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आरक्षण के भूत से डरो नहीं आरक्षण का भूत बनो

आरक्षण के भूत से डरो नहीं आरक्षण का भूत बनो

आरक्षण का भूत  एक ओर अनु0 जाति जनजाति  अन्य पिछडे वर्ग एवं अल्प संख्यकों का आरक्षण जो लगातार जारी है । उसे कांग्रेस के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उठवाकर वोट बैंक की राजीनति हो रही है । दूसरी ओर भाजपा द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करते हुए आरक्षण के विरूद्ध सीधा प्रहार आमजन को समझ में नहीं आता । हमें आरक्षण के संबंध में कांग्रेस या भाजपा से प्रभावित होने या समझने की आवष्यकता नहीं । आरक्षण की वास्तविकता आरक्षित वर्ग को समझने की आवष्यकता है । वी पी सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में पिछडे वर्ग को 27 प्रतिषत आरक्षण दिया गया था । लेकिन पिछडे वर्ग के लोगों को आरक्षण की समझ नहीं थी इस कारण इस वर्ग के बहुत से छात्रों ने आरक्षण के विरोध मे आत्म हत्या तक कर ली थी । जब उन्हें तथा इस वर्ग के नेताओं के समझ में आई तब स्थिति सामान्य हुई ।
    आरक्षण का इतिहास खैरात से नहीं अधिकार से जुडा है । यह देष मूलनिवासी अनु0जाति जनजाति पिछडे वर्ग तथा धर्मांतरित अल्पयसख्यकों का है । जिनकी जनसंख्या लगभग 85 प्रतिषत है । जनसंख्या के अनुपात में इस देष की धन धरती षासन प्रषासन पर इन वर्गो का बराबर का हिस्सा होना चाहिये । परन्तु आज भी इन वर्गों को जनसंख्या के अनुपात में अधिकार नहीं मिल सके हैं । आखिर इस देष की धन धरती षासन सत्ता रोजगार व्यवसाय का 80 प्रतिषत भाग किनके पास है इसका उपभोग कौन कर रहा है । विचारणीय प्रष्न है । क्या उपभोग का अधिकार कथित योग्यता वालों का ही है । अच्छा जीवन जीने उंचे पदों पर रहने का विषेशाध्किार क्या इन्हीं की बपौती है । जब भी आरक्षण की बात आती है कथित योग्यता की बात सामने लाकर आरक्षित वर्ग के संवैधनिक अधिकार को समाप्त करने की बात लायी जाती है । देखा जाये तो जो लोग योग्यता की बात करते है कितने योग्य हैं । यह तो देष की वर्तमान स्थिती को देखकर समझा जा सकता है । अन्याय अत्याचार षोशण बलात्कार भृश्टाचार दलाली घोटाले के जिम्मेदार तो वही लोग होंगे जिनके हाथ में देष की सारी षक्ति षासन प्रषासन व्यवसाय षिक्षा न्याय रक्षा अर्थतंत्र आदि है । जिनके हाथ ये षक्तियां नहीं हैं वे इसके जिम्मेदार कतई नहीं हैं । जब जब भी छोटी मोटी जिम्मेदरी मिली है उस वर्ग ने अपनी योग्यता का लोहा मनवाया है । इसके प्रत्यक्ष प्रमाण डा0 अम्बेकर जैसे महान लोग हैं । जब देष की 80 प्रतिषत व्यवस्था का संचालन कथित अनारक्षित योग्य लोगों के हाथ में है तब तो इस देष को चीन जापान जैसे विकसित देषों की श्रेणी में आ जाना चाहिये । यदि नहीं आ सका है तो कथित योग्यता का कोई मायना नहीं । कारण भी है कि जिसे उच्च वर्ग योगता का मापदंण्ड मानता है । जैसे भृृश्टाचार देष के गुप्त दस्तावेजों को धन की लालच में बेचना रक्षा सौदों में दलाली करना विदेषों में काला धन जमा करना । दंगा फसाद कराना पी एम टी आदि विषेश परीक्षाओं में रूपये देकर मेरिट में जगह बनाना आदि यह योग्यता मूलनिवासी समाज में नहीं है इसलिये वह अयोगय है । यह कथित योग्य समाज अयोग्य होते हुए भी मोटी केपिटेषन फीस देकर प्रायवेट से इंजिनियर डाक्टर की डिग्री लेता है खरीदता है । तब तुरंत के बने पुल पुलिया इमारत ढहने या आपरेषन के समय पेट में ही कैंची क्यों नहीं छूटेगी । अरे आरक्षित वर्ग को तो किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में निर्धारित मापदंण्ड को लांधना पडता है । कथित योग्यता वाले के लिये इसका कोई मायना नहीं । जिसके पास षासन सत्ता है वही उसकी योग्यता है । जब तक इस व्यवस्था में मूलनिवासी समाज की अधिकतम हिस्सेदारी नहीं होगी याोग्य होने के बाद भी अयोग्यता से लांक्षित होते रहोगे । बहुसंख्यकों के अधिकारों का फैसला मुटठी भर जनसंख्या वाले लोग करते रहेंगे ।  अब वक्त आ गया है अपने वास्तविक अधिकार राजनीति और नौकरियों में अन्य पिछडे वर्ग के लोगों को आरक्षण का मामला उठाने और समझाने का । जब अन्य पिछडे वर्गो की जनसंख्या 52 प्रतिषत है तब उन्हें भी संसद और विधान सभाओं में आरक्षण क्यों नहीं 27 की जगह 52 प्रतिषत नौकरियों में स्थान क्यों नहीं । इसे हासिल करने के लिये तैयार हो जाओ अपने आप योग्यता आ जायेगी । संसद तथा विधान सभा के लिये महिला आरक्षण लाया जा सकता है तो पिछडे वर्गो के लिये क्यों नहीं । यदि इस पर विचार षुरू ीो जाये तो आरक्षण विरोधियों के मुह अपने आप बंद हो जायेंगे ।                
                                                               लेख: गुलजार सिंह मरकाम

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