"पुरखों का गुरुकुल,गोटुल (५,६अनु.जनजा.क्षेत्र)"
जनजातियों के लिए पांचवी और छठी अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने की मंशा के पीछे उनकी धार्मिक सामाजिक रूढि परंपराओं, सांस्कृतिक एवं भाषा को सुरक्षित करना था, ताकि दुनिया अपने मूल मानव विकास के पुरखों का एहसान पीढ़ी दर पीढ़ी मानें, उनसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का अनुसरण कर सकें। उनसे मानवता, परोपकार, सरलता, सहजता करूणा दया जैसे मानवीय गुणों को सीख पाये। साथ ही ऐसे जनजाति घोषित क्षेत्रों का अध्ययन करके लोकतंत्र के मूल्यों की समझ विकसित कर सके। यानि ऐसे क्षेत्र देश के मूल का आईना है, दर्पण है, लोक कल्याणकारी व्यवस्था में लोकतंत्र की पाठशाला की भांति है। अर्थात देश का गुरूकुल है। ऐसे गुरुकुल क्षेत्रों को उसकी आत्मा को बिना हानि पहुंचाये। सुरक्षित और संरक्षित करने की आवश्यकता सत्ताधारी शासक की थी, परन्तु भारत देश में इन क्षेत्रों को सुरक्षित संरक्षित करने की बजाय कथित विकास के नाम इन क्षेत्रों के लोगों की सम्पूर्ण पहचान मिटाने की लगातार कोशिश की जा रही है, ऐसे क्षेत्रों के भूगोल को भी लगातार तहस नहस किया जा रहा है। जैसे जैसे ऐसे गुरुकुल क्षेत्र समाप्त होंगे, वैसे वैसे हमारे देश के लोगों का चारित्रिक पतन होता चला जायेगा, होता जा रहा है। यानि टिमटिमाते दियों को अंधकार अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है यदि देश का संवेदनशील नागरिक "दिया रुपी ऐसे पाठशालाओं" को बचाने की कोशिश नहीं करेगा तो पूरा देश अंधकारमय हो जायेगा,अब भी समय है चेतो,जागो , उलगुलान के लिए कमर कसो। जय सेवा ! जय जोहार !! - गुलजार सिंह मरकाम
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