where is st,sc,obc संविधान की सूचि में लम्बे समय से देश के मूलनिवासियों को अलग अलग सूचि में डाल दिये जाने के कारण अनुसूचित जनजाति एवम अनुसूचित जाति वर्ग की वर्गीकृत सोच बन चुकी है ! जबकि ये वर्ग आज भी सामान वातावरण ,सामान परिवेश ,सामान राजनैतिक ,सवैधानिक सरक्षन में जी रहे हैं ! परन्तु यह वर्गीकृत विभाजन ,उन्हें सामाजिक ,सांस्कृतिक ,धार्मिक राजनैतिक बिन्दुओं पर मानसिक रूप से भी विभाजित करके रख दिया है ! इसी तरह सविधान में वर्णित पिछड़े वर्ग की विशाल संख्या जो एक वर्गीकृत मानसिकता में ढल रही थी ,को चालाक लोगों ने विभाजित कर क्रीमीलेयर नाम देकर ,कमजोर कर दिया ! वर्गीय विभाजन के कारण एक ही जाति एक राज्य में यदि अनुसूचित जनजाति है ,अन्य राज्य में पिछड़ा वर्ग में ,तथा किसी अन्य राज्य में अनुसूचित जाति में है तो उस जाति में आदिवासी या जनजातीय मानसिकता नहीं पैदा होती ,बल्कि जिस राज्य में वह जिस वर्ग में गिना जाता है वही मानसिकता बनती है ! भले ही वह एक संस्कृति ,संस्कारों ,परिवेश ,वातावरण में जीवन यापन कर रहा हो ! जबकि सविधानिक सूचि केवल विशेष सुविधाओं सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए बनी है ! आपको सामाजिक ,सांस्कृतिक धार्मिक राजनैतिक रूप से विभाजित करने के लिए नहीं ? इसलिए देश के किसी भी प्रदेश में रहने वाला आदिवासी जो सामाजिक, सांस्कृतिक,मान्यताएं ,परम्पराओं में एक है ,लेकिन सविधान की सूचि में अलग अलग वर्ग में अधिसूचित है , अपनी आदिवासी मूलनिवासी मानसिकता ही विकसित करे ! तब हम एक बड़ी ताकत के रूप में दिखाई देंगे !
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
Comments
Post a Comment