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में)
जनजातियों का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक दल और सन्गठन में यदि सवर्ण कार्यकर्ता या पदाधिकारी हैं ,यदि वे उस पार्टी में रहना चाहते हैं तो ऐसे दलों को चाहिए कि वह सवर्ण कार्यकर्ताओं पदाधिकारियों से आरक्षण एवं एट्रोसिटी एक्ट का स्वयं तथा परिवार के लोग विरोध नहीं करेंगे तथा अनुसूचित वर्ग/कमजोर वर्ग पर अन्याय अत्याचार नहीं करेंगे ना करने देंगे ,इस बात का शपथ पत्र भरवा कर रख लिया जाना चाहिए तभी उसे पार्टी और पद पर पदाधिकारी या कार्यकर्ता बनाया जाए अन्यथा केवल नेतागिरी चमकाने के लिए बिना शपथ पत्र लिए उन्हें पार्टी में प्रवेश ना दिया जाए।-akhand Gondwana news
3- "शरीयत, रूढ़ि कानून एवं संविधान"
मुस्लिमो के संविधान प्रदत्त शरीयत न्याय प्रणाली तथा आदिवासियों के रूढ़ि पंचायतों की स्वतंत्र न्याय व्यवस्था को संविधान के माध्यम से समाप्त करने का षडयंत्र के तहत उत्तर प्रदेश में कथित हिन्दू महासभा या बामन महासभा ने स्वतंत्र हिन्दू कोर्ट की स्थापना की है। जिसकी न्यायधीश उप्र की श्रीमती पांडे को बनाया गया है। श्रीमती पांडे ने कहा है कि यह हिन्दू कोर्ट मनुस्मृति के नियम के अनुसार न्याय देगा। इसकी असली हकीकत को अगले अंक में प्रस्तुत किया जायेगा।तब तक मित्रगण इसकी तह तक पहुंचने का प्रयास करें।आखिर हिन्दू महासभा द्वारा यह बात सामने क्यों लाई जा रही है।-gsmarkam
आरक्छन और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का विरोध यानी कि सवर्ण अपनी कमजोरी खुद दिखा रहे हैं जबकि यह मात्र कानून है ,कोई कानून का उल्लंघन ना करें इसलिए रास्ता है, इसका विरोध करने का मतलब इन्हें अन्याय अत्याचार की खुली छूट मिले, इन्हें नौकरियों में सभी सीटों पर कब्जा करने का अवसर मिले यही है उनका आशय है जब उच्च वर्ग अन्याय नहीं करेगा तो उस कानून के रहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कानून को संविधान में लिखा रहने दो आप अन्याय अत्याचार मत करो तो उस कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी ,आप सही हिस्सेदारी दो तो तुम्हें आरक्षण के विरोध की जरूरत नहीं पड़ेगी ,लेकिन सब कुछ थोड़े से लोग हड़प जाना चाहते हैं इसलिए इस तरह के कानून का विरोध करते हैं।-gsmarkam
2- "आदिवासी नेतृत्व वाले दलों को सुझाव"
(देश की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में)
जनजातियों का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक दल और सन्गठन में यदि सवर्ण कार्यकर्ता या पदाधिकारी हैं ,यदि वे उस पार्टी में रहना चाहते हैं तो ऐसे दलों को चाहिए कि वह सवर्ण कार्यकर्ताओं पदाधिकारियों से आरक्षण एवं एट्रोसिटी एक्ट का स्वयं तथा परिवार के लोग विरोध नहीं करेंगे तथा अनुसूचित वर्ग/कमजोर वर्ग पर अन्याय अत्याचार नहीं करेंगे ना करने देंगे ,इस बात का शपथ पत्र भरवा कर रख लिया जाना चाहिए तभी उसे पार्टी और पद पर पदाधिकारी या कार्यकर्ता बनाया जाए अन्यथा केवल नेतागिरी चमकाने के लिए बिना शपथ पत्र लिए उन्हें पार्टी में प्रवेश ना दिया जाए।-akhand Gondwana news
3- "शरीयत, रूढ़ि कानून एवं संविधान"
मुस्लिमो के संविधान प्रदत्त शरीयत न्याय प्रणाली तथा आदिवासियों के रूढ़ि पंचायतों की स्वतंत्र न्याय व्यवस्था को संविधान के माध्यम से समाप्त करने का षडयंत्र के तहत उत्तर प्रदेश में कथित हिन्दू महासभा या बामन महासभा ने स्वतंत्र हिन्दू कोर्ट की स्थापना की है। जिसकी न्यायधीश उप्र की श्रीमती पांडे को बनाया गया है। श्रीमती पांडे ने कहा है कि यह हिन्दू कोर्ट मनुस्मृति के नियम के अनुसार न्याय देगा। इसकी असली हकीकत को अगले अंक में प्रस्तुत किया जायेगा।तब तक मित्रगण इसकी तह तक पहुंचने का प्रयास करें।आखिर हिन्दू महासभा द्वारा यह बात सामने क्यों लाई जा रही है।-gsmarkam
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