"जनजाति सूची" में ही शामिल होने की कोषिश क्यों ?
भारतीय समाज को उनकी विशेषताओं को चिन्हित करके, उनके समग्र उत्थान की अवधारणा को लेकर, अजजा,अजा, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक के रूप में संविधान में सूचिबद्ध कर दिया गया है। सबको अपनी सूची में रहकर संवैधानिक अधिकार पाने के पूरे अवसर उपलब्ध है। परन्तु इस मूलनिवासी समुदाय,में वर्गीकृत श्रेणियां केवल "अजजा" की सूची में ही क्यों शामिल होना चाहती है, चिंता का विषय है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि जनजाति की सूची में शामिल होने के जो(जनजातीय) मापदंड है, उन मापदंडों को पूरा किए बगैर कोई इस सूची में आने की कोशिश करता है, वह केवल जनजाति आदिवासी के संवैधानिक अधिकारों को आसानी से हासिल करने के मात्र का उद्देश्य रखता है। मणिपुर की घटना यही संकेत देती है। देश के अनेक हिस्सों में, आदिवासी की बहन बेटियों से विवाह संबंध बनाना और उनके नाम पर जमीन जायदाद हासिल करने की घटनाएं आम हो चुकी है, भूमि हस्तांतरण से लेकर शिक्षा रोजगार आदि के संवैधानिक प्रावधानों को ताक में रखकर, गलत नीयत से "जनजाति सूची" में शामिल होने की कोशिश, जनजातीय सभ्यता संस्कृति को नष्ट करने का और आसानी से इनके नाम पर रोजगार को हासिल करने मात्र का उद्देश्य है। जबकि जो इस मापदंड को पूरा कर रहा है,ऐसी जातियां आज भी जनजाति सूची से बाहर है क्यों ? बुद्धिजीवीयों को इस विषय पर चिंतन करना होगा।
- गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय अध्यक्ष क्रांति जनशक्ति पार्टी
Comments
Post a Comment