एक साथी बलभद्र बिरुआ ने सरना धर्म के सम्बन्ध में अच्छी जानकारी दी है स्वागत योग्य है ! वही उन्होंने गोंडी धर्मावलम्बियों की भी संख्या का जिक्र किया है ! मेरी जानकारी के अनुशार देश में आदिवासी समाज के लोग विभिन्न राज्यों में अलग नाम से जैसे आदि धर्म कोया धर्म प्रकृति धर्म आदि का उल्लेख २ ० ० १ की जन्गरना में किये थे ! चलो अलग अलग ही सही कुछ प्रयास तो हुआ ! लेकिन मेरा मानना है तथा इन सभी धर्मावलम्बियों का मुख्य देवता जो अपने पुरखा के जाता है जिसे लोग सरनादेव सरई पेड़ में , बडादेवसजोर पेन साजा के पेड़ में ,मरांड बरु भी पेड़ का ही देव है ! आदि ! सभी प्रक्रति के ही उपासक है ! जिसमे पुजारी उस समुदाय का ही निर्धारित होता है ! जहा तक इन सभी आदिवासियों के गोत्र व्यवस्था को देखे तो सबके गोत्र किसी पेड़ पौधे ,किसी पक्छी तथा जानवर के नाम पर है यथा,गोंड तथा उनकी समस्त उपजातियो में टेकाम यानि टेका सागोन का पेड़ ,मरका आम का पेड़ उराव तथा उनकी समस्त उपजातियो में खेश यानि धान का पौधा मिंज विशेष मछली आदि हल्बा जाती में भेडिया सियार मीना जाती में मीन मछली आदि , देश के विभिन्न छेत्रो में आदिवासी समुदाय अपनी भाषा में उसी नाम को अलग नाम से जनता है लेकिन सभी आदिवासी समुदाय की धरनाऐ और मान्यताये एक है ! इसलिए मेरा सुझाव है की जब हमारी मान्यताये एक है तो हमारा धर्म भी एक ही है ! समाज का मुख्य अभिवादन जय सेवा !जय जोहर एक है इसलिए धर्म कोड के लिए मतावलंबियो की एक जुट ताकत ही असरकारक हो सकती है !इसके लिए यह प्रयास हो की अलग अलग नमो से जाने माने जा रहे धर्मो का एक ही नाम निर्धारित किया जाय (यथा प्रकृति धर्म या जो सर्व सम्मत हो ) तथा बाकि सभी नामो को उस मुख्य नाम का पर्यायवाची नाम के रूप में प्रस्तुत किया जाय तो हमारी धार्मिक ताकत और मताव्म्ब्लियो की संख्या में बढ़ोत्तरी दिखाई देगी ! इस पर विचार किया जा सकता है!
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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